LGBTQIA Community के लोगों के परिजनों ने डीवाई चंद्रचूड़ को लिखा पत्र

गीता लूथरा ने कहा कि, जी20 के 12 देशों में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल चुकी है, हम पीछे नहीं रह सकते।

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एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय (LGBTQIA Community) के लोगों के परिजनों ने देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) को एक पैगाम लिखा है। इस पत्र में मुख्य न्यायाधीश से अपील की गई है कि, समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी जाए। बता दें कि, समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सुनवाई कर रहा है। वही, केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है। सरकार का तर्क है कि शादी को कानूनी मान्यता देना विधायिका का काम है।

दो सदस्यों ने सुनवाई में ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार (25 अप्रैल) को सुनवाई के चौथे दिन उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के दो सदस्यों ने सुनवाई में ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud), न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Hima Kohli) और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (PS Narasimha) अदालत कक्ष में उपस्थित रहे जबकि न्यायमूर्ति एस के कौल (SK Kaul) और न्यायमूर्ति एस आर भट्ट (SR Bhat) ने ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई में हिस्सा लिया।

12 देशों में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल चुकी है:गीता लूथरा

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चौथे दिन सुनवाई शुरू हो गई है। सुनवाई के दौरान एलजीबीटी समुदाय का पक्ष रख रहीं वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने कहा कि, जी20 के 12 देशों में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल चुकी है। हम पीछे नहीं रह सकते, चाहे एक व्यक्ति की बात ही क्यों न हो, हम उनसे उनके अधिकार नहीं छीन सकते।

‘शादी की विकसित होती धारणा को फिर से परिभाषित कर सकते है’

न्यायमूर्ति एस आर भट्ट ने कहा कि, उन्होंने देखा है कि संविधान की ‘मूल संरचना’ की महत्वपूर्ण अवधारणा देने वाले ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में पूरे फैसले समेत दस्तावेजों के चार से पांच खंड मामले में दाखिल किए गए है। सीजेआई ने पूछा, ‘हमने उच्चतम न्यायालय के वेब पेज पर केशवानंद भारती मामले के सभी खंड तथा उसे जुड़ा सबकुछ जारी किया है। इसे यहां किसने शामिल किया?’ उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर 20 अप्रैल को सुनवाई में कहा था कि, सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद वह अगले कदम के रूप में ‘शादी की विकसित होती धारणा’ को फिर से परिभाषित कर सकते है।

बार काउंसिल ने किया विरोध

वही, केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘शहरी संभ्रांतवादी’ विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए। रविवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी विभिन्न राज्यों की बार काउंसिल के साथ संयुक्त बैठक की। इस बैठक में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई कि, सुप्रीम कोर्ट को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का मामला विधायिका के लिए छोड़ देना चाहिए।