रामपुरी चाकू और इसका एक सदी का इतिहास

उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर में दुनिया का सबसे बड़ा चाकू स्थापित किया जा चुका है।

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फिल्मों में अक्सर रामपुरी चाकू को लेकर बोले गए डायलॉग लोगों के जहनो में घर बन चुके हैं वही “जानी यह बच्चों के खेलने की चीज़.नहीं ,लग जाए तो खून निकल आता है, अभिनेता राजकुमार के द्वारा बोला गया यह फिल्मी डायलॉग अक्सर बच्चे बच्चे की जुबान से लोगो को सुनने को मिलता रहता है, क्या आप इस रामपुरी चाकू और इसके एक सदी के इतिहास से वाकिफ है, अगर नहीं तो हम दिखाते हैं आपको इससे जुड़ा इतिहास और वर्तमान, मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर में दुनिया का सबसे बड़ा चाकू स्थापित किया जा चुका है। आईए रूबरू कराने की कोशिश करते हैं इस धारदार हथियार के हर पहलू से आपको…

उत्तर प्रदेश के जनपद रामपुर का ब्रिटिश शासन काल के दौरान अपना अलग ही महत्व रहा है। यहां पर रियासत के दौरान 1774 ईस्वी से लेकर 1949 तक कुल 10 नवाबों ने शासन किया है। रियासत काल के दौरान की कई उपलब्धियां यहां के इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। वही यहां की कई जाने-माने हस्तियों ने फिल्म जगत में अपने अद्भुत अभिनय से छाप छोड़ी है। अभिनेता मुराद खान, प्राण और रजा मुराद खान उन चर्चित हस्तियों में शुमार है जिन्होंने रामपुर का नाम फिल्मों के रुपहेले पर्दे पर कभी न मिटने वाली अपनी अदाकारी से भी रोशन किया है। फिल्म अभिनेता मुराद खान और उनके बेटे रजा मुराद खान का रामपुर जन्म स्थल है तो वही अभिनेता प्राण ने भी यहां पर अपने पिता केवल कृष्ण सिकंद की तैनाती के दौरान अपनी जिंदगी के कीमती वक्त के रूप में बचपन गुजरा है।

रामपुर रियासत के नवें नवाब हामिद अली खान ने यहां पर सन 1900 से लेकर 1930 तक शासन किया इस दौरान उनके दौर में रियासत को कई उपलब्धियां हासिल हुई है। वर्ष 1908 में पच्चू उस्ताद नाम के एक शख्स का जन्म हुआ जिनके पिता धारदार हथियार बनाया करते थे, लेकिन इन सबसे आगे बढ़कर पच्चू उस्ताद ने एक ऐसा धारदार हथियार बना डाला जिसे हम चाकू के रूप में जानते हैं। चाकू से पहले नवाब, राजा, महाराजा और बादशाहों की फौजे तलवारों, खंजरों और कुकरी आदि धारदार हथियारों का इस्तेमाल या तो अपनी हिफाजत के लिए या फिर दुश्मन पर वार करने के लिए किया करती थीं। इन सबके बीच चाकू का धारदार ब्लैड मुड़कर उसके हत्थे के अंदर छिप जाया करता था जो उस दौर की अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी।

रामपुर में नवाबी दौर में लोगों के मनोरंजन के लिए जहां पठानी राग के अलावा नुमाइश लगाने की व्यवस्था रियासत की ओर से हर साल की जाती थी। सौ साल पहले वर्ष 1925 में पच्चू उस्ताद ने स्वयं के द्वारा तैयार किया गया चाकू पहली बार इस नुमाइश में लोगो को दिखाने और खरीदारी के लिए रखा था। नुमाइश में तत्कालीन नवाब हामिद अली खान भी तशरीफ़ लाए थे और उन्होंने जब पच्चू उस्ताद की इस नायाब कारीगरी का नमूना चाकू के रूप में देखा तो वह काफी खुश हुए और इसके बाद उन्होंने इनाम बतौर उनको 25 रुपए भी दिए। तभी से चाकू की पहचान धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी थी।

अभिनेता प्राण अपने अभिनय से देशभर के सिनेमा घरों में लगने वाली फिल्मो के जरिए अपनी अलग पहचान बना चुके थे। उनके अलावा अपनी दमदार आवाज से सिनेमाघरों में गूंज मचा देने वाले अन्य अभिनेता मुराद खान और उनके बेटे रजा मुराद खान ने भी रामपुर की पहचान बनाई है । इसी सुनहरे दौर में अभिनेता प्राण ने रामपुरी चाकू को लेकर फिल्म जगत में ले जा कर दस्तक दे डाली थी और उनके इस कीर्तिमान में पिता पुत्र की जोड़ी के रूप में मशहूर अभिनेता मुराद खान व रजा मुराद ने भी चाकू को अमिट पहचान दिलाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी।

फिर यहीं से शुरू हुआ फिल्मी दुनिया में रामपुरी चाकू का रुपहले पर्दे के अभिनय में इस्तेमाल होना। मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र, जॉनी वॉकर और अभिनेत्री हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म ‘राजा जानी” में हेमा मालिनी के हाथों में यह चाकू देखा गया जिसे वह खोलकर खड़ी हो जाती हैं चाकू को देखकर कॉमेडियन जॉनी वॉकर के मुंह से वह शब्द “यह क्या लपूझन्ना है” आज भी रामपुरी चाकू को ताजा कर देते हैं इसके अलावा तेज़ाब फिल्म में विलेन का किरदार निभा रहा है किरण कुमार के हाथों में भी रामपुरी चाकू देखा गया था। सबसे जबरदस्त डायलॉग अभिनेता राजकुमार के द्वारा अपनी फिल्म में बोला गया वह डायलॉग “जॉनी यह बच्चों के खेलने की चीज नही, लग जाए तो खून निकल आता है” आज भी बच्चे बच्चे की जुबान और जहन में तरो ताजा बना हुआ है।

चाकू के प्रसिद्ध कारीगर मोहम्मद यामीन अब अपने इस कारोबार से काफी खुश नजर आते हैं। 4 साल पहले तक उनके सामने अपने कारोबार को लेकर काफी दिक्कत थी पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के द्वारा 1990 के आसपास चाकू को बैन कर दिया गया था। जिसके चलते वह रामपुर की इस पहचान को बनाए रखने के लिए काफी ज्यादा मेहनत करते दिखाई पड़ते थे। लेकिन तत्कालीन डीएम और वर्तमान मुरादाबाद मंडल आयुक्त आंजनेय कुमार सिंह के द्वारा उनसे संपर्क साधकर उनके कारोबार को बढ़ावा दिया गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि अब वह चाकू तैयार करने के कार्य को अपनी मुकम्मल रोजी-रोटी बना चुके हैं।

यहां तक कि मंडल आयुक्त आंजनेय कुमार सिंह की इस अनूठी पहल के चलते नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक चौराहे पर दुनिया का सबसे बड़ा चाकू जिसकी कुल लंबाई 6.10 मीटर और कुल वजन 8 कुंतल है, लगाया गया है। चौराहे को और अधिक आकर्षित बनाने के उद्देश्य से चाकू सहित इसके सौंदर्यकरण पर 52.52 लाख रुपए तक खर्च किए जा चुके हैं। आकार के हिसाब से यह चाकू दुनिया के सबसे बड़े चाकू की फहरिस्त में भी आ चुका है और वही इस चौराहे का नाम चाकू चौराहा भी रख दिया गया है।

सीडीओ नंदकिशोर कलाल भी चाकू के 100 वर्ष पूरा होने पर काफी खुश नजर आते हैं और बंद पड़े चाकू के कारोबार को एक बार फिर से उभरते देख काफी उत्साहित भी प्रतीत होते हैं। उनका कहना है कि चाकू कला का एक बेहतरीन नमूना तो है ही यह रोजगार का एक माध्यम भी है। उनकी कोशिश है कि एक शहर एक उत्पाद में रामपुरी चाकू को भी रखा जाए ताकि इसकी पहचान की चमक कभी भी फीकी ना पड़ सके। खुशी की बात है कि चाकू अपने स्वर्णिम 100 वर्षो को पूरा करने वाला है जिसको लेकर यहां के स्थानीय कार्यक्रम को सम्मानित करने की कार्य योजना भी तैयार की जा रही है।

लोकसभा या विधानसभा के चुनावो में रामपुरी चाकू अक्सर नेताओं की जुबान पर भाषणों के रुप में अक्सर छाया रहता है। पूर्व के आम विधानसभा चुनाव में आजम खान अपने भाषण के दौरान चाकू के बजाये कलम को ज्यादा अहमियत देते नजर आए तो वही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कलम के साथ-साथ चाकू को भी रोजी-रोटी और हुनर का एक अहम हिस्सा बताया था। केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार कौशल विकास कार्यक्रमों के तहत स्थानीय उत्पादों को देश ही नहीं विश्व स्तर पर पहुंचने के उद्देश्य से लगातार प्रयास कर रही है। सरकार के प्रयास के चलते वेदम हो चुका रामपुरी चाकू पहले की राजनीति के कारण आई ज़ंख से निकलकर अब एक बार फिर से चमकना शुरू हो गया और मोहम्मद यामीन जैसे हुनरमंद कारीगरों के कारखानों से तैयार होकर चाकू मार्केट की बची कुची 2 दुकानों पर भी बिक्री के लिए पहुंचने लगा है।

स्थानीय पत्रकार एवं लेखक चांद खान ने रामपुर के इतिहास पर लिखी गई अपनी किताब “हमारी विरासत” में चाकू को लेकर विस्तृत जानकारी दी है। किस तरह से 100 साल के इतिहास में चाकू और उससे जुड़े कारोबार ने कितने उतार-चढ़ाव देखे इतिहास के पन्नों को खंगाल कर इसके विषय में बाखूबी अपने शब्दों के जरिए लोगों के सामने जबरदस्त प्रयास किया है।