‘पेरेंटिंग टॉर्चर’ (कितना सही कितना गलत )

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‘पेरेंटिंग टॉर्चर’ ये शब्द काफी खतरनाक सा लगता है और ये है भी तो काफी खतरनाक। मैं हमेशा से ही एक ऐसे परिवार में पली हूँ, जिससे मैं अपनी हर तकलीफ साझा कर सकती हूँ। मेरे माता-पिता हमेशा से ही मेरा समर्थन करते आये है। मुझे याद है जब भी मेरी स्कूल में किसी से भी बहस होती थी तो मैं हमेशा कहती थी कि मैं अपनी मम्मी को बताऊँगी क्योंकी मुझें मालुम था कि मेरी मम्मी मेरे साथ हमेशा है।

मगर क्या हो जब आपको हर तकलीफ से बचाने वाले आपके माता-पिता ही आपको टॉर्चर करें! आजकल ऐसे कई मामले सामने आ रहें हैं, जहाँ माता-पिता अपने हिसाब से बच्चों को रखने के लिए इस हद तक पागल हो जाते हैं कि आखिर में वो सिर्फ अपने बच्चे कि मौत देखते है। चाहें वो बच्चों की शादि का मामला हो या उनकी नौकरी का या उनकी पढ़ाई का।

बच्चों को बेल्ट से मारना, डराना, कमरें में बंद कर देना, खाना न देना या और कोई टॉर्चर। ये सब बहुत खतरनाक है और मासूम बच्चे इन सबसे गुजरतें है। उन्हें पता भी नहीं होता कि आखिर वो किससे अपनी बात कहें। इन्हें सोच कर लगता है कि शायद वो बात सच ही है कि “सब बच्चे माता-पिता के काबिल होते हैं पर सब माता-पिता बच्चों के काबिल नहीं होते।”

वो एक आम सा गांव था। कोई खास बात नहीं थी उसमें। मगर उस गांव की एक ईमारत बाकी ईमारतों से ऊँची थी। दरअसल वो उस गांव के मुखिया का घर था और वो खानदानी रईसों में से थे। उस घर में उस परिवार के मुखियाँ, जो उस गांव के भी मुखियाँ थे। बृजधाम वो और उनकी पत्नी मधुलिका, उनके माता पिता और उनके चार बच्चें रहते थे।

बच्चे अब कुछ बड़े हो गए थे। उनकी बड़ी बेटी मानवी जो 23 साल की थी। उनकी शादी तय हो गयी थी। उससे छोटा एक बेटा धर्म जो 21का था। वो उनके साथ उनका बिजनेस संभाल रहा था। फिर एक छोटी बेटी स्तुति जो 19 साल की थी। वो अभी कॉलेज में थी। वो देखने में एक खुशमिजाज और सभी से जल्दी घुलमिल जाने वाली थी। शरीर से दुबली पतली थी। दरअसल वो थोड़ी आलसी प्रवर्ति की थी। उसे इस बात के लिए हमेशा ही अपनी बड़ी बहन जैसा बनने के लिए कहा जाता था। उसकी बड़ी बहन जो उन चुनिंदा लोगों में से आती थी, जो समाज और अपने घरवालों के नजर में एक अच्छी, संस्कारी और सर्वगुण संपन लड़की में से थी।

उनके सर्वगुण संपन लड़की बनने में बहुत बड़ा हाथ डर का था। वो डर जो उनके लिए एक खौफनाक सपने की तरह था। वो डर किसी और चीज का नहीं बल्कि अपने ही पिता का था। जो इतने सालों बाद भी उनके अंदर कायम था। जो सुनने में बहुत छोटी सी बात लगती थी। जब वो छोटी थी तो वो शैतानी करती थी, जिस वजह से उन्हें मार पड़ती थी। पर वो छोटी उम्र में भयानक मार पड़ना कि बच्चा अभी तक उससे अपने सपने में भी डरे, कोई छोटी बात नहीं थी।

फिर आता है सबसे छोटा बेटा अन्य जो 14 साल का था। उसे पढ़ने के अलावा बाकी सभी काम बहुत पसंद थे। रात का समय था मानसी जल्दी जल्दी बिस्तर लगा रही थी कि तभी स्तुति आकर बिस्तर पर लेट गयी।

  • मानवी- “तुम देख नहीं रही हो क्या कि अभी मैं लगा ही रही थी बिस्तर, फिर क्यों लेटी?”
  • स्तुति- “अरे दीदी यार, हो तो गया। हम ही तो सोएंगे न इस पर!”
  • मानवी भी बैठते हुय कहती है, “इंसानों की तरह रहना सिख लो समझी!”
  • स्तुति- “अरे अन्य कहाँ गया? आज दिख नहीं रहा वो।”
  • मानवी- “तुम्हें कुछ मालुम भी होता हैं या नहीं? उसके फिर से कम नंबर आये है तो उसे फिर पिटाई पड़ी है और सजा मिली है। आज सारी रात कमरें में बंद रहेगा वो।”
  • स्तुति- “और खाना?”
  • मानवी ने अपना गर्दन ना में हिला दिया।
  • स्तुति- “ये तो गलत हुआ उसके साथ।”
  • धर्म अंदर आते हुए, “और यहाँ सही किसके साथ होता हैं?”
  • मानवी उसकी तरफ देखते हुए कहती है, “तुम आ गए। कैसी रही तुम्हारी मिटिंग?”
  • धर्म- “बकवास, मैं यहाँ सिर्फ आपको ये पूछने आया था कि माँ कहाँ है?”
  • स्तुति- “वो इस वक्त कहाँ होती है भईया? दादी के पास।”
  • धर्म चला जाता है।
  • स्तुति- “भईया के साथ भी बुरा हुआ ना। उन्हें शुरु से ही आर्ट में इंटरेस्ट था और अब कहाँ वो बिजनेस संभाल रहे है, जो उनसे संभाला भी नहीं जा रहा और पापा की नजरों में वो नकारा साबित हो रहें हैं।”
  • मानवी- “वो सिख ही लेगा और वो वैसे भी आर्ट की लाईन में क्या ही कर लेता?”
  • स्तुति- “आप पापा के खिलाफ कभी कोई बात उनके पीठ पिछे भी नहीं कर सकती क्या?”
  • मानवी- “और जो बातें करके कोई फायदा नहीं है, उसे क्यों करें? अब सो जाओ अभी!”
  • स्तुति- “आपके साथ भी गलत हुआ है दीदी। मैं महसुस कर सकती हूँ।”
  • मानवी उसे घूरकर देखती है तो स्तुति हॅसने लगती है और कुछ देर में वो दोनों सो जाती है।

अगली सुबह,

मानवी अपनी माँ के साथ रसो में काम करा रही थी, तो वहीं उसकी दादी कुछ मसाला पिस रही थी। तभी स्तुति फटाफट दौड़ते हुए आयी और रसोई से एक पराठा उठा कर फिर से भाग गयी।

  • उसकी दादी अपनी गर्दन ना में हिलाते हुय कहती है, “कोई संस्कार नहीं है इस लड़की में। हमेशा जल्दी में रहती है और आते ही सो जाती है। कोई काम की नहीं है। उसे कभी अच्छे से कुटाई नहीं पड़ी है ना बृज से, इसलिए। पता नहीं मेरे पौतों के ही पिछे क्यों पड़ा रहता है ये बृज?”
  • तभी बृजधाम वहाँ आते हुए कहते है, “क्योंकी वो दोनों इसी लायक है।”

वो दिखने में बड़े ही रोबदार थे। लंबे और मजबूत शरीर के साथ एक रोबदार मूँछ। स्तुति बाहर निकलती है तो उसकी सहेली उसका इंतजार कर रही थी। दोनों जल्दी से कॉलेज के लिए चली गयी। ये सच था कि बृजधाम स्तुति पर कम ध्यान देते थे। इसकी वजह भी थी कि वो अपने दोनों बेटों पर ज्यादा ध्यान देते थे, जिससे वो बच जाती थी। उसे बचपन में कभी कभार ही मार पड़ती थी।

स्तुति कॉलेज गयी और वो एक जगह पर बैठ गयी। उसका लेक्चर बस शुरु होने ही वाला था। तभी पिछे से उसे एक धिमी सी आवाज आयी “ओय भाभी आ गयी।” वो पिछे पलट कर देखती है। एक लड़का जो उसी के उम्र का था। वो दिखने में आकर्षक था और उसके आसपास बैठे हुए लड़के मुसुकुरा रहे थे। उन्ही में से किसी ने अभी स्तुति को भाभी कहा था।

Back view of large group of students paying attention on a class at lecture hall.

स्तुति उस लड़के को जानती थी। वो करीब एक साल से स्तुति के पिछे था। उसका नाम गर्व था। स्तुति कुछ नहीं कहती है और चुपचाप आगे की तरफ देखने लग गयी। कुछ देर में उनका लेक्चर खत्म हो गया। वो और उसकी दोस्त बातें करते हुए कैंटीन की तरफ जा रही थी कि तभी पिछे से गर्व आते हुए कहता है-

  • गर्व- “हाय स्तुति आज तुम लेट हो गयी?”
  • स्तुति- “हाँ। तुम तो जल्दी आये थे ना। तो अपने से मतलब रखो।”
  • गर्व- “मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था।”

फिर वो चला जाता है। तभी स्तुति की दोस्त कहती है-

  • स्तुति की दोस्त, “तो क्या सोचा है तूने इसके बारे में कबसे तेरे पिछे है ये यार।”
  • स्तुति- “तेरा दिमाग खराब है? अगर पापा को पता चला न तो….।”
  • उसकी दोस्त बीच में ही कहती है, “हाँ तो कौन से पेरेंट बच्चों के अफेयर के लिए मान लेते है। अगर तू उसे पसंद करती है तो बता।”

स्तुति चुप हो गयी। हाँ ये सच था कि वो दिखने में आकर्षक था। हमेशा ही स्तुति के साथ वो अच्छा भी था। कभी उसने बाकी आवारा आशिक की तरह उसका पिछा भी नहीं किया था। ना ही कोई बदतमीजी की थी।

  • उसकी दोस्त फ़िर कहती है, “अरे कौन सा मै तुझें उसके साथ शादी करने के लिए बोल रही हूँ, जो इतना सोच रही है।”
  • स्तुति- “छोड़ यार चल कुछ खाते है।”

कुछ देर में स्तुति वापस घर आ गयी।

रात का समय,

मानवी खाना खा रही थी तभी अन्य वहाँ आता है।

  • अन्य- “दीदी थोड़ा सा खिलाना!”
  • मानवी उसे खिला देती है। तभी पिछे से स्तुति कहती है, “क्यों अन्य कल रात को खाना नहीं मिला तो आज ही खायेगा क्या कल के भी हिस्से का?”
  • अन्य- “कल तो मुझे खाना नहीं मिला और आज शायद भईया को नहीं मिलेगा।”
  • स्तुति- “क्यों क्या हुआ?”
  • मानवी- “कुछ खास नहीं। वो कल की मिटिंग में बात नहीं बनी ना तो इसलिए धर्म को डाट पड़ रही है पापा से।”
  • स्तुति- “हाँ और उनकी डांट सबको पता है कैसी होती है? मुझे समझ नहीं आता वो भईया को जबरदस्ती बिज़नेस में क्यों लगा रहें है?”
  • मानवी- “हो गया तुम्हारा! तो चलों बिस्तर लगाओ।”

स्तुति मुँह बना कर बिस्तर लगाने लग गयी। तभी उसके मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन आया। उसने देखा उसे इंस्टा पर गर्व ने फ़ॉलो किया था। वो फिर कुछ सोच में पड़ गयी। उसने उसे रिमूव करके ब्लॉक कर दिया।

अगले दिन कॉलेज में,

सभी बैठे हुए थे और लेक्चर शुरु था। तभी गर्व अचानक से स्तुति की बगल में आ कर बैठ गया।

  • गर्व- “मुझे बुरा लगा।”
  • स्तुति- “किस बात का?”
  • गर्व- “तुमने मुझे ब्लॉक क्यों किया?”
  • स्तुति- “मेरी मर्ज़ी, मेरा अकाउंट!”
  • गर्व- “फिर भी, मुझें बुरा लगा।”
  • स्तुति- “हाँ, तो?”
  • गर्व- “तुम मेरे से इतना दूर क्यों भागती हो? बाकी लड़कों से तो तुम्हें कोई दिक्क़त नहीं होती बात करने में।”
  • स्तुति- “अच्छा, तो तुम क्यों मेरे पिछे पिछे करते रहते हो?”
  • गर्व- “ओके फाइन, मेरा तुम पर क्रश है! अब तुम मेरे साथ ऐसे तो मत करो यार।”
  • स्तुति- “तुम्हारे इस क्रश को न मैं क्रश कर दूंगी समझे।”
  • गर्व- “मैं तुम्हें इतना बुरा लगता हूँ क्या? मै कौन सा तुम्हें जबरदस्ती अपनी गर्लफ्रेंड बना रहा हूँ। चिल्ल यार बस नॉर्मल बिहेव तो करो यार। मुझें दुख होता है।”
  • स्तुति- “तुम कुछ पागल हो क्या? क्रश को जाकर कौन बता देता है कि तुम मेरी क्रश हो। मुझसे बात करो।”

गर्व बेचारा सा मुँह बना लेता है।

  • स्तुति- “ओके फाइन, हम दोस्त है। इससे आगे कोई उम्मीद मत रखना मुझसे।”
  • गर्व एक दम से खिल गया और कहता है, “सच तो तुम इंस्टा से मुझें अनब्लॉक करो।”
  • स्तुति- “अपना फोन चैक करो!”

गर्व अपना फोन चैक करता है तो उसे सच मैं स्तुति ने अनब्लॉक कर दिया था और खुद से उसे फॉलो भी किया था। गर्व की खुशी का तो ठिकाना नहीं रहा और वो जोर से चिल्ला उठा, जिसपर उसे डांट भी पड़ गयी। वही स्तुति मुसुकुरा रही थी।

सब कुछ ठीक जा रहा था। स्तुति और गर्व की दोस्ती हो गयी थी। वो दोनों इंस्टा पर काफी बात करते थे। पर स्तुति का घर पहले जैसा ही था। उसके पिता ने उसके बड़े भाई धर्म पर जबरदस्ती बिज़नेस को थोपा था। छोटा अन्य को पढ़ाई के लिए दिया जा रहा प्रेसर बढ़ता जा रहा था और मानवी उसे तो जैसे एक गुड़ियाँ की तरह रखा था। जिसके अपने कोई विचार ही नहीं थे। वहीं स्तुति इन सबसे थोड़ी अलग सी थी। वो खुद में ही व्यस्त थी। इस सबके बीच ही सबकी जिंदगी चल रही थी। इसी बीच नवरात्रि आ गयी।

स्तुति अपनी दोस्त के साथ कैंटीन में थी।

  • स्तुति- “और पायल तेरी तैयारी हो गयी नवरात्रे की?”
  • पायल- “हम्म चल रही है। कल से है न वो तो और तू क्यों हर साल नवरात्रे पर इतना खुश हो जाती है?”
  • स्तुति- “मुझे पसंद है ये नवरात्रों के दस दिन। अभी देखों गांव में क्या मेला लगेगा और पापा तो इस बार भी गांव के मुखियाँ है तो माता रानी की पहली आरती भी उन्ही के हाथों होगी।”
  • तभी वहाँ गर्व आता है और कहता है, “इस बार मैं भी आऊंगा तुम्हारे गांव।”
  • स्तुति- “आ जाना। पर मैं वहाँ तुम्हें पहचानूँगी भी नहीं और कोई फालतु उम्मीद मत रखना मुझसे कि हम साथ घूमेंगे, ये वो। कुछ नहीं। हम वहाँ बात भी नहीं करेंगे।”
  • गर्व- “अरे पर क्यों?”
  • स्तुति- “क्योंकि अगर किसी ने देख लिया न तो तुम्हारी ख़ैर नहीं।”

नवरात्रे भी शुरु होते हैं। स्तुति ने हर साल की तरह इस साल भी दस दिन का व्रत रखा।
स्तुति घर की सफाई कर रही थी कि तभी उसने छत से किसी के रोने की आवाज सुनी।वो उस तरफ गयी तो उसने देखा वहाँ मानवी रो रही थी।

  • स्तुति- “दी आप रो रही है, क्यों?”
    मानवी- “कुछ खास नहीं। तू अपना काम कर।”
    स्तुति- “बोलो न दीदी, क्या हुआ?”
    मानवी- “बोला न, कुछ नहीं, तू जा न।”
    स्तुति- “आज आप उस माधव के यहाँ गई थी ना। आपका मंगेतर। वही हुआ ना कुछ।”
    मानवी- “कुछ खास नहीं हुआ। बस हमेशा की तरह ताने, जो उनकी माँ मुझें देती है। पर मैं ये सोच रही थी कि अगर अभी से ही ये सब हो रहा है तो क्या मैं पूरी जिंदगी यही सब झेलूँगी जो माँ ने झेला?”
  • स्तुति- “तो आप ये रिश्ता मना क्यों नहीं करती? क्यों सीरियल वाली चीजे कर रही हो?”
    मानवी- “मैं कुछ नहीं कर सकती बच्चा। मैं पापा के सामने बोल ही नहीं सकती।”

और दोनों बहने चुप हो गई। दोनों को ही मालुम था कि वो लोग बस रो सकते है और कुछ नहीं कर सकते क्योंकी उनकी लड़ाई किसी बाहर वाले से नहीं बल्कि खुद के पिता से थी, जिनसे वो सबसे ज्यादा डरते थे।

नवरात्रे के दिन भी अपनी गती से बीत रहे थे। ये दिन कुछ ज्यादा ही जल्दी बीतते है। उस दिन नवरात्रे का दूसरा दिन था। ‘माता ब्रह्म्चारिणी‘ की आराधना हो रही थी। स्तुति भी तैयार होकर मंदिर में गयी थी। उसके पिता माता की पहली आरती कर रहे थे। वहाँ गर्व भी आया था। पर वो स्तुति से कुछ दूर खड़ा था। मगर वो स्तुति को मैसेज कर रहा था। पर स्तुति अपना फोन घर छोड़ कर आयी थी। कुछ समय बाद उसकी नजर गर्व पर पड़ ही गयी, मगर फिर उसने नजरें हटा ली। पर गर्व ने कुछ देर बाद भीड़ कम होने पर उसकी तरफ एक चिठ्ठी फेक दी।

स्तुति ने उसे उठाया और पढ़ा “अच्छी लग रही हो। पर पागल हो क्या, फोन कहाँ है तुम्हारा? मैं कब से मैसेज कर रहा हूँ!” उसे पढ़ कर स्तुति को हँसी आ गयी। उसे देख कर गर्व भी मुसुकुरा देता है।

कुछ देर में स्तुति घर लौट आती है। वो अपने कमरें की तरफ बढ़ ही रही थी कि उसके पिता की कड़कती हुई आवाज आयी।

  • बृजधाम- “कौन था वो?”
  • स्तुति(घबराते हुय)- ” ‘कौन’ कौन था?”
  • तभी वो अपनी पत्नी को बुलाते है- “मधुलिका…मधुलिका”
  • मधुलिका- “जी”
  • वह उन्हें एक जोरदार थप्पड मारते है और कहते है, “यही संस्कार दिये है तुमने अपनी बेटियो को। जो मेले में चिठा चिठ्ठी करके आशिकी चलाएं!”

मधुलिका सन्न थी उन्हें तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।

  • स्तुति (घबराते हुय)-“पापा वो सिर्फ मेरा दोस्त था।”
  • बृजधाम ने उसे एक चाटा मारा और कहा, “चुप। आज तुझें मैं बताता हूँ ज्यादा उछल कूद करने का परिणाम!”

और वो स्तुति को लगभग घसीटते हुए एक कमरें में ले गए। फिर 1 घंटा तक उस कमरें से स्तुति के चिल्लाने और रोने की आवाज और उसके पिता के दहाड़ने और बैल्ट और डंडे की आवाज आती रही। उस घर में किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि वो इसके विरुद्ध जा कर इस अत्याचार को रोके।

लगभग एक घंटे बाद बृजधाम उस कमरें से निकले और उन्होंने उस कमरें को बंद कर दिया। उन्होंने लगभग सबको चेतावनी देते हुए कहा, “अगर किसी ने भी इस कमरें को खोलने की कोशिश करी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!” उन्होंने अपने एक ख़ास आदमी को उस कमरें के बाहर खड़ा कर दिया।

रात घनी हो चुकी थी। स्तुति की कभी कभी धिमी सिसकियों की आवाज आ रही थी शायद उसमें रोने की भी ताकत नहीं बची थी। उस कमरें में पूरा अंधेरा था। वो बिस्तर के एक कोने में आधी बेहोशी की हालत में लेटी हुई थी। उसके चेहरों पर चोट के निशान थे और सर से खून निकल रहा था। जैसे कि उसके सर को बहुत बार दिवार से पटका गया हो। उसके गाल पर थप्पड़ो के निशान थे। उसके कपड़े कही-कही से फ़टे हुय थे। जो शायद बार बार डंडे से मारते हुए फट गए थे। उसका पूरा शरीर नीला पड़ गया था और खून भी निकल रहा था।

चार दिन बीत गये और स्तुति चार दिन से उसी कमरें में बंद थी, जिन्दा या मुर्दा किसी को नहीं पता। उस कमरें के बाहर बृजधाम ने अपना एक चौकीदार खड़ा कर रखा था जो किसी को भी अंदर नहीं जाने देता था। घर में सारे काम इतने समान्य ढंग से हो रहे थे जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं था। पांचवें दिन बृजधाम के पिता ने कमरा खुलवाया। और जैसे कि सभी को उम्मीद थी, स्तुति इस दुनिया से चल बसी थी। उस दिन नवरात्रे की सप्तमी थी। एक तरफ माता की विशाल अराधना हो रही थी तो दूसरी तरफ स्तुति की चिता जल रही थी।