बसपा की रैली में लगे आजम खान जिंदाबाद के नारे

रामपुर जनपद में लोकसभा का चुनाव प्रथम चरण में है, जिसको लेकर 19 अप्रैल को मतदान होना है।

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उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर में हमेशा से ही सियासी एतबार के नजरिए से हॉट माना जाता है। मौजूदा वक्त में यहां पर 19 अप्रैल को मतदान होना है। जिसको लेकर सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने-अपने पक्ष में लाने के उद्देश्य से जगत भिढ़ाने में जुटे हैं। कुछ इसी तरह का नजारा बसपा प्रत्याशी जीशान खान के रोड शो में भी देखने को मिला। दरअसल, रोड शो तो बसपा का था लेकिन उसमें जीशान खान के साथ ही आजम खान जिंदाबाद के नारे भी लग रहे थे। यही नहीं सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान की तस्वीर लगा बैनर भी बसपा समर्थकों के हाथ में था।

रामपुर जनपद में लोकसभा का चुनाव प्रथम चरण में है, जिसको लेकर 19 अप्रैल को मतदान होना है। बसपा ने युवा प्रत्याशी के रूप में जीशान खान को चुनाव मैदान में उतारा है। वही सपा से मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी, भाजपा से मौजूदा सांसद घनश्याम सिंह लोधी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता मेहमूद प्राचा चुनावी रण में जीत हासिल करने के लिए धुआंधाड़ जनसंपर्क और रैलियां कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि राजनीति के तीन महारथी चुनावी अखाड़े से सपा के आजम खान, भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी और कांग्रेस की बेगम नूरबानो अपनी मज़बूत राजनीतिक हैसियत और उंचे कद के बावजूद किंग बनने की भूमिका से पहली बार बाहर हैं।

कांग्रेस की पूर्व सांसद बेगम नूरबानो इंडिया गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ रही है। सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी के समर्थन में जगह-जगह आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में दिखाई दे रही है इसी प्रकार भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा प्रत्याशी एवं सांसद घनश्याम सिंह लोधी के नामांकन कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। यहां स्थिति स्पष्ट है कि भाजपा प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी को अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी का भरपूर समर्थन मिल रहा है वहीं सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी को कांग्रेस की पूर्व सांसद बेगम नूरबानो का आशीर्वाद मिल चुका है और वह सपा प्रत्याशी के समर्थन में आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत भी करती नजर आ रही है। लेकिन जनता के बीच मजबूत पकड़ रखने वाले सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान कोर्ट द्वारा सजा सुनाए के जाने के बाद पत्नी और बेटे के साथ प्रदेश की अलग-अलग जेलों में बंद है।

कहीं ना कहीं सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी को अखिलेश यादव के द्वारा आजम खान की मर्जी के बिना चुनाव मैदान में उतारा गया है। चर्चा है कि आजम खान कहीं ना कहीं सपा प्रत्याशी की भूमिका और उनके प्रचार के रवैया से नाखुश है। इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आजम खान की बेहद करीबियों में गिने जाने वाले एवं पूर्व सपा जिला अध्यक्ष वीरेंद्र गोयल और रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी जेड.एम. खान खुल्लम खुल्ला अपनी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के द्वारा घोषित प्रत्याशी का बायकाट करते हुए बसपा के जीशान खान का समर्थन करते नजर आए थे। जिससे यही अंदाज़ लगाया जा रहा है कि कहीं ना कहीं आजम खान समर्थक अपनी पार्टी के प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी से ना खुश है और बसपा प्रत्याशी जीशान खान गले लगाने से भी उन्हें कोई किसी तरह का गुरेज नहीं है।

यह बात राजनीतिक परिदृश्य के चलते साबित भी होने लगी है। दो रोज पहले बसपा की जनसभा में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के स्थानीय सिपहसालारों ने जिस तरह से भाजपा और सपा पर निशान साधा और वही चुनावी माहौल को अपने पक्ष में लाने के उद्देश्य से आजम खान से सहानुभूति दर्शाने का प्रयास किया उससे तो यही लग रहा था कि यह चुनावी मंच बसपा और आजम खान के गठबंधन का कोई सियासी मंच है। अब एक बार फिर से यही नजारा रामपुर की गलियों से गुजर रहे बसपा प्रत्याशी जीशान खान की अगुवाई वाले रोड शो में भी देखने को मिला। रोड शो के दौरान आजम खान जिंदाबाद लिखा बैनर बसपाइयों के हाथ में था और जुबान पर आजम खान जिंदाबाद के नारे यहां की सड़कों और गलियारों में गूंज रहे थे।

लोकसभा 2019 का आम चुनाव देखें तो यह स्थिति और भी स्पष्ट हो जाती है कि उसे समय सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान बसपा के साथ गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़े थे तब उनके कार्यक्रमों में सपा और बसपा के झंडे एक साथ दिखाई दे रहे थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि आजम खान ने भारी वोट हासिल करने के बाद भाजपा की प्रत्याशी एवं फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को करारी शिकस्त देकर जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश में लोकसभा का चुनाव निपट जाने के बाद भले ही सपा और बसपा का गठबंधन टूट गया हो लेकिन रामपुर में इस टूट का कोई खास असर अब तक नहीं दिखाई देता है। उसे चुनाव के दौरान जो सफाई और बसपाइयों के बीच रिश्ते कायम हुए थे वह आज भी बरकरार है।

सपा के कद्दावर नेता आज़म खान और उनके समर्थकों ने भी इन रिश्तों अब तक कभी टूटने नहीं दिया है। जिसका असर वर्तमान समय में हो रहे लोकसभा के आम चुनावों में भी देखने को मिल रहा है। आजम खान को राजनीति के उन महारथियों में गिना जाता है जो बोलते हैं तो हारी हुई बाजी को जीत लेते हैं और जब खामोश रहते हैं तो किसी की जीती हुई बाजी को भी पलटने का मद्दा रखते है। वर्तमान परिस्थितियों को देखने के बाद तो यही लग रहा है कि उनका समर्थन स्पष्ट रूप से सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी के साथ तो नहीं है लेकिन उनकी खामोशी जरूर किसी दूसरी तरफ इशारा करती नजर आ रही है।

अब उनके इशारे के बारे में तो उनके समर्थक ही बेहतर बता सकते हैं कि उनका खामोशी भारा इशारा किस तरफ है। अगर आजम खान का इशारा बसपा प्रत्याशी की तरफ हुआ तो इस चुनाव में बड़ा उलट फेर देखने को मिल सकता है और अगर यह इशारा किसी दूसरी ओर है तो उसको भी कहीं ना कहीं बड़ा सियासी फायदा हो सकता है। फिलहाल आजम खान की 50 साल की राजनीति के सफर को पैनी नजर से देखने वाले सियासी पंडितों के बीच अक्सर यही चर्चा सुनने को मिलती है कि उन्होंने अब तक जो भी बात कही है वह लकीर खींच कर कहिए और डंके की चोट पर गई। फिलहाल आजम खान एवं उनके परिवार की दर्द का एहसास उजागर करने वाले बसपाइयों और उनके समर्थकों के बीच कुछ ना कुछ सियासी खिचड़ी जरूर पक रही है।