इस दिवाली पर मिट्टी के दियो से रोशन होंगे घर -आंगन

मिट्टी के दीयो का है धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व, मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है और कीटाणुओं का नाश होता है।

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कौशाम्बी में इस बार की दीवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे पीएम मोदी के ‘वोकल फार लोकल’ की अपील का इस वर्ष जबरदस्त असर पड़ा है। इस दिवाली पर मिट्टी के दीयों से रोशन होंगे घर-आंगन धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है। वहीं वैज्ञानिक महत्व के अनुसार कीटाणुओं का नाश होता है। दीपावली को अब कुछ ही दिन रह गए हैं। इसी के साथ ही कुम्हार इस वर्ष बड़े पैमाने पर मिट्टी के दीया तैयार कर गांवो और बाजारों में ठेले पर लाद पहुंचा रहे हैं।

कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे। दरअसल पिछले वर्ष चीन के साथ तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया पर जमकर चीनी उत्पादों के खिलाफ अभियान चला था जिसमें दिवाली के मौके पर चाइनीज झालरों के बहिष्कार की भी बात थी। वहीं पीएम मोदी के ‘वोकल फार लोकल’ की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और दिवाली के मौके पर दीयों की बिक्री भी जमकर हुई थी। ऐसा लग रहा है कि ‘वोकल फॉर लोकल’ की अपील का असर इस बार भी लोगों के बीच दिख रहा है और लोग चायनीज झालरों के बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इससे कुम्हारों में बेहद खुशी है।

फिर मिलेंगे दीया और बाती

आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। कुम्हारों का कहना है पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5, 11 या 21 दोये खरीदते थे। मगर इस वर्ष दिवाली में लोग ने 10 से 15 दर्जन दिये खरीदे रहे है और दीया खरीदने वाले लोगो की संख्या भी इस बार अधिक है। इस बार की दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे।

पटरी पर लौटी कुम्हार की कला

चाक की तेजी का असर ये है कि बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंच गए हैं और लोगों ने अभी से दीयों की खरीदारी भी शुरू कर दी है। चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मगर पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गाँव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दिवाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए।

मिट्टी से निर्मित मूर्तियाँ, दीये व खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलती है मजबूती

गांव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहाँ पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गाँव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा।

दीयों का धार्मिक महत्व

हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है और वैज्ञानिक महत्व है कि तेल का दीपक जलाने से आसपास के कीटाणु मर जाते है।