जाने समुंद्र मंथन से निकली, इन 14 बहुमूल्य वस्तुओं का हिन्दू धर्म में महत्त्व

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विष्णुपुराण में समुद्र मंथन का पूरा उल्लेख किया गया है। भगवान श्री हरि विष्णु जी के कहने पर देवताओं ने दानवों के साथ समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन में निकले अमृत कुंभ के बाद देवताओं में और दानवों में विवाद हो गया था। लेकिन समुद्र मंथन में अमृत कलश के अलावा 13 अन्य रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इन सभी रत्नों का इंसान के जीवन में बहुत महत्व है। जानें समुद्र मंथन से प्राप्त 14 बहुमुल्य रत्नों के बारे में

हलाहल

इसे ब्रह्माण्ड का सबसे घातक विष माना जाता है। इसकी तीव्रता स्वयं शेषनाग के विष से भी अधिक मानी गयी है। इसकी तुलना महादेव के तीसरे नेत्र की ज्वाला के 100वें भाग से की गयी है। सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। यहीं से उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

ऐरावत

चार दांतों और पांच सूंडों वाले इस अद्भुत श्वेतवर्णित गज का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ। ऐरावत का अर्थ है “इरा”, अर्थात जल से उत्पन्न होने वाला। इसे देवराज इंद्र ने पुनः अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया।

कामधेनु

कामधेनु को प्रथम गौ कहा गया है। इनका एक नाम सुरभि भी है। यही नंदिनी गाय की माता भी हैं। कामधेनु में सभी देवताओं का वास माना गया है। इन्हीं से समस्त गौ और महिष (भैंस) जाति की उत्पत्ति हुई।

उच्चैःश्रवा

इसे अश्वों का राजा कहा गया है। इनके सात मुख थे और इनका रंग पूर्ण श्वेत था। इसकी शक्ति अपार बताई गयी है और इसे मन की गति से चलने वाला अश्व कहा गया है।

कौस्तुभ मणि

सूर्य की आभा को भी फीकी कर देने वाली ये मणि संसार में सर्वश्रेठ मानी जाती है। देवों और दैत्यों ने इसे श्रीहरि को प्रदान किया। ये मणि सदैव श्रीहरि के ह्रदय के पास रहती है।

कल्पवृक्ष

ये एक अद्भुत दिव्य वृक्ष है जो सभी कामनाओं को पूर्ण करता है। कहा जाता है कि इसके नीचे बैठ कर जो कुछ भी मांगा जाए वो प्राप्त होता है। इस वृक्ष को अनश्वर भी माना गया है। इसे देवताओं ने प्राप्त किया और इसकी स्थापना स्वर्ग के नंदन वन में की गयी।

रम्भा

रम्भा को प्रथम अप्सरा माना जाता है। इनका रूप अद्वितीय था और ये सभी अप्सराओं की प्रधान थी। इन्हे इंद्र ने स्वर्गलोक में रख लिया। इनका विवाह कुबेर के पुत्र नलकुबेर से हुआ।

महालक्ष्मी

भगवान विष्णु की सहगामिनी। समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के कारण इन्हे सागर कन्या भी कहा गया। महर्षि दुर्वासा के श्राप से “श्री” अर्थात माता लक्ष्मी का लोप हो गया जिससे समस्त सृष्टि धन-धन्य से शून्य हो गयी। समुद्र मंथन से उत्पन्न होने पर देव और दैत्य इनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए, किन्तु तब ब्रह्मा जी ने सब को उनकी वास्तविकता से अवगत करवाया। बाद में माता लक्ष्मी ने श्रीहरि को अपने पति के रूप में चुना और पुनः वैकुण्ठ लौटी।

वारुणी

समुद्र मंथन की कथा के अनुसार ये एक देवी थी जिन्होंने वरुण को अपने पति के रूप में चुना। आम तौर पर इसे मदिरा के रूप में भी वर्णित किया गया है। वर्णन है कि वरुणि मदिरा को दैत्यों ने अपने अधिकार में ले लिया। अमृत की रक्षा के लिए मोहिनी रुपी भगवान विष्णु ने इसी वारुणी को दैत्यों को पिला दिया था जिससे वे अपनी चेतना खो बैठे और देवों ने अवसर का लाभ उठा कर अमृत प्राप्त कर लिया।

चन्द्रमा

ब्रह्मा जी के अंश और महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र चंद्र को भी रत्न के रूप में मान्यता प्राप्त है। समुद्र मंथन से निकलने के पश्चात इनकी गिनती देवताओं में हुई और महादेव ने इन्हे अपने शीश पर धारण किया। इन्होने ही स्वर्भानु (राहु-केतु) के छल के बारे में मोहिनी रुपी श्रीहरि को बताया था।

श्राङ्ग

इसे महादेव के पिनाक के साथ संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुष माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहीं से धनुर्वेद का प्रादुर्भाव हुआ. इसे भगवान विष्णु ने धारण किया।

पांचजन्य

इसे विश्व का प्रथम शंख माना जाता है। कहा जाता है कि इसके नाद से, जहां तक इसका स्वर जाता था, वहां से आसुरी शक्तियों का नाश हो जाता था। इसे बहुत विशाल और भारी बताया गया है। इसे भी श्रीहरि ने धारण किया। महाभारत में ये शंख श्रीकृष्ण के पास था।

धन्वन्तरि

इन्हे भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है। ये आयुर्वेद के जनक थे। नारायण की भांति ही ये भी चतुर्भुज हैं और अपने हाथों में शंख, चक्र, औषधि और अमृत धारण करते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से इनका प्रादुर्भाव माता लक्ष्मी से दो दिन पहले हुआ था इसीलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस पर्व मनाया जाता है।

अमृत

अमृत एक ऐसा पेय है जो अमरता प्रदान करता है। अर्थ इसे पीने वाला कभी नहीं मरता। समुद्र मंथन के अंतिम रत्न के रूप में अमृत को लेकर स्वयं देव धन्वन्तरि निकले थे। अमृत को देखते ही देव और दैत्य उसे प्राप्त करने को दौड़े। धन्वन्तरि इसे बचाने को भागने लगे। तब श्रीहरि ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत की रक्षा की और छल से देवताओं को अमृत और दैत्यों को वारुणी पिला दिया।