हम बात कर रहे हैं राणापुर (Ranapur) के सबसे पुराने बुनियादी स्कूल के बारे में जिसकी स्थिति बहुत दयनीय है, जो नगर के मध्य स्थित है और साथ ही यहाँ पर 150 से अधिक बच्चे रोज पढ़ने के लिए आते हैं।
“स्कूल चले हम”
सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान के तहत “स्कूल चले हम” केवल राणापुर (Ranapur) में एक स्लोगन रह गया है। इसके अतिरिक्त कुछ नहीं राणापुर (Ranapur) के मध्य बना सबसे पुराना बुनियादी स्कूल जिसमें नगर व आसपास के गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं। जिसकी स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है। “स्कूल चले हम” के तहत बच्चे इन कच्चे कीचड़ भरे रास्तों में कैसे चले? यह एक सवाल है। क्या सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है या इसे अपनी मूलभूत सुविधा प्राप्त नहीं होगी क्योंकि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जमीनी स्तर पर नहीं पहुचती है। यह सवाल सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से पूछना चाहिए। क्या गरीब के बच्चे बच्चे नहीं है।
स्कूल के बिजली बिल का नहीं हुआ भुगतान
इस स्कूल में जो बच्चे पढ़ने आते हैं उनके लिए कोई भौतिक सुविधाएं नहीं है और साथ ही इस स्कूल में लाइट की व्यवस्था नहीं है क्योंकि इस स्कूल में लाइट कनेक्शन काट दिया गया है, जिससे स्कूल के अंदर अंधेरा रहता है। बच्चे खिड़कियां खोल कर पढ़ाई कर रहे हैं। छतों पर लटके पंखे बल्ब अपने होने ना होने का परिचय दे रहे हैं कि हम चल रहे हैं या बंद है। काफी समय से यहाँ पर बिल भुगतान नहीं किया गया है, जिससे विद्युत मंडल द्वारा इस बुनियादी स्कूल का लाइट कनेक्शन काट दिया गया है। बच्चे ऐसी स्थिति में स्कूल में पढ़ रहे हैं।
पहली से पांचवी तक के बच्चे पढ़ते हैं
बुनियादी स्कूल राणापुर (Ranapur) का सबसे पुराना स्कूल है।जिसमें पहली क्लास से पांचवी क्लास तक के बच्चे पढ़ते हैं। जिनके शौचालय के लिए कोई मूलभूत सुविधा नहीं है। साथ ही ना पीने की पानी की व्यवस्था है। टीचर भी इन्ही सुविधाओं से वंचित है।
न जाने कितनों का भविष्य बनाया आज अपने वर्तमान पर रोता बुनियादी स्कूल।
स्कूल काफी समय पुराना है। इसमें न जाने कितने विद्यार्थी पढ़ें हैं और अपना भविष्य बनाया है और ऊंचे पदों पर पहुंचे हैं, मगर जिनका भविष्य इस स्कूल ने बनाया है। उसी स्कूल का वर्तमान आज बड़ा दयनीय है। इस और क्या मामा ध्यान देंगे या शिक्षा विभाग की नींद खुलेगी या कोई जांच कमेटी आएगी और इसकी जांच करेगी।
छात्रों के भविष्य के साथ हो रहा है खिलवाड़
नवीन सत्र खुलते ही बुनियादी स्कूलों की स्थिति सामने आई। ऐसी स्थिति में बच्चे पढ़ रहे हैं। यह बहुत बड़ा प्रश्न है। साथ ही इन बच्चों के भविष्य व जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है क्योंकि सरकारी योजनाओं का लाभ क्या इन तक नहीं पहुंच रहा है? इस स्कूल के होने ना होने से कोई मतलब नहीं है क्या? इसकी दुर्दशा सुधरेगी या यथावत रहेगी। साथ ही क्या इन बच्चों को यह इस स्कूल को अपने सुंदर भविष्य दर्शाने का मौका मिलेगा या फिर स्कूल की तरह अंधकार में ही रहेगा। कल उठकर यदि कोई हादसा होता है तो इसकी जवाबदेही किसके रहेगी? अगर मामाजी को राजगढ़ में चाय पीने से फुर्सत मिल जाए तो राणापुर के इस स्कूल की ओर भी ध्यान दें।