हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस बार सफला एकादशी 7 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। सफला एकादशी के दिन व्रत करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है। पद्मपुराणमें पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए। पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी कल्याण करने वाली है।
सफला एकादशी का महत्व
सफला एकादशी के बारे में माना जाता है, कि सौ राजसूय यज्ञों को करने से भी इतना पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है। जितना फल सफला एकादशी का व्रत नियम और निष्ठा से करने पर मिलता है। सफला शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है समृद्ध होना, सफल होना। इसलिए जीवन में समृद्धि और सफलता के लिए सफला एकादशी का व्रत बहुत ही लाभकारी माना गया है। मान्यता है, कि इस व्रत को करने से सौभाग्य, धन वृद्धि, समृद्धि, सफलता और वृद्धि के द्वार खुलते हैं।
व्रत एवं पूजा विधि
- सफला एकादशी व्रत के प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर साफ कपड़े पहन लें, संभव हो तो पीला कपड़ा पहनें।
- इसके बाद हाथ में जल लेकर सफला एकादशी व्रत, भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
- अब पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें।
- उनको पीले फूल, चंदन, हल्दी, रोली, अक्षत्, फल, केला, पंचामृत, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, मिठाई, चने की दाल और गुड़ अर्पित करें।
- इसके बाद केले के पौधे की पूजा करें।
- फिर विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें।
- उसके बाद सफला एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें।
- पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और कार्य में सफलता के लिए श्रीहरि से कामना करें।
सफला एकादशी की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, महिष्मान राजा का एक पुत्र लुम्पक पाप कर्मों से लिप्त था। इस कारण राजा ने उसे देश से बाहर निकाल दिया। लुम्पक जंगल में भटकता रहा और पौष कृष्ण दशमी की रात सर्दी के कारण सो नहीं सका और बेहोश हो गया। इसके बाद उसे होश आया तो उसने अपनी किस्मत को खूब कोसा और भगवान से माफी मांगने लगा। कहते हैं एकादशी की रात अपने पश्चाताप के कारण उसका सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इसके बाद वह सुधर गया और वापस पिता के पास चला गया। पिता ने अपना राज्य उसे सौंप दिया। मृत्यु के बाद लुम्पक को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।