हर माह में दो बार पड़ने वाली त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। सप्ताह के दिनों के हिसाब से प्रदोष व्रत का अलग अलग महत्व और नाम है। मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। प्रदोष व्रत में महादेव की पूजा भी प्रदोष काल में ही की जाती है। प्रदोष काल वैसे तो सूर्यास्त के बाद और रात से पहले के समय को कहा जाता है, लेकिन कुछ जगहों पर इसके समय को लेकर अलग अलग धारणाएं हैं। जानिए क्या होता है प्रदोष काल और इससे जुड़ी मान्यताएं-
मान्यताएं
प्रदोष काल के निर्धारण को लेकर तीन तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से शुरू होकर चार घटी आगे तक यानी 96 मिनट का होता है। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के समय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक का काल लेकर ,उसके पांच भाग करें। उसमें से जो पहला भाग होगा, वो प्रदोष काल कहलाएगा। ये सूर्यास्त के बाद करीब 144 मिनट तक रहता है। वहीं तीसरी मान्यता है कि सूर्यास्त से पहले डेढ़ घंटा और सूर्यास्त के बाद डेढ़ घंटे तक प्रदोष काल माना जाता है।
पूजन नियम
ये सभी मान्यताएं अलग अलग क्षेत्रों के मुताबिक मानी गई हैं। लेकिन इन सभी मान्यताओं में एक बात समान है कि सूर्यास्त के बाद डेढ़ घंटे तक प्रदोष काल रहता है। यानी अगर आप अपनी प्रदोष काल की पूजा करना चाहते हैं तो अपने क्षेत्र में उस दिन सूर्यास्त का समय पता करें और उसके बाद के डेढ़ घंटे मेंं पूजा करें।
महत्व
शास्त्रों में कहा जाता है कि प्रदोष काल में पूरे शिव परिवार की पूजा करने से ऐसी कोई भी मनोकामना नहीं है जो पूर्ण नहीं होती है। इस दिन शिवालय में जाकर पूजा आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि रवि प्रदोष का व्रत करने से सरकारी नौकरी की परेशानियां, संतान प्राप्ति की बाधा और जन्म कुंडली में कमजोर सूर्य आदि समस्याओं से छुटकारा मिलता है।