आखिर कसूर किसका है?

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केदारनाथ जी पोस्टमैन थे… रिटायर्ड होने में कुछ साल बाकी थे। अब तो कोई चिट्ठी पत्री किसी को लिखता नही था। पहले चिट्ठी में जज़्बात छुपे होते थे… एहसास किसी से मिलने का… दर्द किसी से बिछड़ने का… अब तो वीडियो कांफ्रेंसिंग का ज़माना है। सेकेंड में खबर पहुँचती है। अपनो से मिलने की कोई बैचैनी ही नही। इस टेक्नोलॉजी के जमाने में सब अपनो से दूर हो गए है हैं…।

कभी कभी ऐसा होता था उनके डाकखाने में बिना पते (एड्रेस) के ही खत आ जाया करते थें। जैसे खुदा के नाम, कभी भगवान के नाम, कभी मरे हुए लोगों के नाम…। जैसे कि जिन्हें अपने दिल की बात करनी होती हो और वो किसी को कह भी नही पाते। इस तरह के खत होते थे…। क्योंकि जो जिंदा है उनके पास फोन तो होता ही है, जो नही है उनके खत इस डाकघर में आते और पता तो नही होता तो वो यही आकार रुक जाते थे…।

तो आज का खत गुलफाम मियां के नाम से आया था…। उसके उपर महरूम गुलफाम खान लिखा था और नीचे आपकी राबिया…। केदारनाथ जी ने खत पढ़ना शुरू किया…। क्योंकि उन्हें पता है लिखने वाला बैचेन होगा… कोई उसके दर्द से वाकिफ नही होगा या होना नही चाहता होगा…।

उधर गुलफाम हाउस में आज जोया की बर्थडे पार्टी थी….। सब अपने-अपने सेल्फी में बिजी थे। राबिया बी भी चुपचाप सबको निहार रही थी…। कितने जतन से गुलफाम मियां और उन्होंने ये आशियाना बनाया था…। बच्चों की परवरिश, पढ़ाई सब अपने हाथों से किया। कभी बच्चों को नौकरों के सहारे नही छोड़ा…। खानदान में सबसे ज्यादा उन्होंने तालीम हासिल की थी लेकिन बच्चों के सामने उन्होंने कभी अपने करियर को तवज्जों नही दी…।

लेकिन जैसा हम सोचते हैं वैसा हमारे हिसाब से होता भी नही है…। खुदा हमारे लिए कुछ और ही सोच के रखता है…। गुलफाम मियां को एकदिन अचानक से दिल में हल्का सा दर्द हुआ लगा कि एक हल्की सी हिचकी हुई और जब तक कुछ समझते, डॉक्टर्स को बुलाते तब तक उन्होंने हमें अलविदा कह दिया…। कुछ कहने सुनने का मौका ही नही मिला और वो चले गए…। अब राबिया बी समझ ही नही पा रही थी कैसे खुद को सम्हाले कैसे बच्चों को सम्हाले…। लेकिन ख़ुदा दर्द के साथ सब्र करने का भी हौसला अफजाता है…।

इधर राबिया बी अपने सोच में गुम थी कि ज़ोया ने हिलाते हुए कहा दादी दादी जान…।” हूं… क्या हुआ मेरी जान” राबिया बी ने अपनी पोती को चूमते हुए कहा…। दादी आप हमारे साथ फोटो क्लिक कराओ न…। फिर सबको याद आया कि सब अपने ही सेल्फी में व्यस्त थे। किसी का ध्यान ही नही गया कि पूरे परिवार में वो कैसे अलग-थलग सी हो गई थी…।

अजब हैं, हम टेक्नोलॉजी के चक्कर में फंस के रह गए हैं… घर वालों से दूर तो हो रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया में फ्रेंड लिस्ट बढ़ रही है। बस पिक पे लाइक्स बढ़ाने के चक्कर में लगे रहते हैं। लेकिन अपनो से कितने दूर हो रहे हैं, इसका कुछ ख्याल ही नही है…। बर्थडे पार्टी खत्म होने के बाद सब लोग अपने अपने घर चले जाते हैं…। बेटी भी ससुराल चली गई। हालांकि गुलफाम मियां के जाने के बाद बेटी रजिया का हाथ भाई ने अपने बेटे के लिए मांग लिया था और सीधे तरीके से निकाह पढ़वा लिया था…।

लेकिन बेटी को इस तरह से कैसे विदा करवाती…। अपने गले का सेट तुड़वा कर उसके लिए अलग से नए डिजाइन का सेट बनवाया। राबिया बी का दिल तो नही था तुड़वाने का, गुलफाम मियां ने बहुत प्यार से बनवाया था। लेकिन रजिया मानी नही कि पुराने ज़माने का डिजाइन कौन पहनेगा…। वो डिज़ाइन रहता तो राबिया बी कभी कभी उसको छू कर अपने मोहब्बत का एहसास कर लेती लेकिन बच्चों की मोहब्बत में अपनी मोहब्बत को कुर्बान कर दिया…। एलआईसी को तुड़वा कर बाक़ी का दहेज़ पूरा दिया था ताकि भाभी जोकि समधन बन गई थी, बेटी को कुछ न सुनाए और बेटी ये न सोचे की अब्बा होते ते ये सब न सुनना पडता… और इस तरह से रजिया की रूखसती हो गई…।

सुबह नन्ही जोया दादी को हिलाकर उठा रही थी… रात राबिया बी की आँख बहुत देर से लगी थी। सुबह की नवाज भी छूट गई। हाय अल्लाह ये क्या गुनाह हो गया। माफ़ी मांगी और जोया के गिफ्ट्स देखने लगी। सबने बहुत महंगे गिफ्ट दिए थे और उसकी अम्मी ने मोबाइल गिफ्ट किया ताकि वो अपना वीडियो गेम देखते समय अपनी अम्मी को डिस्टर्ब न करे…। जोया ने दादी को खुद बताया…।

राबिया बी को समझ में ये नही आ रहा था कि आखिर इस घर में सबको क्या हो गया है…। हमने भी बिना मोबाइल के बच्चे पाले थे कि नही। खैर बोलने से तो कोई फायदा था नही, सो वो चुप कर रह गईं। लेकिन ये सोच के दिल बैठा जा रहा था कि एक पूरे घर में जोया के पास ही वक्त था दादी के लिए, वो भी अब अपने फोन में बिजी हो जायेगी। दादी के लिए जोया के पास वक्त भी नही होगा और दो मोटे आंसू उनको चेहरे पे टपक गए। उन्होंने फटाक से चेहरा घुमा लिया क्योंकि जोया के सवाल का जवाब उनके पास भी नही था…।

दो दिन से जोया उनके पास नही आई थी… राबिया बी जानती थी उनके साथ यही होने वाला था, सो हुआ… दो दिन से सलाम के अलावा उन्होंने कोई दूसरा शब्द नही सुना था… बहू तो सगी बहन की लड़की से ब्याही थी कि मौसी को माँ जैसी समझेगी लेकिन उसे अपने किटी पार्टी और सोशल मीडिया के फ्रेंड से फुरसत मिले तो वो पल भर को सास से हाल पूछ ले…। बेटे को कैसे-कैसे करके एमबीए करवाया। कैसे-कैसे देवर से सिफारिश करवा कर नौकरी दिलवाई…। अब जाकर इतने ऊंचे ओहदे पर है, पर माँ से क्या ही मतलब है…।

आज जब कुछ समझ में न आया तो कलम निकाल के खत लिखना शुरू किया…
जनाब गुलफाम खान…! आपको सलाम !! आप जाने कैसे हो…।
कोई खबर ही नही खुदा के घर जाने का रास्ता मालूम ही नही… और आत्महत्या तो इस्लाम या किसी भी धर्म में गुनाह है न, वरना उसी दिन आपके साथ रुखसत हो जाती…। सब अपनी लाइफ में सेटेले हो गए हैं। किसी को फुरसत नही दो पल अम्मी के साथ गुजार ले। जाने कैसे वो अपना वक्त गुजारती है…। तो आज मैंने आपको खत लिखने का फैसला किया… पता तो मालूम भी नही… लेकिन मेरे मन की बात लिखने से थोड़ा तो हल्का हो गया…। जाने कब मिलना हो। जोया हमारी पोती पाँच साल की हो गई है…। नन्हा आदिल अब चलने लगा है। काश… आप होते तो ये सब देखते! खैर अब आंसू मेरे खत को भीगो रहे हैं…।
खुदा हाफ़िज़…।

और ऊपर लिफाफे पर महरूम गुलफाम खान लिखकर उन्होंने घर के पुराने लेटर बॉक्स में गिरा दिया। पता था उसको कोई ले जाने वाला नही। फिर भी दिल की तसल्ली के लिए गिरा दिया उसमे और वापिस आ गई… बहू ने देखा तो सोचा शायद वॉक करने गई हों लेकिन जहमत नहीं उठायी पूछने की, आप किधर गए थे? राबिया बी ठंडी आह भर के अपने कमरे में चली गई। उस खत का इंतजार करने, जिसका जवाब उन्हें पता था आना भी न था…।

केदारनाथ जी ने अपनी आँखों को पोछा…। क्योंकि ये सब उनके साथ हो चुका था। उन्होंने अपने बेटे को विदेश भेजा था पढ़ने के लिए, जो वापिस आया ही नही…। वही सेटल हो गया। उनकी बीवी इंतजार में चली गई…। और वो भी तो चले ही गए हैं… पिछले एक साल से उनका शव उनके घर में पडा है। बेटे को तो शायद पता ही नही…। और उनकी आत्मा अंतिम संस्कार के लिए भटक रही है…। घर में दिल नही लगता तो पोस्ट ऑफिस आ जाते हैं और अपने जैसे अकेले माँ-बाप की व्यथा को देखते रहते हैं…। मूक तो वो हो चुके है क्या कर सकते हैं…!

और ये केदारनाथ जी और राबिया बेगम की कहानी ही नही है। हमारे समाज में टेक्नोलॉजी इस तरह घुस गयी है कि हम अपने माँ-बाप से दूर हो रहे है। उन्हे जाने अंजाने कितनी तकलीफ़ दे रहे है। हमे पता ही नही…और न जाने किस समाज का निर्माण कर रहे है। अपने भविष्य को अंधेरे में ही डाल रहे है। क्योंकि हमारे बच्चे तो वही सीख रहे है न जो हम कर रहे है। अगर हम सावधान न हुुए, तो राबिया बी और केदारनाथ जी हम भी कल को बन सकते है…।

डेनिस guilt ने कहा था “devlopment is cruel choice…”