बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करते है, बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु को पूजने वाले

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बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है। मान्‍यता है क‍ि जो भी जातक इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं या व्रत रखते हैं उन्‍हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। कथा म‍िलती है क‍ि इसी द‍िन भगवान शिव ने श्रीहर‍ि को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। साथ ही देवउठनी एकादशी के बाद जब भगवान विष्णु जाग्रत अवस्था में आते हैं। तब उसके बाद से ही वह भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं। तो आइए जानते हैं क‍ि बैकुंठ चतुर्दशी का क्‍या महत्‍व है?

पौराणिक कथा

बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं। इसीलिए यह दिन उत्सवी माहौल में मनाया जाता है।एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते है। नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा – भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

महत्त्व

बैकुंठ चतुर्दशी का शास्‍त्रों में व‍िशेष महत्व बताया गया है। इस दिन मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति को सीधे स्वर्गलोक में स्थान की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है। इस दिन शिवजी और विष्णुजी की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। इस दिन शिव और विष्णु दोनों ही एकाएक रूप में रहते हैं।

मान्यता

मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की 1000 कमलों से पूजा करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार को बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है। महाभारत काल में भी भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं का श्राद्ध बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही कराया था। इसल‍िए इस दिन श्राद्ध और तर्पण करना भी अत्‍यंत श्रेष्ठ माना गया है। बैकुंठ धाम केवल सद्गुणी, दिव्य पुरुष या सतकर्म करने वाले जातकों को प्राप्‍त होता है। लेकिन श्रद्धापूर्वक रखा गया बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत बैकुंठ धाम में स्‍थान द‍िलाता है।