धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखती है पौष अमावस्या, अपनाये ये उपाय

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हिंदू धर्म में पौष मास का खास धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस महीने में पड़ने वाले व्रत-त्योहार बेहद खास होते हैं। इसके साथ ही इस महीने को लघु पितृ पक्ष के रूप में भी जाना जाता है। दरअसल पौष के महीने में श्राद्ध कर्म, स्नान-दान और पितरों के निमित्त तर्पण किए जाते हैं। यही वजह है कि अमावस्या तिथि को श्राद्ध और तर्पण कार्य के लिए उत्तम मानी जाती है। पंचांग के अनुसार, पौष मास की अमावस्या तिथि इस साल 11 जनवरी, गुरुवार को यानी आज है। आइए जानते हैं पौष अमावस्या का महत्त्व और इस दिन कौन का उपाय करना बेहतर है।

क्यों महत्वपूर्ण है पौष अमावस्या ?

हिन्दू धर्म के अनुसार सभी अमावस्या तिथियों के दिन पूजा-अर्चना का महत्व बताया गया है लेकिन इन सब में पौष मास की अमावस्या को बहुत ही पुण्य फलदायी बताया गया है। माना जाता है कि ये शुभ माह धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के लिए यह सर्वश्रेष्ठ होता है। पौष अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए उपवास रखने से ना ही केवल हमारे पितृगण तृप्त और खुश होते हैं बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं।

पौष अमावस्या को करें ये उपाय

पितरों को दें तर्पण: पौष अमावस्या के दिन गंगा या अन्य पवित्र नदी में स्नान करें या अपने घर पर ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर लें। उसके बाद आप जल से अपने पितरों को तर्पण दें। जल से पितरों की आत्माएं तृप्त होंगी तो वे खुश होकर आपके खुशहाल जीवन और तरक्की का आशीष देंगी।

सूर्य देव की करें पूजा: पितरों को तर्पण देने के बाद आप सूर्य देव की पूजा कर सकते हैं। सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल भरकर ओम सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें। सूर्य देव को प्रणाम करके आशीर्वाद लें। सूर्य कृपा से आपके यश और कीर्ति में वृद्धि होगी।

पीपल की जड़ में जल ​अर्पित करें: पीपल के पेड़ में देवों का वास होता है। अमावस्या के दिन पीपल की जड़ में जल ​अर्पित करने और दीप जलाने से देवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितर भी प्रसन्न होते हैं और कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।

कालसर्प दोष के लिए करे ये उपाय: यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है तो आप इस दिन नदी स्नान के बाद धातु के बने नाग और नागिन की पूजा करें। उसके बाद उनको बहते जल में प्रवाहित कर दें। इससे कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। हालां​कि कई ज्योतिषाचार्य कालसर्प दोष के सिद्धांत को ही नहीं मनाते हैं।