क्या रामपुर के अंतिम नवाब के दोनों पोतों के बीच होगी सियासी भिड़ंत ?

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UP: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का जनपद रामपुर (Rampur) सियासी एतवार क्या रियासत के अंतिम नवाब रजा अली खान के पोतों के बीच राजनीतिक अखाड़ा बनने जा रहा है। इस बात के कयास अपने गृह जनपद के दौरे पर शाही परिवार के बड़े पोते नवाब मोहम्मद अली खान उर्फ मुराद मियां के बयान से लगाए जा रहे हैं।

विश्व प्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी के 250 में वर्ष में प्रवेश को लेकर आयोजित हुए भव्य कार्यक्रम में शिरकत करने आए रामपुर (Rampur) रियासत के अंतिम नवाब रजा अली खान के बडे़ पोते नवाब मोहम्मद अली खान उर्फ मुराद मियां ने मीडिया से मुखातिब होकर आगामी लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर मैदान में उतरने का कहीं ना कहीं इशारा जरूर किया है। करोड़ों की संपत्ति के मालिक नवाब मुराद मियां का संपत्ति बटवारा अपने ही खानदान के लोगों से चल रहा है। ज्यादातर उनका समय गोवा या अन्य देश में ही गुजरता है। रामपुर में उनके पुरखों की रियासत रही है। इस नाते उनका जनपदवासियों से परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही गहरा नाता रहा है। मुराद मियां के द्वारा आगामी लोकसभा के चुनाव में उतरने की इशारों ही इशारों में जाहिर की गई मंशा ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। उनके इस बयान से कहीं ना कहीं उनके चचेरे भाई पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां की सियासी जमीन पर कहीं ना कहीं गहरा असर डालता दिख रहा है।

गौरतलब है कि रामपुर (Rampur) रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खान के द्वारा सन 1949 को भारत गणराज्य में विलय कर दिया गया। नवाब रजा अली खान के तीन बेटे थे जिनमे सबसे बड़े नवाब मुर्तजा अली खान, मझले बेटे नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां और सबसे छोटे बेटे आबिद अली खान उर्फ सलीम मियां थे। इन तीनों का ही स्वर्गवास हो चुका है जबकि उनकी औलाद आज भी रामपुर से अपना गहरा नाता रखती हैं। लोकसभा के आम चुनाव में नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां ने 1967 में अपना पहला चुनाव जीता था। इस चुनाव के 2 साल के बाद यानी 1969 में उनके बड़े भाई नवाब मुर्तजा अली खान शहर विधानसभा से चुनाव जीत कर विधायक बने थे। हालांकि बाद में उन्होंने स्वार विधानसभा का कई मर्तबा चुनाव जीता था और फिर उनकी मौत हो गई थी।

इधर नवाब जुल्फिकार अली खान लगातार पांच बार रामपुर (Rampur) मे लोकसभा चुनाव जीते, हालांकि यह बात अलग है कि वह 1977 और 1989 में हुए चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सके थे। अंत में 1992 को रामपुर की अजीम शख्सियत का हादसे में स्वर्गवास हो गया था। नवाब खानदान का हमेशा से ही कांग्रेस पार्टी से गहरा नाता रहा है। एक समय वह था जब नवाब जुल्फिकार अली खान ने अपने बड़े भाई नवाब मुर्तजा अली खान के खिलाफ राजमाता रफत जमानी बेगम को वर्ष 1969 मे चुनाव मैदान में उतार दिया था। हालांकि इस विधानसभा चुनाव में अपनी माता के विरुद्ध नवाब मुर्तजा अली खान ने ही जीत हासिल की थी।

दूसरी मर्तबा एक बार फिर यह नवाब घराना सियासी मैदान में आमने-सामने आया और नवाब मुर्तजा अली खान की पत्नी बेगम आफताब जमानी ने 1980 में अपने देवर नवाब जुल्फिकार अली खान के खिलाफ लोकसभा के चुनाव में उतर कर ताल ठोकी थी। लेकिन इस चुनाव में देवर ने भाभी को करारी शिकस्त दी थी और चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। दिलचस्प बात यह है कि नवाब जुल्फिकार अली खान का परिवार आज भी अपना सियासी वजूद बनाएं रखे हुए हैं जबकि नवाब मुर्तजा अली खान का परिवार कई दशको से सियासत से काफी दूर है।

नवाब जुल्फिकार अली खान की पत्नी बेगम नूर बानो आज भी कांग्रेसी हैं और वह दो बार रामपुर (Rampur) की सांसद चुनी जा चुकी हैं। आगामी लोकसभा के चुनाव लड़ने को लेकर कहीं ना कहीं उनकी उम्रदराजी आड़े आ रही है। नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां एवं पूर्व सांसद बेगम नूर बानो के बेटे नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां पांच बार विधायक और एक बार मंत्री रह चुके हैं। पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान कांग्रेस, सपा, बसपा के टिकट पर अलग-अलग समय में विधानसभा के चुनाव जीत चुके। फिलहाल उनकी समाजवादी पार्टी का वरिष्ठ नेता आज़म खान से सियासी अदावत जग जाहिर है। पूर्व मंत्री नवाब का आजम अली खान आजम खान को अपना दुश्मन नंबर वन मानते हैं और यही कारण है कि उन्होंने हाल ही में हुए उपचुनाव में अपनी पार्टी की नीतियों की परवाह किए बगैर भाजपा प्रत्याशियों को खुलकर सपोर्ट किया था जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया। रामपुर की सियासत में नवाब जुल्फिकार अली खान उनकी पत्नी बेगम नूर बानो बेटे नवाब काजिम अली खान और पोते हमजा मियां का आज भी देश और प्रदेश में खास सियासी दखल बरकरार है।

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान का से गंभीर नजर आ रहे हैं। हालांकि इन चुनावों में भाजपा के मुकाबले इंडिया गठबंधन का एक प्रत्याशी ही चुनाव मैदान में उतरेगी। इस लिहाज से कांग्रेस और सपा दोनों ही पार्टियां इस सीट को लेकर अपना-अपना दावा ठोक रही हैं। लेकिन इन सबके बीच अभी तक बसपा इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनी है। पार्टी सुप्रीमो मायावती के द्वारा अकेले ही लोकसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा की गई है। अब पूर्व मंत्री काजिम अली खान का भविष्य इंडिया गठबंधन होगा या फिर बसपा होगा यह तो आने वाला समय ही तय करेगा। ठीक इसी तरह चुनाव में कहीं ना कहीं अपनी इच्छा जाहिर कर रहे नवाब मुराद मियां को कौन से पार्टी अपना प्रत्याशी बन सकती है। इस सवाल का जवाब भी भविष्य में जरूर मिल सकता है। फिलहाल अगर ऐसा हुआ तो नवाब रजा अली खान के इन दोनों पोतों के बीच होने वाला चुनावी संघर्ष जरुर दिलचस्प रहेगा और कई दशकों पुराना नवाब घराने का मां-बेटे और देवर-भाभी के बीच हुए चुनावी मुकाबला का इतिहास दोहराया जाएगा।