सभी जानते हैं कि जब सीता जी के पिता राजा जनक ने सभा में यह घोषणा की थी कि जो कोई शिव धनुष पर बाण का संधान कर लेगा, उसके साथ सीता का विवाह कर दिया जाएगा। श्री राम द्वारा तोड़े गए इस धनुष को पिनाक धनुष के नाम से जाना जाता है। आइये इस लेख में जानते है इस धनुष से जुड़े तथ्य
पिनाक धनुष की उत्पत्ति की कथा
शास्त्रों के अनुसार एक बार महर्षि कण्व ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। अपने ध्यान में इतने गहरे खो गए कि वर्षों तक बिना हिले तपस्या करते रहे। जिससे उनके शरीर पर दीमको ने बाँबी बना ली। उस बाँबी पर बांस का एक पेड़ उग आया, जो साधारण नहीं था। ब्रह्म देव ने महर्षि कण्व की तपस्या से खुश होकर उन्हें उनके मनचाहे वरदान प्रदान किये और उस बांस को भगवान विश्वकर्मा को दे दिए।
इनसे विश्वकर्मा जी ने 2 शक्तिशाली धनुष शारंग और पिनाक बनाए। जिसमें से श्री हरि विष्णु को उन्होंने शारंग और भगवान शिव को पिनाक धनुष प्रदान किया। भगवान शिव ने इस धनुष को त्रिपुरासुर को मारने में उपयोग किया और देवों को सौंप दिया। जब देवों का समय खत्म हुआ तो देवों ने यह धनुष राजा जनक के पूर्वज देवरात को सौंपा गया। देवताओं ने इस धनुष को महाराजा जनक जी के पूर्वज देवरात को दे दिया। शिवजी का वह धनुष उन्हीं की धरोहर स्वरूप जनक जी के पास सुरक्षित था। इस शिव-धनुष को उठाने की क्षमता कोई नहीं रखता था।
एक बार देवी सीता जी ने इस धनुष को उठा दिया था, जिससे प्रभावित हो कर जनक जी ने सोचा कि यह कोई साधारण कन्या नहीं है। अत: जो भी इससे विवाह करेगा, वह भी साधारण पुरुष नहीं होना चाहिए। इसी लिए ही जनक जी ने सीता जी के स्वयंवर का आयोजन किया था और यह शर्त रखी थी कि जो कोई भी इस शिव-धनुष को उठाकर, तोड़ेंगा, सीता जी उसी से विवाह करेंगीं । उस सभा में भगवान श्री राम ने अंततः शिव-धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था।