सुप्रीम कोर्ट पहुंचा संदेशखाली मामला, SIT जांच करवाने की मांग

इसे लेकर वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में पीड़ितों को मुआवजा देने के निर्देंश देने के साथ- साथ दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग भी की गई है।

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पश्चिम बंगाल के हो रहे संदेशखाली यौन उत्पीड़न का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। आपको बता दे मामले की जांच अब मामले की जांच SIT या सीबीआई से करवाने मांग की गई है। याचिका में मामले की निष्पक्ष जांच के लिए पूरी जांच पश्चिम बंगाल से बाहर करवाने की भी मांग की गई है। तो वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक से कहा है कि वह मामले को ईमेल कर दें, अदालत दोपहर में देखेगी कि क्या करना है। बता दें कि मणिपुर की तर्ज पर 3 जजों की कमेटी बनाकर मामले की निष्पक्ष जांच की मांग सुप्रीम कोर्ट से की गई है। इसे लेकर वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में पीड़ितों को मुआवजा देने के निर्देंश देने के साथ- साथ दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग भी की गई है।

संदेशखाली मामले की निष्पक्ष जांच की मांग

अदालत में दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है कि संदेशखली इलाके में टीएमसी नेता शेख शाहजहां का आतंक है। बता दें कि 5 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों की एक टीम पीडीएस योजना में कथित अनियमितताओं के संबंध में संदेशखाली में शेख के घर पर छापा मारने गई थी। आरोप है कि तब शेख शाहजहां के कथित गुंडों ने ईडी अधिकारियों पर हमला कर दिया था। इस हमले मे तीन ईडी अधिकारी बुरी तरह घायल हो गए थे। याचिका में कहा गया है कि इस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच और सुनवाई पश्चिम बंगाल में नहीं हो सकती इसलिए, न्याय के हित में इसे पश्चिम बंगाल के बाहर ट्रांसफर किया जाना चाहिए।

मिलीभगत का आरोप

याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपनी जांच में आश्चर्यजनक रूप से पाया है कि पुलिस ने पीड़ित महिलाओं की शिकायत दर्ज करने के बजाय उनके रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की हैं। स्थानीय पुलिस पीड़ितों को धमका रही है और उन्हें बाहर आने और घटना की जानकारी देने से रोका जा रहा है. बता दें कि पश्चिम बंगाल की स्थानीय पुलिस पर सत्ताधारी दल के नेताओं के साथ मिलीभगत करने अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने और इसके बजाय परिवार को फंसाने के और भी गंभीर आरोप हैं। पीड़ितों को चुप कराने के लिए उनके लोगों को ही झूठे मुकदमों में फंसाने के भी आरोप लग रहे हैं।