“एक विदाई ऐसी भी”

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Story

आज का दिन बहुत बिजी था बहुत ही थकान सी महसूस हो रही थी …। लग रहा था जाने कब घर आए और अपने बिस्तर पे तकिए के अंदर सर को घुसा के सो जाएं…। घर आने से पहले एक हार्डवेयर की दुकान थी, जो रोज खुली रहती थी ..। आज शटर गिरी हुई थी …। बंद तो नही थी, अधखुली सी थी। मेरा कलेजा धक से रह गया जाने क्यों … जवाब तो मेरा दिल जानता ही था, पर दिल गवाही ही नही दे रहा था …। ऐसा नही हो सकता अभी थोड़ा टाइम है … ऐसा सोच के मैं मन को बहलाती रही। घर भी गयी, तकिया भी मिल गया पर सुकून तो उस हार्डवेयर की दुकान में ही रह गया…।

आज जानू (जान्हवी) डॉक्टर के पास जा रही थी … डॉक्टर्स के पास जाना तो जैसे रुटीन चार्ट बन गया था …। वो बहुत अच्छे से तैयार हुई, छोटी सी बिंदी लगाई, लिपस्टिक लगाई थोड़ा-थोड़ा मेकअप किया ..उसके भाई ने जब उसको सैंडल को निहारते देखा तो तुरंत उसके पैर में सैंडल पहना दी और गोद में उठा के उसको गाड़ी में ले गया …। क्योंकि पैर ने पिछले दस दिन से काम करना ही बंद कर दिया था …।

पापा चुपचाप गाड़ी चला रहे थे दिमाग में बहुत सारे तूफान चल रहे थे। आज सुबह ही जानू ने लड़ाई कर ली थी। पापा, आप मेरा अच्छे से डॉक्टर्स से ईलाज नही करा रहे हैं। आप चाहते ही नही कि मैं ठीक हो जाऊ। इस बात पे पापा का दिल भर आया था। जब जानू का जन्म हुआ था कितने सारे फिक्स्ड डिपॉजिट करवाए थें, कि जानू की विदाई इस तरह करेंगे कि सारा मुहल्ला देखता रह जायेगा। जाने कब वो बड़ी हो गई पता ही नही चला। भाई की जान बसती थी जानू में, मम्मी ने इतना प्यार लुटाया था कि किचन का कोई काम नही सीखा। दादी कुछ कहती तो जानू हँस देती कि मम्मी को भी ससुराल ले जाऊंगी।

गाड़ी हॉस्पिटल के आगे पहुँच चुकी थी। जानू को आज मम्मी ने डाटा कि तुम पापा से कैसे बात करती हो? तुम्हारे समझ में भी आता है। जितने फिक्स्ड डिपॉजिट थे तुम्हारे और तुम्हारे भाई के, सारा खत्म हो चुका है और उतना ही कर्जा उठा रखा है तुम्हारे पापा ने। जानू सकते में आ गई। मैने गुस्से में पापा को ज्यादा बोल दिया। वो भी क्या करती डॉक्टर्स कुछ बात बताते नही, मम्मी पापा भी नही बता रहे थे। वो डॉक्टर्स के पास जा रही है, दवाई भी खा रही है, लेकिन किसी का भी असर क्यों नही हो रहा है।

देश के सबसे बड़े हॉस्पिटल के सामने सब खड़े थे। सबको हकीकत पता थी। सब नाउम्मीद थे लेकिन बस जानू की खुशी के लिए सब डॉक्टर्स के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन जानू नाउम्मीद न हो। जानू ने चहकते हुए डॉक्टर को हेलो बोला। आज मैं आपको कुछ नही कहूंगी। डॉक्टर ने पूछा, “क्यों बेटा “? बस आज मैं लड़ना नहीं चाहती।आप मुझे जल्दी से ठीक कर दो। मेरी सारी सैंडल छोटे हो रहे हैं”। डॉक्टर ने मुंह घुमा के अपने चेहरे पे आएं आंसू को पोछा और उसका चेकअप किया और घर जाकर आराम करने को कहा।

जानू के मम्मी-पापा को कहा कि, “जब जानते हैं कि उसके सारे ऑर्गेंस काम नही कर रहे हैं, फिर क्यों उसे यहाँ लाकर परेशान कर रहें हैं”? इस बार भाई ने कहा, “उससे क्या कहें कि अब तुम कुछ दिन की मेहमान हो। जो दो दिन में जायेगी वो तो एक ही दिन में चली जायेगी”। डॉक्टर भी निशब्द हो गय। फिर सब घर की ओर रवाना हो गए।

जानू ने कहा भूख लगी है। सबने एक-दूसरे के चेहरे को देखा। जाने कितने दिनों से घर में किसी ने चैन की रोटी भी नही खाई। दलिया खिचड़ी खा कर जानू और चिड़चिड़ी हो गई थी। डॉक्टर्स ने तो कह दिया था इसको जो खाना है खाए क्योंकि अब कुछ नही हो सकता था, तो पापा ने पूछा, “क्या खायेगी मेरी बेटी”? जानू ने तुरंत कहा मसाला डोसा..। चूकि वो रेस्टुरेंट पापा के दोस्त की थी और उन्हें सब पता था तो उन्होंने पैसे भी नही लिए। जानू कहे जा रही है, “पापा पहले क्यों नही बताया? अब मैं हमेशा इसी जगह डोसा खाने आया करूंगी।

गाड़ी में बैठे तीनों लोग मुंह घुमा के आसू पोंछ रहे थें। उसको गोद में लेकर घर ले जा रहे थे। पड़ोसी उसको निहार रहे थे कि जाने कब ये आंखो से ओझल हो जाए और वो सबको हेलो-हाय कहती हुई अंदर चली गई। जब भी मैं उस दुकान वालें को देखती और वो मेरे बेटे के साथ मुझे देखते तो बड़े गौर से निहारा करते थे और कभी-कभी तो टोक भी दिया करते थे। मेरी बेटी बिल्कुल ऐसी ही नटखट थी। मैं भी उसको बड़े प्यार से स्कूल ले जाता था। और कई बातें बताते। जाने क्या ही था उनकी आंखों में- एक डर अनदेख सा। मै उनके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। जानती बस मैं इतना थी कि ये भाई साहब हमारे सोसाइटी में रहने आए हैं और बहुत ही नेक दिल के हैं..।

मेरे पति भी अकसर दुकान में जाया करते थे। वो बताते थें कि भाई साहब बस अपनी बेटी की बातें करते है। मेरी बेटी ये मेरी बेटी वो। बहुत लकी है न इनकी बेटी। मैं भी बोलती हाँ। धीरे धीरे मेरी उनकी बीवी से भी दोस्ती मतलब, हेलो-हाय होती रही।

आज दो दिन के बाद दुकान खुली मिली तो भाई साहब भी नही थे। उनके बच्चे थे। दिल किया कि जाकर पूछे पापा क्यों नही आए? लेकिन दिल बैठा सा जा रहा था। बच्चों के चेहरे बहुत उदास से लग रहे थे। दिल बैठ सा गया। चुपचाप घर आ गई। गली में अजीब सा सन्नाटा सा छाया था। किससे पूछूं? उनकी वाइफ का नंबर तो था, पर उंगलियां काम ही नहीं कर रही थी। चुपचाप लेटी थी, जाने क्या हुआ होगा कि अचानक से इनका फोन आया …। जानती हो हार्डवेयर वाले भईया गाँव गए हैं, बीवी और बेटी के साथ।

जानू सुबह उठी तो देखा घर में सब पैकिंग कर रहे थे। उसके सारे पसंदीदा सामान को समेटा जा रहा था। वो कुछ समझ नही पा रही थी। मम्मी भी रो रही थी और पापा भी। भाई भी रो रहे थे। लिखते वक्त मैं भी रो रही हूँ। सबने बताया कि दादू की तबियत बहुत खराब है। उन्हे गाँव जाना होगा। जाने कब आना हो इसलिए तुम्हारे सारे सामान को समेट रहे हैं।

अच्छा गाँव जाना है। ठीक हुआ, मेरे मेकअप किट और सैंडल्स रख दो। मेरे पैर काम करेंगे तो चलूंगी न…। मम्मी -पापा फफक कर रोने लगे। उन्हें समझ में ये नही आ रहा था कि कैसे बताए वो कितने बदकिश्मत मम्मी-पापा हैं। बेटी की विदाई कैसी सोची थी और कैसा हो रहा है। कितने गहने और कपड़े उसके लिए ले रखे थे। लेकिन क्या करे किस्मत के आगे मजबूर थे।

लंबे बाल कभी भी उसने नही काटे थे लेकिन थेरपी के टाइम उसको काटने ही पड़े। कितनी मन्नते की तब जाकर बाल कटाने के लिए तयार हुई थी और जब गाँव में सबको पता चला कि अब डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया है तो दादा जी ने घर बुला लिया। कि यहाँ ले आओ, कम से कम अपनी जमीन, अपनी मिट्टी तो नसीब हो।

गाँव जाने वाले दिन भाईयों ने तैयार किया। एक भाई ने सैंडल पहनया, आसू रुक नही रहे थे। वो कह रही थी। दादा जी के ठीक होते ही हम आ जायेंगे तुम दोनो ठीक से खाना खाना। तब तक छोटे वाले ने राखी लाकर दी। उसने कहा, “पागल हो क्या, उससे पहले मैं आ जाऊंगी। दादा जी बूढ़े हैं उनको तो जाना ही है। इस तरह रो रहे हो जैसे मैं ससुराल जा रही हूँ” और मम्मी पापा जोर-ज़ोर से रोने लगे। चारों लोग रो रहे थे। कुछ पडोसी भी आ गए। सबकी आँखे नम थी और जानू गाँव चली गई।

इन्होंने फोन किया, “जानती हो, हार्डवेयर वाले भईया की बेटी परसो खत्म हो गई”। और मैं निशब्द हो गई….।

(सच्ची घटना पर आधारित)

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