कहानी: आस्था और विश्वास की 

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Story

एक बूढ़ी औरत बृहस्पति देव की बहुत बड़ी भक्त थी। वह हर बृहस्पतिवार को व्रत रखती व सोने का केला दान करती थी। जब तक सोने का केला दान न कर ले, वह बूढ़ी औरत खाना नहीं खाती थी। उस बूढ़ी औरत के एक बेटा और एक बहू थी। बृहस्पति देव की कृपा से उस बूढ़ी औरत के घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी। इसी प्रकार से सुखपूर्वक उनका समय व्यतीत होता गया। 

कहते है कि इस दुनिया में इंसान अपने दुख से कम और दूसरे के सुख से अधिक दुखी रहता है। ऐसे ही कुछ इंसान उस बूढ़ी औरत के पड़ोस में भी रहते थे। वे उस के घर की सुख शांति से जलते थे। उन्होंने उस बूढी औरत की बहू को भड़काना शुरू कर दिया। उन्होंने उसकी बहु से कहा कि तेरी सास तो सारा सोना दान कर तुम्हे कंगाल बना देगी। तुम उसे रोकती क्यों नहीं हो? कहते है कि सीख तो पत्थर को भी फोड़ देती है फिर उसकी बहू तो एक आम इंसान थी। वह उन लोगों के बहकावे में आ गयी।

एक दिन जब वह बूढ़ी औरत बृहस्पति देव की पूजा-अर्चना कर सोने का केला दान करने लगी, तब उसकी बहू ने कहा , “माजी क्या आप सारा सोना दान कर देंगी, हमारे लिए कुछ नहीं छोड़ेंगी”। यह सुनकर बूढ़ी औरत ने सोने का केला छोड़कर उस दिन चांदी का केला दान में दिया। 

अब वह बूढ़ी औरत स्वर्ण केले के स्थान पर चांदी का केला दान करने लगी। पड़ोसियों ने बहु को फिर से भड़काया। अगले बृहस्पतिवार को जब बूढ़ी औरत चांदी का केला दान करने लगी तो बहू ने कहा क्या आप हमारे लिए चांदी भी नहीं छोड़ेंगी”। बूढी औरत ने यह सुना और चांदी के केले के स्थान पर पीतल का केला दान में दिया। 

इस प्रकार वह बूढ़ी औरत सोने से चांदी और चांदी से पीतल , पीतल से तांबे और तांबे से लोहा और लोहे से आटा और आखिर में मिट्टी के केले पर आ गई। अब जब एक दिन बूढ़ी औरत अपनी पूजा अर्चना कर मिटटी का केला दान में देने लगी तब उसकी बहू ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “माजी क्या आप सारी मिटटी दान में देकर ख़त्म कर दोगी”। 

अब वह बूढ़ी औरत समझ गयी। उस ने मिटटी का केला वही पर छोड़ दिया और घर से निकल गयी। चलते चलते वह बूढी औरत गांव से बहुत दूर निकल आयी। उसने देखा कि वहाँ एक सेठ ने लंगर लगाया हुआ है। सब लोग लाइन लगाकर लंगर में खाना खा रहे थे। बूढी औरत वही पेड़ के नीचे बैठ गयी। 

सेठ ने उस बूढी औरत को देखा और अपने नौकर को बुलाकर कहा, ”सब लोग लंगर में खाना खा रहे है। वो बूढी महिला जो पेड़ के नीचे बैठी है उसे भी खाना खाने के लिए बुलाकर लाओ”। नौकर बूढी औरत के पास गए और कहा, “माजी आप भी लंगर में खाना खा लीजिये”। किन्तु बूढ़ी औरत ने मना कर दिया। नौकर वापस आ गए। 

अबकी बार सेठ खुद गया और जाकर बोला, “माँ, मै बहुत देर से आपको देख रहा हूँ। सब लंगर में खाना खा रहे है। किन्तु आप खाना नहीं खा रही है। क्या बात है? आप खाना क्यों नहीं खा रही है”?  बूढी औरत ने अपनी सारी आपबीती सेठ को सुना दी। 

सेठ ने अपने नौकरों से तुरंत सोने का केला मंगाया और बूढी महिला से दान कराया और भोजन कराया। जब बूढी औरत ने खाना खा लिया तब बूढी औरत ने सेठ से वहाँ से जाने की अनुमति माँगी। 

सेठ ने हाथ जोड़कर कहा, “अम्माँ आप मेरी माँ के समान है। मै चाहता हूँ कि आप यहीं मेरे साथ रहें। पहले तो उस  बूढ़ी औरत ने मना किया परन्तु सेठ के बहुत बार कहने पर वो मान गयी। बूढ़ी औरत सेठ के घर पर मालकिन की तरह रहने लगी। नौकर-चाकर उसकी सेवा में रहने लगे। इसी तरह समय व्यतीत होता गया। 

कहते है कि समय की गति न्यारी होती है। बूढ़ी औरत के आने के बाद से सेठ के व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होने लगी। अब सेठ एक की जगह चार भंडारे लगाने लगा। वहीं दूसरी तरफ बूढ़ी औरत के बेटे के व्यापार में घाटा आने लगा। घर में खाने के भी लाले पड़ने लगे।

एक दिन जब घर में कुछ नहीं बचा तो बूढ़ी औरत के बेटा-बहू काम की तलाश में घर से बाहर निकले। घुमते-घुमते सुबह से शाम हो गयी किन्तु दोनों को कोई काम नहीं मिला। भटकते-भटकते सुबह से शाम हो गयी। दोनों बहुत थक गये थे और भूख भी लग आयी थी। तभी उनकी नजर पास ही लगे भंडारे पर पड़ी। यह भंडारा उसी सेठ का था। 

दोनों बेटा-बहू भंडारे की लाइन में लग गये। वह बूढ़ी औरत भी वहीं पर बैठी हुई थी। उसने अपने बेटा-बहू को देखा और तुरंत पहचान लिया। बूढ़ी औरत ने नौकर को भेजकर अपने बेटा-बहू को अपने पास बुलाया। बूढ़ी औरत ने तो अपने बेटा-बहू को पहचान लिया किन्तु उसके बेटा-बहू अपनी माँ को नहीं पहचान पाये। उसका कारण ये था कि बूढी औरत अब पहले से मोटी हो गयी थी और वो बिलकुल एक सेठ की माँ की तरह लग रही थी, उस बूढी औरत का रहन सहन सेठ के पास रहते रहते बदल गया था, उसके बेटे और बहू ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि  उनकी माँ का रहन-सहन इतना बदल जायेगा और वो एक सेठानी की तरह दिखाई देती होगी, और उन्होंने ये  कल्पना भी नहीं की थी कि उनकी माँ वहाँ भी हो सकती है।

 बूढ़ी औरत ने अपने बेटा-बहू से कहा, “तुम देखने में तो अच्छे घर के लगते हो फिर यहाँ लाइन में क्यों लगे हुए हो? कुछ काम क्यों नहीं करते”? तब उन्होंने कहा कि हम काम की तलाश कर रहे है पर अभी कोई काम नहीं मिल पाया। बूढ़ी औरत ने कहा अगर मै तुम्हे काम पर रखू तो तुम दोनों काम करोगे। दोनों ने हामी भर दी। बूढ़ी औरत ने अपनी बहू को अपनी सेवा में रख लिया और बेटे को नौकरो के साथ काम पर लगा दिया। इसी तरह दिन बीतने लगे। 

एक दिन बूढ़ी औरत नहा रही थी। उसने अपनी बहू से उसकी कमर मलने को कहा। उस बूढी औरत की कमर पर एक तिल था। जब बहू बूढी औरत की कमर मलने लगी तो उसकी नजर उस तिल पर पड़ी। उस तिल को देखकर उसकी बहू की आँखों से आँसू आने लगे। 

जब बूढ़ी औरत ने अपनी बहू को रोते हुए देखा तो उसने अपनी बहु को झिड़कते हुए कहा, “अगर तुम मेरी कमर नहीं मलना चाहती तो मत मलो पर रोओ मत”। तब उसकी बहू ने आँसू पोछते हुए कहा, “माज़ी ऐसी बात नहीं है कि मै आपकी कमर नहीं मलना चाहती। दरअसल जैसा तिल आपकी कमर पर है वैसा ही तिल मेरी सासु माँ की कमर पर था”।

तब बूढ़ी औरत ने पूछा, “क्या हुआ तुम्हारी सासु माँ को और अब वह कहाँ है”? तब बूढ़ी औरत की बहू ने अपनी सारी आपबीती सुनायी और रोने लगी। बूढ़ी औरत ने अपनी बहू से कहा कि अगर तुम्हारी सासु माँ तुम्हें मिल जाए तो तुम क्या करोगी? तब बहू ने बोला कि मै उनके पैर पकड़ कर उनसे माफ़ी माँगूँगी। 

तब बूढ़ी औरत ने अपनी बहू को बताया कि वहीं उसकी सास हैं। सच्चाई जानकर बहू की आँखे आश्चर्य से फटी की फटी रह गयी। उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। फिर बूढ़ी औरत ने सारी कहानी अपनी बहू को बतायी। सच्चाई पता चलने पर बूढ़ी औरत के बेटा-बहू अपनी माँ के पैरों में पड़कर माफ़ी मांगने लगे। बूढ़ी औरत ने उन दोनों को माफ़ कर दिया। 

अब वे दोनों बूढ़ी औरत को अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे। किन्तु सेठ ने उन्हें बूढ़ी औरत को ले जाने से मना कर दिया। अब उस बूढ़ी औरत ने सेठ का धन्यवाद करते हुए कहा कि इन दोनों को अपने किये की सजा मिल चुकी है। इन दोनों को पश्चाताप भी है। मै भी अपने परिवार के साथ रहना चाहती हूँ।  

बूढी औरत के बहुत मनाने पर सेठ मान गया और उस ने बूढी औरत को ले जाने की इजाजत दे दी। अब बूढ़ी औरत अपने बेटा-बहू के साथ अपने घर वापस लौट आयी। बृहस्पति देव की कृपा से धीरे-धीरे उसके बेटे के व्यापार में बढ़ोतरी होने लगी। अंत भला तो सब भला वाली कहावत अनुसार बूढी औरत अपने बेटा-बहू के साथ सुख पूर्वक प्रभु-भक्ति में जीवन व्यतीत करने लगी। 

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