हिंदुओं के लिए एक शुभ दिन है विजया एकादशी, जाने इससे जुडी पौराणिक कथा एवं पूजन विधि

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हिंदू कैलेंडर के अनुसार विजया एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है। यह आमतौर पर हर साल फरवरी या मार्च में आती है और इसे फाल्गुन कृष्ण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। विजया शब्द का अर्थ है जीत और जो कोई भी इस दिन भर का व्रत रखता है उसे अपने सभी प्रयासों में सफलता और विजय का आशीर्वाद मिलता है। चंद्र कैलेंडर का ग्यारहवां दिन, एकादशी, हिंदुओं के लिए एक शुभ दिन है और आमतौर पर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के दौरान आता है। यह विष्णु के भक्तों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है जो या तो भोजन और पानी (निर्जला) के साथ उपवास करते हैं या सात्विक और व्रत-अनुकूल आहार का सेवन करते हैं जो उन्हें शरीर और दिमाग को शुद्ध करने में मदद करता है।

विजया एकादशी की व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि, लंका विजय के लिए जब भगवान राम सागर तट पर वानर सेना के साथ पहुंचे तब उनके सामने सबसे बड़ी चिंता यह थी कि वह सेना सहित सागर पार कैसे करें। ऐसे में लक्ष्मणजी ने भगवान राम को संबोधित करते हुए कहा कि हे प्रभु आप सबको जानते हुए भी जो यह मानवीय लीला कर रहे हैं उस कारण से आप इस छोटी समस्या को लेकर चिंतित हैं। आपकी चिंता को दूर करने के लिए आपसे निवेदन करता हूं कि आप यहां पास में ही निवास करने वाले ऋषि बकदाल्भ्य से मिलें। ऋषि यहां से आगे का मार्ग सुझा सकते हैं।

लक्ष्मणजी के अनुनय पूर्ण वचनों को सुनकर भगवान राम बकदाल्भ्य ऋषि के पास गए। ऋषि को अपनी सारी परेशानी बताई और कोई मार्ग सुझाने के लिए कहा। ऋषि ने बताया कि आप सेना सहित फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सेना सहित भगवान नारायण की पूजा करें। यह विजया नाम की एकादशी ही आपको आगे ले जाने का मार्ग बनाएगी।

पूजन विधि

एक कलश पर पल्लव रखकर भगवान नारायण की प्रतिमा स्थापित करके इनकी पूजा करें। रात्रि में जागरण करते हुए भगवान का नाम स्मरण और कीर्तन भजन करें। अगले दिन सुबह भगवान की पूजा करके ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें। इस व्रत से प्रतिष्ठा, विजया, संकट से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो इस एकादशी व्रत की कथा को सुनता और पढता है उसे वाजपेयी नामक उत्तम यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।