इस प्यार को क्या नाम दूं

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Story

घर में कलेश बहुत ही ज्यादा बढ़ गया था। बात बेबात लड़ाई होती रहती थी। राधा को लगता था कि सब ठीक हो जायेगा अब ठीक होगा, तब ठीक होगा लेकिन कुछ भी ठीक नही हो पा रहा था। समझ में ही नही आ रहा था कि क्या करे? कैसे मैनेज करे? माँ सिंगल मदर थी। शुरू से उन्होंने उसको पालने में जी जान एक कर दी थी। अब अगर उनके पास गई तो लोग क्या कहते कि माँ भी मायके में रहती है। अब बेटी भी अपना घर नही बसा पाई। और न जाने क्या-क्या सब हीं लोग सुना देते। समझ में नहीं आता है। सो मनाकर इधर ही रहना था। अब रहना है तो पति की तो सुननी ही पड़ेगी न। यही सब सोचते सोचते उसकी आंख कब लग गई पता ही नही चला। केशव (उसका पति) उसे झकझोरे जा रहा था। क्या हुआ वो झुंझलाते हुए बोली? तो केशव फिर नाराज कि पति से बात करने की तमीज ही नही है। जरा सा ये अफसोस नही हो रहा था कि नींद में थी, जगा दिया। बेवजह और ताना मार दिया। आज की बात तो थी नही कि राधा कुछ कहती और सुनती। वो चुपचाप वहाँ से उठ कर चली गई क्योंकि अब केशव नाराज़ हो चुका था और एक घंटे बैठ के मान मनोअल करने की राधा की इक्षा खतम हो चुकी थी। किचन में अपने बालों को कसकर बांधते हुए जैसे वो अपना सारा गुस्सा उसी पे उतार रही हो और तभी उसका सात साल का बेटा किचन में आ गया। मम्मी भूख लगी है। उसकी आवाज जैसे ही राधा के कान में गई उसका मन थोड़ा शांत हुआ और वो उसके लिए कुछ बनाने में जुट गई और सोचा चलो कुछ तो अच्छा है मेरे जीवन में। जिससे मेरी जीने की इच्छा शक्ति बढ़ती है। आत्महत्या करने से तो पाप ही लगता है। ऐसा सोच कर वो अपने काम में जुट गई।

(अतीत)

हरी उसके घर दूध देने आता था। दिखने में सावला सा था लेकिन उसकी आंखो की चमक अलग सी थी। वो राधा को देखते ही अलग सा खिल जाता था। वैसे उसका घर के काम काज में दिल नही लगता था। भैस के पास जाता तो कहता बदबू सी आती है, उल्टी हो जाएगी। उसकी माँ दूध निकालती तो दूध देने जाता। राधा को जब दूध देने की बारी आती तो वो चहक जाता। सेंट लगाता बाल में तेल लगाया जाता चपोड़कर कि कुछ तो टपक कर चेहरे पे भी आ जाता था। वो जाता लेकिन वो महारानी सोई रहती थी। शायद ही कोई दिन हो कि उसकी माँ काम में व्यस्त हो तो मैडम आ जाय। उसके बाद तो हरी की दुनिया ही बदल जाती थी। सारा दिन वो चहकते रहता था। खुशी से नाच करता रहता। उसकी माँ भी सोचती, हाय इसको क्या हुआ। एक दिन हरी के दोस्त ने कहा तू अपने दिल की बात राधा को बताएगा नही तो वो कैसे समझेगी। हरी हिचकिचाया लेकिन उसको उसके दोस्त ने इस बात के लिए मना लिया। तो तय हुआ कि आज दूध देने जायेगा तो इसको चिट्ठी में अपने दिल की बात लिख देगा और उसने चिट्ठी लिखी और भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना की। आज कम से कम उसकी माँ न आए। सुबह की प्रथाना स्वीकार हुई मैडम दूध लेने आई। लाल रंग के कपड़े में वो इस हवेली की महारानी लग रही थी। हाय शुक्रिया भगवान आपका !! उसने दूध देने से पहले अपने हाथ से लिखा लव लेटर उसके हाथ में थमाया और सीधा लंबे लंबे कदमों से भाग गया।

राधा को पहले लगा दूध की पर्ची होगी। माँ तो उसी से हिसाब जुड़वाती तो चलो जोड़ देते हैं। जैसे ही पेन निकाल कर खोला हे भगवान ये क्या है? टूटी फूटी हिंदी में प्रेम-पत्र। उसने धीरे से दरवाजा बंद किया और पढ़ना शुरू किया। एक भी स्पेलिंग सही नही थी लेकिन इरादे नेक लग रहे थे। लेटर कुछ यूं था-

प्यारी राधा
बहोत सारा पायर(प्यार)
तुम इस महल की महारानी हम गलियां का राजा। जमीन पर सोवत हैं लेकिन एक खाट जरूर बनवा लेंगे तुम संग बियाह होते ही। हमरी माय भाई की साली से हमार बियाह करवाना चाहत है लेकिन हम तुम्ही सा करे नही तो महिस ( भैंस) के ऊपर से कूद के जान दे देंगे। और अंत में लिख दिया आई लभ ऊ (आई लव यू)।

अब तो राधा की जान सूख गई कि माँ ने देख लिया तो जान ही ले लेंगी। कैसे दुनिया से लड़ झगड़कर उसको पढ़ा रही हैं। कुछ बनना देखना चाहती है और शादी तो अभी दस साल सोच भी नही सकते, और कहाँ मैं और कहाँ वो नीची जाति का लड़का। मेरा उसका कोई मेल भी नही। इस तरह सोच सोच कर उसका दिमाग खराब हो गया। तभी माँ ने कहा कि वो अपना दूध वाला बर्तन छोड़कर गया है। उसे दे आ। वो जल्दी से उसके घर गई। वो आंगन में रेडियो सुनते हुए भैंस का दूध निकाल रहा था। बगल में उसने बहुत सारा गोबर इकठ्ठा किया था और बच्चे खेल रहे थे। उसके भाई के बच्चे मिट्टी में आराम से लेटे थे। जैसे धरती माँ ने गोद खोल दी हो। अब हरी राधा को देख फिर से चमक गया।

उसकी माँ दूध में पानी मिलाती उससे पहले वो राधा के लिए दूध अलग कर देता था। माँ नाराज भी हो जाती कि उससे दिल मती लगा लेकिन दिल कहाँ सुनता है किसी की। राधा बड़े गुस्से में उसकी तरफ आ रही थी। सब लोग राधा को देख रहे थे। इतनी जल्दी ई उठती भी नही आज कैसे आ गई …। हरि उसे निहारे जा रहा था कि राधा ने उसके लेटर के टुकड़े टुकड़े कर उसके चेहरे पे फेक दिये वो भी सबके सामने और लोटा वही पटका और निकल गई। उसने एक बार भी नही सोचा कि उसके घर वाले क्या सोचेंगे? और इधर हरी की माँ समझ गई। बेचारा हरी कुछ भी न कह पाया। उसका प्यार अधूरा रह गया। उसकी माँ उसे समझाए जा रही थी बेटा वो ऊंचे जाती की है अगर वो तैयार भी हो गए तो गाँव वाले सांझ सवेरे तेरे फूस के घर में आग लगा देंगे। उसकी माँ को कितना उलहाना सुनने को मिलेगा कि बिना बाप की बच्ची थी, इसलिए इस तरह किया। संस्कार सही नही थे। माँ हरी को समझा रही थी और उसको कुछ भी समझ में नही आ रहा था।

अब हरी ने बिल्कुल उसके घर जाना बंद कर दिया था। राधा छोटी थी पर वो नोटिस कर रही थी। अब हरी दूध देने नही आता था। माँ भी कहती, “दूध पतला बहुत रहता है अब, दूध वाली बदल देंगे।” राधा जब आम के बाग की तरफ जाती थी तो वो पक्के आम जो पेड़ से गिरे होते हैं वो हरी उसको देता था। उसके लिए छिपा के रखता था। लेकिन अब तो वो देने वाला नही था। राधा को लगा उसको उस दिन वो लेटर इस तरह नही फेंकना चाहिए था। राधा का मन शांत हुआ तो उसे लगा की सॉरी बोल दे और उसे समझा दे कि तुम्हारा और मेरा मेल इस तरह होगा जैसे आग और पानी। दो जाति के लोग एक साथ मिल के रिश्ता बना ले वो भी गाँव में वो तो संभव नही है, और मुझे बहुत पढ़ना है लेकिन वो कुछ भी न समझा पाई। फिर धीरे धीरे समय बीतते गया। राधा भी स्टडी के लिए बाहर गई और हरी ने भी शादी कर ली। वो सोचता कि एक बार राधा कहती तो वो दस साल क्या उम्र भर उसका इंतजार कर लेता और जाने से पहले बताया ही नहीं। एक फोटो ही दे देती। यही सब सोचकर हरी का दिल बैठ जाता।

(वर्तमान समय)

इधर राधा किचन में काम समेटकर जा रही थी कि केशव चिल्ला रहा था। जाने कैसे प्रेस वाली ने उसकी सफेद शर्ट को जला दिया था। हे भगवान आज तो केशव मुझे छोड़ेगा नही। वो भागती हुई केशव के पास जा रही थी कि चूल्हा ऑफ करना भूल गई। सासू माँ किचन में आई दूध उबाल मारके गिरने लगा कि मुझे छोड़ के क्यों गई? सासू माँ भी बोलते-बोलते राधा के पीछे गई। अब राधा को कुछ समझ में नही आ रहा था। दोनो माँ-बेटा बोले जा रहे थे। राधा ने सोचा अब लगता है इस घर में उसका गुजारा नही है। बेटे की भी छुट्टी हो रही है। चुपचाप टिकट कटा के मायके चली जायेगी। यहीं सब सोचते-सोचते वह चुपचाप चूल्हे पे गिरे दूध को साफ करने लगी।

तभी माँ का फोन बजा। वो माँ ही थी। हेलो सुनते ही माँ समझ गई कि कुछ हुआ है लेकिन राधा जल्दी माँ को बताती नही थी। माँ ने कहा कि गांव में पुश्तैनी जमीन का कुछ और ही झंझट चल रहा है। उनके स्कूल में परेशानी है। माँ ने कहा कि वो गाँव जाय टिकट वो करवा देंगी। अब राधा का दिल किया कि बिना बताए ही चली जाए लेकिन खानदानी लोग इस तरह नही करते। उन्हे खुद की तकलीफ से घर वालों के मान सम्मान की ज्यादा चिंता होती है। ऐसा पहली बार नही था कि केशव और उसकी मम्मी ने उसको हर्ट किया हो, लेकिन वो हर बार अपनी माँ का चेहरा याद करके शांत हो जाती। लोग क्या कहते, बेटी को कैसे संस्कार दिए कि घर ही न बसा पाई। चूकि राधा केशव से ज्यादा पढ़ी थी तो अगर वो उसे कुछ कहती तो उसका इगो हर्ट हो जाता कि बीवी होकर उसको कुछ कह रही है, जबकि राधा उसके भले के लिए कह रही होती है।

(गाँव)

बहुत साल हो गए, हरी के भी बच्चे हो गए थे। राधा की हाई स्टडी के बाद शादी फिर कुछ दिन जॉब किया फिर गाँव जाने का मौका मिला। दोनो माँ-बेटी और राधा का बेटा सब मिलकर गाँव पहुंचे। सब से मिलना जुलना हुआ। गाँव जाने पर और वो भी सालों पे जाने पे कुछ ज्यादा ही मान सम्मान होता है, सो हो रहा था। फिर खेत पे जाने की बात हुई, तो एक जाना-पहचाना सा चेहरा दिखा। राधा को लगा जैसे इसको जानती हूँ। फिर उसकी बड़ी सी पेट देख के लगा भी नही कि ये वो हो सकता है।जैसे लग रहा था पचास का हो लेकिन उसकी आंखो की चमक सोलह वाली ही लग रही थी। राधा समझ गई, ये हरी ही है। तभी बीस साल के जवान लड़के ने कहा- पिताजी खेत पे पानी पटाना है चलिए। वो बिल्कुल हरी के जैसा ही था। जैसा वो छोड़ के गई थी। उसको लग रहा था जैसे अतीत उसके सामने हो और उसके सामने उसका छोटा सा बेटा। हाय क्या ही सीन चल रहा था। हरी मुस्कुराते हुए चला गया। अभी आता हूँ। पूरे गाँव को पानी खेत में मैं ही सप्लाई करता हूँ। राधा दंग हो गई और गाँव में और खेत देखने लगी। तभी उसी खेत पे पहुंचे सब लोग जिसमे वो पानी की सप्लाई कर रहा था। और राधा का बेटा इधर से उधर भाग रहा था। राधा बात करने में व्यस्त थी और हरी उसके पीछे पीछे घूम रहा था। जाने उनके बीच कोई अलग ही संबंध हो। फिर समय के अभाव में वापिस आना पड़ा। लेकिन जैसे हरी आंखो से कह रहा था समय मिले तो फिर आना।

आज राधा अपने गाँव में थी, अपनी मातृभूमि पर। जाने क्यों अपनी जन्म भूमि को छोड़कर जाना पड़ता है। बहुत बुरा लगता था राधा को ये सब। भगवान जी से कितनी बार नाराज भी हुई। आज राधा खेत पर बैठी थी। अपना बचपन याद कर रही थी। बचपन के लोग और हरी जिसे वो तो नही चाहती थी लेकिन उसकी (हरी) चाहत ने उसको राधा के दिल में जिंदा रखा था।

तभी राधा के बगल में आकर हरी बैठ गया बोला- मुझे याद कर रही थी न। राधा को अभी डर नही था। समाज का या लोगों का क्योंकि वो शादी शुदा थी और हरी का तो जवान बेटा था। बिलकुल उसका ही अक्स। फिर हरी और राधा बात करने लगते हैं। वो बताता है कि कैसे उसने उसके बगल वाली जमीन खरीद ली है। उसने इशारे से दिखाया कि इतने साल में उसने कितनी तरक्की कर ली है। राधा को बहुत अचंभित कर रहा था। ये तो करोड़ों का मालिक है, नीचे जमीन पर बैठा है और घमंड तो इसको छू भी नहीं रहा। हरी ने बताया कि गाँव में लोगों को पैसे भी सूद पे देते हैं। एकाध लाख तो सूद आ जाता है और मूल तो मूल है ही। राधा बस ये सोचे जा रही थी कि एक केशव है, फ्लैट भी किश्त का और गाड़ी भी। सारी सैलरी किश्त में ही जाती है। क्या ही फायदा हुआ इतनी हाई स्टडी करके गाँव घर छोड़कर बाहर जाने का और इतनी जिल्लत अलग। हरी पूछने लगा क्या हुआ? राधा झेप गई और कहा-कुछ नही। फिर राधा घर आ जाती है।

उधर केशव को अपने बेटे की बहुत याद आ रही थी और राधा की भी। सोचने लगता है, “बेकार ही राधा को उस दिन इतना सुना दिया”। फ़ोन लगाने लगता है लेकिन राधा तो फोन लेकर खेत पर गई ही नहीं थी तो फोन उठाया नही। सो केशव डर गया। कहीं राधा वापिस नही आई तो, वो कैसे रहेगा दोनो के बिना। और बिना बताए एयरटिकेट ले कर गाँव आ जाता है। मन ही मन सोचता है कि माँ की बात में आकर नाहक ही अपनी बीवी को इतना सुना देता है। अब चाहे जो भी हो मैं माँ के बहकावे में आकर अपनी बीवी को कुछ नहीं कहूँगा। अपनी बीवी से माफ़ी मांग लूंगा।

राधा सुबह उठी तो उसने देखा केशव कान पकड़कर उसके सामने खड़ा था। राधा ने पहले आंखो को मला लगा की सपना देख रही है लेकिन बेटा जाकर पापा से लिपट गया और फिर तीनों एक साथ थे। राधा ने भी केशव को माफ कर दिया और फिर तीनों वापिस आ गए।