कार्तिक कृष्ण अमावस्या के शुभ अवसर पर देशभर में प्रकाशोत्सव पर्व दिवाली मनाई जाती है। माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहे इसके लिए आज शाम शास्त्रों में लक्ष्मी माता के साथ गणेश और कुबेर की पूजा का विधान बताया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि को प्रदोष काल में स्थिर लग्न में दिवाली पूजन करने से अन्न-धन की प्राप्ति होती है। जो लोग तंत्र विद्या से देवी की पूजा करते हैं उन्हें आधी रात के समय निशीथ काल में पूजा करनी चाहिए।
पूजन सामग्री
पंडित एके शुक्ला के अनुसार दिवाली पूजा के सामान की तकरीबन समस्त चीजें घर पर मिल जाती हैं। जबकि कुछ अतिरिक्त चीजों को बाहर से लाया जा सकता है।
पूजन सामग्री इस प्रकार हैं- लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा या चित्र के अलावा रोली, कुमकुम,खील, बताशे, गंगाजल, पान, सुपारी,चावल, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, लौंग, इलायची, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया,कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, पंचामृत, दूध, मेवे, यज्ञोपवीत (जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, थाली, चांदी का सिक्का,फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, देवताओं के प्रसाद के लिए बिना वर्क का मिष्ठान्न।
दिवाली पूजा की इस तरह करें तैयारी
पूजन शुरू करने से पहले गणेश लक्ष्मी के विराजने के स्थान पर रंगोली बनाएं। जिस चौकी पर पूजन कर रहे हैं उसके चारों कोने पर एक-एक दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा स्थापित करने वाले स्थान पर कच्चे चावल रखें फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। इस दिन लक्ष्मी, गणेश के साथ कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की पूजा का भी विधान है अगर इनकी मूर्ति हो तो उन्हें भी पूजन स्थल पर विराजमान करें। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा के बिना देवी लक्ष्मी की पूजा अधूरी रहती है। इसलिए भगवान विष्ण के बायीं ओर रखकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
कलश की पूजा
- कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें।
- कलश में सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें।
- नारियल पर वस्त्र लपेटकर कलश पर रखें।
- हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आह्वान करें।
पूजन विधि
- दिवाली के दिन मुख्य पूजा रात में करने का विधान है।
- पूजा के दौरान सबसे पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को विराजमान करें।
- इसके पश्चात हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर मंत्र (ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।) पढ़ते हुए छिड़कें।
- इसके पश्चात इसी तरह से स्वयं को और अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।
- अब पृथ्वी देवी को प्रणाम करके मंत्र (पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः) के साथ उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर बैठें।
- जिसके बाद “ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः” कहते हुए गंगाजल का आचमन करें।
ध्यान व संकल्प विधि
गंगाजल के आचमन के बाद मन को शांत कर आंखें बंद कर लें और फिर देवी मां को मन ही मन प्रणाम करने के पश्चात हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के दौरान हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल अवश्य होना चाहिए। इसके पश्चात सबसे पहले भगवान गणेशजी व मां गौरी का पूजन करें और फिर कलश पूजन के बाद नवग्रहों का पूजन करना चाहिए। फिर अक्षत और पुष्प को हाथ में लेकर नवग्रह स्तोत्र पढ़िए। फिर भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन करें, जिसमें सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं का गंध, अक्षत व पुष्प से पूजन करें। इस पूरी प्रक्रिया मौली को गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण करने के पश्चात खुद के हाथ पर भी बंधवा लें। इस पूरी प्रक्रिया के बाद देवी-देवताओं को तिलक लगाने के बाद खुद को भी तिलक लगवाएं और फिर मां महालक्ष्मी की पूजा शुरू करें।