गुरु नानक जयंती के पावन अवसर पर जाने उनके दिए हुए पांच अनमोल वचन

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प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष कि पूर्णिमा तिथि को सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव की जयंती मनाई जाती है। वे सर्वधर्म सद्भाव के प्रेरक माने जाते हैं। उनका व्यक्तित्व दार्शनिक योगी गृहस्थ धर्म-सुधारक समाज सुधारक देशभक्त जैसे गुणों को समेटे हुआ है। इस बार गुरुनानक जयंती 27 नवंबर को मनाई जा रही है। गुरुनानक जयंती को हम कई अन्य नाम से भी जानते हैं। जैसे इस पर्व को हम प्रकाश पर्व, गुरु पर्व, गुरु पूरब भी कहते हैं।

गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को पाकिस्तान में स्थित श्री ननकाना साहिब में हुआ था। उनका व्यक्तित्व दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्म-सुधारक, समाज सुधारक, देशभक्त जैसे सभी गुणों को समेटे हुआ है। गुरु नानक देव जी ने समाज में फैले अंधविश्वास, घृणा, भेदभाव को दूर करने के लिए सिख संप्रदाय की नींव रखी। उन्होंने समाज में आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने के लिए लंगर परंपरा की शुरुआत की थी। गुरु पर्व पर सभी गुरुद्वारों में भजन, कीर्तन होता है और प्रभात फ़ेरियां भी निकाली जाती हैं।

गुरुनानक देव जी के पांच अनमोल वचन

  • ईश्वर एक है – गुरु नानक देव ने ‘इक ओंकार’ का उपदेश दिया इसका मतलब है कि ईश्वर एक है। वो हर जगह विद्यमान हैं। गुरु नानक देव कहते हैं कि सबके साथ प्रेम और सम्मान के साथ रहना चाहिए।
  • पांच बुराई – गुरु नानक देव जी ने जिन पांच बुराइयों को सूचीबद्ध किया, वे थे अहंकार, क्रोध , लोभ , मोह और वासना (काम)। जब कोई इन पांच बुराइयों से छुटकारा पाता है, तो वह भगवान के करीब हो जाता है।
  • समानता – गुरु नानक देव जी ने कभी भी जाति, धर्म, नस्ल, रंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर इंसानों में भेद नहीं किया। उन्होंने आसानी से अपना भोजन और सामान जरूरतमंदों के साथ साझा किया और कोई भी जरूरतमंद इंसान कभी भी गुरु नानक जी के घर से खाली हाथ नहीं गया। इसलिए हर किसी को उसका अधिकार सम्मानपूर्वक देना चाहिए। गरीब और जरूरतमंदों की हर संभव मदद करनी चाहिए।
  • महिलाओं का सम्मान करें – हम आधुनिक समय में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को ध्यान में रखते हुए गुरु नानक की शिक्षाओं को भूल गए हैं। उन्होंने अपने एक श्लोक में भी इस सिद्धांत का उल्लेख किया है। महिलाओं का आदर-सम्मान करना चाहिए। उन्होंने स्त्री और पुरुष में किसी प्रकार के भेद को नहीं माना।
  • सेवा – नि:स्वार्थ सेवा – सेवा का अर्थ है निस्वार्थ सेवा, बिना किसी लालच या व्यक्तिगत लाभ के दूसरे की सेवा करना। गुरु नानक जी के अनुसार, सेवा असीम आध्यात्मिक संतुष्टि का स्रोत थी। जब कोई लाभ कमाने के उद्देश्य के बिना सेवा में लिप्त होता है, तो वह अपने उच्च अस्तित्व के साथ जुड़ जाता है और मानसिक शांति प्राप्त करता है।