डिब्बे में मिली थी, 4 साल के मासूम की लाश, 65 साल बाद हुई पहचान, क्या है मर्डर मिस्ट्री?

पुलिस ने इस केस को सुलझाने के लिए काफी हाथ पैर मारे लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

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तारीख 20 फरवरी, 1957 है। अमेरिका के पेंसिल्वेनिया राज्य में स्थित फिलाडेल्फिया के जंगलों में एक शिकारी को एक बॉक्स मिला। बक्सा खोला तो शिकारी के होश उड़ गए। इस डिब्बे में एक छोटे बच्चे का निर्जीव शरीर था। उनका मानना था कि अगर इस बारे में उन्होंने पुलिस को बताया तो उनसे बड़े पैमाने पर पूछताछ करेगी। वह पुलिस विवाद में नहीं पड़ना चाहता था। इसलिए वह डिब्बे को वैसा ही छोड़कर वहां से चला गया. उसके बाद 25 फरवरी, 1957 का दिन आया। दो लोग पास के जंगल से गुजर रहे थे तो उनकी नजर इस डिब्बे पर पड़ी.

उन्होंने देखा कि बच्चे का सिर और कंधा डिब्बे से बाहर था. जबकि, बाकी का शरीर डिब्बे के अंदर था. बच्चे को कंबल में लपेटकर डिब्बे के अंदर डाला हुआ था. वे लोग भी इसे नजरअंदाज करके वहां से निकल गए. लेकिन अगले दिन वे दोनों लोग रेडियो सुनते हुए फिर इसी रास्ते से गुजर रहे थे. तभी उन्होंने रेडियो में न्यूज सुनी कि एक 4 साल की बच्ची लापता हो गई है. उन्हें लगा कि शायद ये बच्ची यही हो. दोनों ने तुरंत पुलिस को फोन करके बताया कि यहां जंगल में भी एक बच्चे की लाश पड़ी है. उन्हें नहीं पता कि वह लड़की है या लड़का.

पुलिस उनके बताए पते पर पहुंची तो पाया कि लाश लड़की की नहीं. बल्कि, लड़के की है. अब यहां पुलिस के सामने नया मामला सामने आ गया कि आखिर ये बच्चा है कौन? ‘The New York Times’ के मुताबिक, पुलिस ने तुरंत इस नए मामले की भी जांच शुरू कर दी. उन्होंने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन बच्चे की पहचान तो हुई नहीं थी. इसलिए इस अज्ञात बच्चे का नाम पुलिस ने जॉन डो रख दिया. ताकि इसी नाम से मामले की जांच को आगे बढ़ाया जा सके. वहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि बच्चे की मौत ब्लंट फोर ट्रॉमा (Blunt For Trauma) की वजह से हुई थी.

बच्चे के सिर पर थे 4 घाव के निशान

इसके सिर पर चार जख्म के निशान थे. दो निशान तो काफी पुराने थे. जबकि, दो निशान ताजा थे. इन दो ताजा घावों से पता लगा कि बच्चे के शरीर से पूरा खून ही निकाल लिया गया था. इसके अलावा पुराने घावों को देखकर लग रहा था कि बच्चे के साथ काफी समय से बर्बरता की जा रही थी. साथ ही यह भी पता चला कि बच्चा भूखमरी का भी शिकार हुआ था. उधर, जब पुलिस ने भी जंगल में जाकर सबूत जुटाने की भरपूर कोशिश की ताकि हत्या से जुड़ा कुछ तो सुराग उन्हें मिल पाए. लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं लग पाया.

पुलिस नहीं कर पाई बच्चे की पहचान

पुलिस और डॉक्टरों ने फिर शव को ध्यान से देखा तो पाया कि बच्चे के पांव काफी खुरदुरे हो गए थे. इस बात से डॉक्टरों ने अंदाजा लगाया कि मरने से पहले जरूर बच्चे को काफी समय तक पानी में डुबाकर रखा गया होगा. उसके शरीर में कुछ दाग-धब्बे में मिले. जांच की गई तो पचा लगा कि यह दाग उल्टी के हैं. लेकिन डॉक्टर हैरान थे कि जब बच्चे ने कुछ खाया ही नहीं था तो उसने उल्टी की कैसे. अब यहां पुलिस को पता लगाना था कि आखिर यह बच्चा था कौन. उन्होंने पूरा जोर लगा लिया लेकिन बच्चे की पहचान नहीं हो पाई. पुलिस ने इसके लिए रेडियो और टीवी में भी प्रसारण करवाया ताकि जिसका भी यह बच्चा हो वह न्यूज देखकर या सुनकर पुलिस से संपर्क करे. लेकिन यहां भी पुलिस को नाकामी हासिल हुई.

4 करोड़ से ज्यादा पैंपलेट्स बांटे गए

पुलिस ने अब लोगों के घर-घर जाकर बच्चे की फोटो दिखाई. इसके बाद भी पुलिस पता नहीं लगा पाई कि यह बच्चा था कौन. यहां तक कि पुलिस ने पूरे अमेरिका में ही बच्चे को लेकर 4 करोड़ से ज्यादा पैंपलेट्स बांट दिए. लेकिन फिर से पुलिस के हाथ खाली ही रहे. जिसके बाद पुलिस ने इस बच्चे के हाथ और पैर के निशान लिए और कई अनाथ आश्रमों और अस्पतालों में भी जा-जाकर पता लगाने की कोशिश की कि कहीं यह बच्चा यहीं से ना भागा हो. दरअसल, अमेरिका में बच्चा पैदा होने के बाद वहां पहचान के लिए बच्चे के हाथ और पैर के निशान रख लिए जाते हैं. ताकि आगे जाकर उनकी पहचान इन्ही के जरिए की जा सके. लेकिन अफसोस इस बच्चे के हाथ और पैर के निशान कहीं भी रजिस्टर्ड नहीं थे. इससे अंदाजा लगाया गया कि बच्चा घर में ही पैदा हुआ और उसके घर वालों ने इसका रजिस्ट्रेशन भी नहीं करवाया. यहां अब यह केस इतना फेमस हो चुका था कि लोग इस बच्चे को ‘The Boy In The Box’ के नाम से जानने लगे.

डिब्बे में लिखा मिला स्टोर का नाम और एड्रेस

पुलिस ने तफ्तीश जारी रखी और सोचा कि क्यों न उस कंबल और डिब्बे के बारे में पता लगाया जाए जिसमें बच्चे की लाश मिली थी. पुलिस ने फिर डिब्बे के ऊपर लिखे सीरियल नंबर से पहचान लिया कि डिब्बा आखिर कहां से आया है. पुलिस को पता लगा कि फिलाडेल्फिया में ही जेसी पैनी नामक स्टोर है. इसी स्टोर से डिब्बे को लिया गया है. पुलिस फिर जेसी पैनी स्टोर वालों से बात की. पचा चला कि उन्होंने इस डिब्बे को 26 दिसंबर 1956 से लेकर 15 जनवरी 1957 के बीच बेचा है. जिसके बाद उन्ही स्टोर वालों ने बताया कि इस डिब्बे के अंदर बच्चों को नहलाने वाला टब था. और उस समय उन्होंने ऐसे करीब 12 टब बेचे थे. अब पुलिस ने इन 12 लोगों को ढूंढना शुरू किया. लेकिन यहां भी उन्हें 12 में से सिर्फ 8 ही लोग मिल पाए जिन्होंने यह टब खरीदा था.

अलग-अलग राज्यों की पुलिस से ली गई मदद

अब यह केस पूरे अमेरिका में भी फैल चुका था. इसलिए पुलिस ने भी ठान लिया था कि कैसे भी करके उन्हें इस केस को सुलझाना ही पड़ेगा. इसके लिए उन्होंने अमेरिका के अलग-अलग राज्यों से पुलिस को बुलाया. 270 पुलिसकर्मी फिर घटनास्थल पर पहुंचे और उन्हें यहां कुछ ऐसी चीजें मिलीं जिससे केस कुछ आगे बढ़ पाया. पुलिस को यहां एक नीले रंग की टोपी, एक स्कार्फ और रुमाल मिला जिसमें ‘G’ लिखा था. लेकिन इन तीनों चीजों में से सबसे ज्यादा ध्यान पुलिस का टोपी पर गया. क्योंकि उसमें टोपी बनाने वाली कंपनी का नाम और एड्रेस लिखा हुआ था. टोपी में लिखा था ‘रॉबिन्स हैंडमेड कैप’. पुलिस ने फिर उस टोपी बनाने वाले स्टोर का पता लगाया और वहां पहुंच गई. स्टोर की मालकिन ने बताया कि तीन महीने पहले यह टोपी बनाई गई थी. उसने बताया कि जिसने यह टोपी बनवाई थी वह करीब साल का एक युवक था और इस इलाके में वह नया था. वो हमेशा अपनी गर्दन झुकाकर रखता था. उसने टोपी पहनने के बाद भी अपनी गर्दन उठाकर ऊपर नहीं देखा था.

डिटेक्टिव ने भी केस सुलझाने की कोशिश की

पुलिस ने इसके बाद उसी टोपी भी कई लोगों और दुकानदारों को दिखाया. लेकिन सभी का जवाब यही था कि उन्होंने ऐसे किसी शख्स को कभी नहीं देखा जिसने यह टोपी पहनी हो. पुलिस अब थक चुकी थी. लेकिन उन्हें बच्चे का पता लग पाया. अब समय आ गया था कि बच्चे को दफना दिया जाए. फिर बच्चे को पुलिस ने दफना दिया. अब यहां ब्रिस्टो नामक एक डिटेक्टिव ने इस केस में काफी दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने सबसे पहले शुरुआत की झूठी खबर फैलाने की. उन्होंने सोचा कि अगर वह बच्चे के बारे में कोई झूठी खबर फैलाएंगे तो क्या पता उन्हें कोई बच्चे से जुड़ी कोई इंफोर्मेशन मिल जाए. बिस्टो ने फिर अखबार में छपवाया कि बच्चे की मौत एक एक्सीडेंट में हुई होगी. लेकिन उसके माता-पिता के पास उसका अंतिम संस्कार करने के पैसे नहीं होंगे. इसलिए उन्होंने बच्चे को जंगल में फेंक दिया. लेकिन उनका ये पैंतरा काम नहीं किया. उन्हें भी बच्चे के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

लेकिन फिर 2016 में यह केस खुला और पुलिस ने नया तरीका अपनाया. टेक्नोलॉजी की मदद से पुलिस ने बच्चे की तस्वीर बनवाई. फिर उन्होंने बच्चे की पहचान के लिए उस फोटो की मदद से लोगों से अपील की कि अगर कोई भी इस बच्चे को जानता है तो बता दीजिए. लेकिन तब भी कोई सामने नहीं आया.

1998 में लिया गया डीएनए सैंपल

समय बीतता गया. फिर दिन आया नवंबर 1998 का. अब यहां पुलिस ने भी सोचा कि इस केस में काम करने का कोई फायदा नहीं है. फिर भी क्यों न एक अंतिम कोशिश की जाए. इसलिए सरकार से परमिशन लेकर बच्चे की कब्र को खोदा गया. वहां से उन्होंने बच्चे के दांत से डीएनए लिया और जांच के लिए भेज दिया. लेकिन पुलिस की यह कोशिश भी बेकार रही. क्योंकि बच्चे का डीएनए किसी से भी नहीं मिल पाया. इसके बाद इस केस को बंद कर दिया गया.

65 साल बाद हो पाई बच्चे की पहचान

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CNN के मुताबिक, फिर 65 साल बाद दिसंबर 2022 में आखिरकार पुलिस ने इस बच्चे की पहचान कर ही डाली. दरअसल, इस बार डीएनए की एडवांस टेक्नीक जेनेटिक जिनियोलॉजी (Genetic Genealogy) से बच्चे के बारे में पता लग पाया. जेनेटिक जिनियोलॉजी ऐसी टेक्नीक है जिससे काफी सारे अनसुलझे केस सॉल्व हो पाए हैं. 4 साल के बच्चे का नाम जोसेफ ऑगसटस जरेली था. उसका जन्म 13 जनवरी 1953 में हुआ था. पुलिस ने बताया कि बच्चे से काफी मारपीट की गई थी. इंवेस्टिगेशन टीम ने ये तो पता लगा लिया कि बच्चे के माता-पिता कौन थे. लेकिन उनकी पहचान सबके सामने नहीं लाई गई. क्योंकि दोनों की मौत हो चुकी है. वहीं, बताया गया कि बच्चे के भाई-बहन अभी भी जिंदा हैं. उनकी भी पहचान पुलिस ने किसी के सामने उजागर नहीं की. लेकिन अभी भी यह नहीं पता लग पाया है कि आखिर बच्चे को मारा किसने था. इस पर जांच जारी है.