भारतीय संस्कृति में अधिकांश व्रत-पूजन प्रातःकाल में ही किए जाते हैं, किन्तु भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत सायंकाल, गोधूलि बेला में करने का विधान है। व्रतोपवास की दृष्टि से भगवान शिव की आराधना में वारों में सोमवार और तिथियों में त्रयोदशी (प्रदोष) का विशेष महत्व माना जाता है। इस लेख में हम आपको इस व्रत का महात्मय और पूजनविधि बताने जा रहे है –
क्या है रवि प्रदोष व्रत ?
जब रविवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ता है तो इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। रवि प्रदोष का व्रत धारण करने से संतान प्राप्ति में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और सरकारी नौकरी में आ रही रूकावटें भी को दूर होती हैं। इस दिन सूर्यदेव के साथ भगवान शिव जी की पूजा की जाती है। मान सम्मान पाने के लिए, संतान पाने के लिए और सुख समृद्धि पाने के लिए रवि प्रदोष व्रत सबसे उत्तम माना जाता है। यदि आप स्वस्थ जीवन चाहते हैं और लंबी आयु पाना चाहते हैं तो इसके लिए रवि प्रदोष व्रत सबसे सर्वोत्तम है।
प्रदोष व्रत का माहात्म्य
धर्मशास्त्रानुसार प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी एवं सुखी बनाता है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से सुहागन स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है। जो स्त्री-पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर पूरी करते हैं। सूत जी के कथानुसार त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय-दान करने का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि-विधान और तन-मन-धन से करता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों में कहा जाता है कि प्रदोष काल में पूरे शिव परिवार की पूजा करने से ऐसी कोई भी मनोकामना नहीं है जो पूर्ण नहीं होती है। इस दिन शिवालय में जाकर पूजा आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि रवि प्रदोष का व्रत करने से सरकारी नौकरी की परेशानियां, संतान प्राप्ति की बाधा और जन्म कुंडली में कमजोर सूर्य आदि समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- रवि प्रदोष व्रत के दिन सुबह प्रात:काल उठकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए।
- स्नान करने के बाद साफ सुथरे कपड़े धारण कर व्रत का संकल्प लें।
- व्रत का संकल्प करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- रवि प्रदोष व्रत के दिन तांबे के पात्र में होली, अक्षत और गुड़हल का फूल डालें।
- भगवान सूर्य देव को ओम घृणि सूर्य नम: इस मंत्र के द्वारा अर्घ्य देना चाहिए।
- अर्घ्य देने के बाद सूर्यदेव की तीन बार परिक्रमा करें।
- फिर घर के मंदिर में जाकर प्रतिदिन की तरह सभी देवी देवताओं की पूजा करें।
- इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।
- भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे पहले भगवान शिव जी का जलाभिषेक करें और फिर पचांमृत या दूध से अभिषेक करें।
- अभिषेक करने के बाद उन्हें वस्त्र या कलावा अर्पित करें।
- फिर उसके बाद चंदन, अक्षत, बेलपत्र और धतुरा आदि चीजें अर्पित करें।
- भगवान शिव जी के साथ ही माता पार्वती की भी विशेष पूजा करनी चाहिए।
- भगवान शिव को सफेद पुष्प और माता पार्वती को लाल गुड़हल या फिर गुलाब का फूल अर्पित करना चाहिए।