रामायण के विषय में तो सब जानते है, हम बात करेंगे कुछ ऐसे तथ्यों के बारे में जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है।
क्या आप जानते है, रावण भगवन राम से कितने बड़े थे
रावण का जन्म भगवान राम से बहुत पहले हुआ था। हालांकि दोनों का जन्म त्रेता युग में हुआ था। शास्त्रों के अनुसार, रावण का जन्म 11वें त्रेता युग में और भगवान राम का जन्म 24वें त्रेता युग में (त्रेता युग के अंत में) हुआ था। त्रेता युग में उनके बीच 13 अवधि का अंतर।
त्रेता युग: 1,296,000 वर्ष
1296000\24 (त्रेता युग में 24 काल थे) =54,000 वर्ष एक अवधि के लिए
54000X 13 (उनके बीच 13 अवधियों का अंतर) =7,02,000 वर्ष।
7,02,000–11,000 वर्ष (भगवान राम ने 11,000 वर्षों तक शासन किया) = 6,91,000 वर्ष
तो रावण भगवान राम से लगभग 6,91,000 वर्ष बड़ा था और लगभग उसी समय जब वह भगवान राम द्वारा मारा गया था (यह पात्र शास्त्रों में वर्णित है और माना जाता है) हालांकि वर्तमान योजनाओं की स्थिति और राशि चक्र के अनुसार यह उल्लेख किया गया है कि भगवान राम का जन्म 7,122 साल पहले हुआ था।
राम और रावण का युद्ध कितने दिन तक चला
रामायण के अनुसार प्रभु राम और रावण के बीच भंयकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध के बाद भगवान राम ने युद्ध में सफलता हासिल हुई थी।उस दिन से ही हर वर्ष दशहरा का पर्व हमारे देश में मनाया जाता है। भगवान राम और रावण का युद्ध कुल 8 दिनों तक चला था, लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार यह भी बताया जाता है कि यह युद्ध 84 दिनों तक चला था। आपको बता दें कि जब यह युद्ध शुरू हुआ तो कई कोशिशों के बाद भी रावण को हरा पाना असंभव था क्योंकि जैसे ही रावण का सिर उसके धड़ से अलग किया गया तब उसका दूसरा सिर उत्पन्न हो जाता था।
एक किवदंती के अनुसार, जब प्रभु श्री राम सीता जी को लेने लंका गए तो रावण ने अपने संबंधियों और पुत्रों को युद्ध करने भेजा, लेकिन राम जी और रावण के बीच अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया से युद्ध आरंभ होकर दशमी तिथि तक ही चला। कुल बत्तीस दिनों तक राम और रावण में युद्ध होता रहा।
पौराणिक कथा के अनुसार रावण परम ज्ञानी और शक्तिशाली था। श्री राम के लिए उसे मारना बहुत मुश्किल था। विभीषण ने राम को लंकेश को मारने का तरीका बताया था। बताया था कि रावण को एक विशेष अस्त्र से नाभि पर प्रहार करके मारा जा सकता है। रावण को मारने के लिए दिव्यास्त्र का इस्तेमाल किया गया था। विभीषण ने श्रीराम को इस अस्त्र के बारे में बताया था।
जानते है क्या था वह अस्त्र
राम जी और रावण के मध्य चले युद्ध में दो प्रकार के धनुष की जिक्र मिलता है। एक जो प्रभु श्री राम का धनुष था, जिसे वह सदैव धारण करते थे। उसे कोदंड कहा जाता था, अर्थात् बांस का बना हुआ, यह धनुष बहुत आलौकिक था। इसे सिर्फ प्रभु श्रीराम धारण कर सकते थे। कहा जाता है कि इस धनुष से छोड़ा गया बाण अपने लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था। लेकिन राम जी सदैव अपने धनुष का उपयोग तभी करते थे, जब बहुत आवश्यक हो। परंतु रावण का वध इस धनुष से नहीं किया गया था। रावण के वध के लिए एक विशेष धनुष की आवश्यकता थी।
जब प्रभु श्री राम और रावण के बीच भीषण युद्ध होने लगा और रावण पर किसी अस्त्र का प्रभाव नहीं हो रहा था, रावण को मारना मुश्किल हो रहा था। तब विभीषण ने प्रभु श्री राम को बताया कि रावण को मारने के लिए एक विशेष अस्त्र की आवश्यकता है, नहीं तो यह युद्ध ऐसे ही चलता रहेगा। यह अस्त्र ब्रह्मा जी ने रावण को प्रदान किया है। जिसे महारानी मंदोदरी (रावण की पत्नी) के कक्ष में छिपाया गया है। लेकिन अब समस्या यह थी कि उस अस्त्र को प्राप्त कैसे किया जाए।
प्रभु श्री राम ने कैसे किया उसको प्राप्त
हनुमान जी ने वृद्ध ब्राह्मण का वेश धारण किया और महारानी मंदोदरी के समक्ष पहुंच गए। वे प्रसन्नता के साथ ब्राह्मणदेव के आदर सत्कार में लग गई। ब्राह्मण के वेश में आए हनुमान जी ने मंदोदरी से कहा कि विभिषण ने राम को उस विशेष दिव्यास्त्र के बारे में बता दिया है, जो आपके कक्ष में रखा है और जिससे रावण का वध किया जा सकता है। हनुमान जी ने कहा कि माते आपको वह अस्त्र कहीं छिपा देना चाहिए। मंदोदरी यह बात सुनकर घबरा गई, और वह तुरंत उस स्थान पर गई जहां पर अस्त्र छिपाकर रखा गया था। उस समय हनुमान जी ने अपना वेष धारण कर लिया और वे मंदोदरी से वह दिव्यास्त्र छीनकर आकाश मार्ग से वहां से चले गए तथा उसे राम को दे दिया। इस प्रकार रावण को मारने में श्रीराम सफल हुए।