क्या ज्ञानवापी की तर्ज पर होगा मथुरा की शाही ईदगाह का सर्वे?

ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे भी किया जाएगा।

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वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का भी निरीक्षण किया जाएगा। ये सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की टीम यह सर्वेक्षण करेगी। उम्मीद जताई जा रही है कि आज से शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे शुरू हो सकता है। एएसआई को भी 20 जनवरी तक रिपोर्ट देनी होगी।

सिविल जज सीनियर डिविजन (III) सोनिका वर्मा ने सर्वे कराने के आदेश दिए हैं। ये आदेश उस याचिका पर दिया गया था जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को दूसरी जगह शिफ्ट करने की मांग की गई है।

हिंदू पक्ष का कहना है कि ये मस्जिद जिस जगह बनी है, वो भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है। ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक को लेकर है।

वहीं, शाही मस्जिद ईदगाह के वकील तनवीर अहमद का कहना है कि वो अदालत के इस आदेश के खिलाफ 20 जनवरी को ऑब्जेक्शन फाइल करेंगे।

हिंदुओं का दावा है कि औरंगजेब ने काशी और मथुरा में मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी। औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था। और 1670 में मथुरा में भगवा केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था। इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई।

क्या है मथुरा से जुड़ा विवाद?

इस पूरे विवाद की कहानी 1670 से शुरू होती है। मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया। जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया, उसे 1618 में बुंदेला राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में बनवाया था।

मुगल दरबार आने वाले इटालियन यात्री निकोलस मनुची ने अपनी किताब ‘Storia do Mogor’ यानी ‘मुगलों का इतिहास’ में बताया है कि कैसे रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त किया गया और वहां ईदगाह मस्जिद बनाने का फरमान जारी हुआ।

मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई। नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठाओं की जीत हुई। इसके बाद वहीं पर मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण किया.

13.37 एकड़ जमीन को लेकर है विवाद

मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास ही 13.37 एकड़ जमीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया। लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया। कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और जमीन टीले में बदल गई।

1803 में अंग्रेज मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की जमीन को नीलाम कर दिया। इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था। बनारस के राजा पटनीमल ने इस जमीन को खरीदा. बताया जाता है कि उन्होंने ये जमीन 1,410 रुपये में खरीदी थी।

राजा पटनीमल इस जगह पर फिर से भगवान केशवदेव का मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके। 1920 और 1930 के दशक में जमीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हो गया। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था।

फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये जमीन साढ़े 13 हजार रुपये में खरीद ली. आजादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।

उस विवादित समझौते की कहानी

अक्टूबर 1953 में मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ और 1958 में पूरा हुआ। इस मंदिर के लिए उद्योगपतियों ने चंदा दिया। ये मंदिर शाही ईदगाह मस्जिद से सटकर बनाया गया।

1958 में एक और संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान था। कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ जमीन पर कोई हक नहीं था।

लेकिन 12 अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे।

इस समझौते को श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट नहीं मानता है। वो इस समझौते को धोखा बताता है। ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।लेकिन विवाद क्यों है?

जैसा कि ऊपर बता चुके हैं कि हिंदुओं का दावा है कि यहां मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी। हिंदुओं का मानना है कि जिस जगह पर ईदगाह मस्जिद को बनाया गया है, ये वही जगह है जहां कंस की जेल हुआ करती थी।

हिंदू पक्ष का दावा है कि जहां पर ईदगाह मस्जिद बनी है, वहीं पर मथुरा के राजा कंस की जेल हुआ करती थी। इसी जेल में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। फिलहाल ये मामला कोर्ट में है। हिंदू पक्ष ने पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक देने की मांग की है।

इस मामले में शाही ईदगाह मैनेजमेंट, कटरा केशवदेव मंदिर ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान पार्टी हैं।