हिंदू पौराणिक कथाएं उतार-चढ़ाव और रहस्यों से भरी हैं। हमारी पौराणिक कथाएँ भी ऐसे चरित्रों से भरी पड़ी हैं जो इतने पवित्र और धर्मात्मा थे कि उन्हें हमेशा जीवित रहने का वरदान दिया गया था और कुछ भूरे चरित्र भी थे जिन्हें मोक्ष नहीं दिया गया और उन्हें शाप के रूप में अमरता दे दी गई। दोनों में से कुछ को मिलाकर, यहां हम हिंदू पौराणिक कथाओं के पांच चिरंजीवियों (अमर) का उल्लेख करते हैं।
अमरता का वरदान प्राप्त करने वाले कुछ पौराणिक पात्र
राजा बलि
राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहाँ आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं।
हनुमान
हनुमान जी भगवान राम के प्रति अपनी निष्ठा और उनके प्रति अटूट समर्पण के लिए दूर-दूर तक जाने जाते हैं। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता को खोजा और उन्हें भगवान राम की अंगूठी दी। कुछ लोगों के अनुसार अंगूठी पाकर माता सीता ने उन्हें अमरता का आशीर्वाद दिया था। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि जब देवता स्वर्ग वापस जा रहे थे, तो उन्होंने हनुमान जी से पृथ्वी पर रहने के लिए कहा, क्योंकि वह अमर थे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यहां सब कुछ ठीक से काम कर रहा है और सभी जीवन सुरक्षित हैं।
ऋषि व्यास
ऋषि व्यास जिन्हे की वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है ने ही चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) , सभी 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना की थी । वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया।
अश्वथामा
अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।
परशुराम
भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा (एक हथियार) दिया था। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था।
इस मान्यता की पुष्टि
हमारे धर्म ग्रंथों में एक श्लोक है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि कुछ पौराणिक पात्रों को अमरता का दान दिया गया है और वे अब भी हमारे साथ इस पृथ्वी पर उपस्थित है।
‘अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।’
इस श्लोक की प्रथम दो पंक्तियों का अर्थ है की अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं। तथा अगली दो पंक्तियों का अर्थ है की यदि इन सात महामानवों और आठवे ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और 100 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।