दशहरे के पर्व पर अब ‘रावण’ की जगह “जिहादी/आतंकवादी” के दहन की हो शुरुआत

आतंकवाद का पुतला जलाया जाना चाहिए जिसके कारण बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है।

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रावण (Ravana) का सर्वनाश उसके क्रोध और अहंकार के कारण हुआ। श्रीराम (Shri Ram) ने जब रावण का वध किया, तो इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया। ठीक उसी तरह अब आतंकवाद जिहादवाद नाम की बुराई और हैवानियत से पूरी दुनिया परेशान है। अब हमे जिहादी या आतंकवादी को जलाने की शुरुआत दशहरे पर करनी चाहिए।नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा (Dussehra) मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण पर जीत हासिल की थी। रावण के पुतले को जलाने की परंपरा कई सालों से चली आ रही है। आइए जानते हैं क्यों किया जाता है रावण का दहन। नौ दिन की नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है और दशहरे से 21वें दिन पर दीपावली (Diwali) का त्यौहार मनाया जाता है। अब अगर आपके मन में ये सवाल उठता है कि रावण का दहन क्यों किया जाता है तो इसका जवाब हम आपके लिए लाए हैं।

सोने की लंका का सम्राट रावण अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत, तपस्वी और प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था। कहा जाता है कि रावण अपने दस सिर से 10 दिशाओं पर नियंत्रण कर सकता था। रावण ने ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्‍या की और हर 1,000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वह अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए और रावण से वर मांगने को कहा। रावण ने ब्रह्माजी से ऐसा वर मांग लिया की उसे मारना मुश्किल था। चारों वेदों और 6 उपनिषदों का ज्ञान रखने वाले रावण पर जब राम ने विजय प्राप्त की तो इसे विजयादशमी कहा जाने लगा। जिसे विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। रावण का सर्वनाश उसके क्रोध और अहंकार के कारण हुआ। राम ने जब रावण का वध किया, तो इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया। इसी वजह से बुराई रूपी रावण के पुतले के दहन की परंपरा हर साल निभाई जाती है।

मान्यता है कि असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में ये परंपरा शुरू हुई। दशहरे के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट कंस का भी वध किया था। इसी प्रकार भगवान विष्णु के कई अवतार हुए और दुष्टों के संहार का क्रम चलता रहा, लेकिन रावण के पुतले के दहन के पीछे की बड़ी वजह है।

रावण (Ravana) तपस्वी, मूर्धन्य, समस्त अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत बलशाली सोने की लंका का सम्राट था। इतना ही नहीं रावण प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था। यही वजह थी कि राम ने लक्ष्मण को मृत्यु-शैय्या पर पड़े रावण के पास राजधर्म का रहस्य जानने भेजा था। ज्योतिषाचार्य के अनुसार रावण की कोई मामूली सत्ता नहीं थी। रावण के 10 सिर थे। धर्म कहता है 10 दिशाएं होती हैं, जो रावण 10 दिशाओं पर नियंत्रण कर सकता था, उस पर विजय प्राप्त करना बड़ी बात थी। इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं और इसे विजय पर्व के रूप में मनाते हैं। अहंकार और क्रोध ने रावण का तो सर्वनाश किया ही साथ ही इस आग ने पूरे राक्षस कुल को भी प्राण देकर रावण के बुरे कर्मों की कीमत चुकानी पड़ी। इसीलिए राम ने जब रावण का वध किया, तो इससे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया।

हर साल की तरह इस बार भी दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। रावण दहन असत्य पर सत्य की जीत, अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक माना जाता है। आज ही के दिन भगवान राम ने लंका के राजा को युद्ध में हराकर माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराया। अब इसके पीछे एक तर्क ये भी है कि रावण तपस्वी, मूर्धन्य, समस्त अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत बलशाली सोने की लंका का राजा था। तो आखिरकार क्यों उसका समूल विनाश हुआ ? क्या मात्र सीता का अपहरण करके? राम से शत्रुता मोल लेकर या फिर अहंकार के नशे में चूर होकर।

कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण (Ravana) प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था। राम ने लक्ष्मण को मृत्यु-शैय्या पर पड़े रावण के पास राजधर्म का रहस्य जानने भेजा था। तब रावण ने कहा ‘मैंने जिंदगी में बहुत बड़ी भूल की है। मेरी तीन योजनाएं थीं- स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना, समुद्र का खारा पानी मीठा बनाना और सोने में सुगंध डालना। इन तीनों को कल पर टालता रहा और सीता अपहरण जैसे गलत काम को अंजाम दिया। अतएव सदा ध्यान रहे कि अच्छा काम टालने की बजाए तत्क्षण करना और बुरा काम कल पर टाल देना।’ रावण का चरित्र भी तारीफ के काबिल है। उसने सीताजी के साथ दुर्व्यवहार या किसी प्रकार का यौन-शोषण नहीं किया, जबकि आज गली-मोहल्लों में बलात्कार हो रहे हैं। ऐसे में पुतला रावण का नहीं बल्कि ऐसे अपराधियों का फूंकना चाहिए। आतंकवाद का पुतला जलाया जाना चाहिए जिसके कारण बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। भ्रष्टाचार का पुतला जलाना चाहिए जो हमारी जड़ों को खोखला कर रहा है।

अंतिम क्षण में उसने कहा कि- ‘राम मैं तुमसे हारकर भी जीत गया हूं। अंतकाल तुम मेरे सामने खड़े हो, इसलिए मैं मुक्ति का हकदार हूं। सहजता में मैं मुक्त हो गया, जिसके लिए साधक कितनी साधना करता है।’ राम भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। तो क्या ऐसे मुक्त, विद्वान पुरुष का पुतला जलाना चाहिए?

सचमुच में रावण (Ravana) एक असामाजिक प्रवृत्ति है, अहंकार और अज्ञानता का प्रतीक है, राक्षसी विचारधारा है। अगर अहंकार, असामाजिकता और आतंक जैसी रावणी प्रवृत्ति का पुतला जलाना है तो क्यों नहीं पहले हम अपने अंदर इस प्रवृत्ति का शमन करें। अपने अंदर के असली रावण को जलाएं, जिससे हम तो सुखी होंगे ही, साथ ही समाज व राष्ट्र भी सुख व राहत की सांस ले सकेगा। रावण की विद्वता को, नसीहत को प्रथम अपनाएं और फिर पुतला जलाएं तो अच्छा होगा, न कि बाहर तो रावण को भस्म किया और हमारे अंदर का रावण अभी जिंदा है।

दक्षिण भारतीयों का विरोध जायज है कि क्यों जलाते हैं रावण का पुतला? बात जलाने या न जलाने की नहीं है, बल्कि सच्चाई को समझने की है कि यदि रावण का पुतला जला रहे हैं तो सर्वप्रथम अज्ञानता, आतंकवाद, अहंकार का पुतला जलाना होगा और सत्य की, ज्ञान की, निर्भयता की और सुखमय जीवन की विजय करनी होगी। यह पर्व हमें संदेश देता है कि अन्याय और अनैतिकता का दमन हर रूप में सुनिश्चित है। चाहे दुनिया भर की शक्ति और सिद्धियों से आप संपन्न हों लेकिन सामाजिक गरिमा के विरूद्ध किए गए आचरण से आपका विनाश तय है।

हम चाहे कितने ही रावण जला लें लेकिन हर कोने में कुसंस्कार और अमर्यादा के विराट रावण रोज पनप रहे हैं। रोज सीता के देश की कितनी ही ‘सीता’ नामधारी सरेआम उठा ली जाती है और संस्कृति के तमाम ठेकेदार रावणों के खेमें में पार्टियाँ आयोजित करते नजर आते हैं। आज देश में कहां जलता है असली रावण? दहेज के लिए या फिर तेजाब से जलती है यहां रोज सिर्फ मासूम सीताएं।

इस बार दशहरे पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों की जगह आतंकवादी/ जिहादी का पुतला भी जलाया जाए। इस बार श्री रामलीला दशहरा स्थलों पर आतंकवाद विरोधी नारे लिखे फ्लैक्स भी लगाए जाये। देश में अस्थिरता व जंग के हालात पैदा करने वाले आतंकियों को सबक सिखाने व सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए आतंकवाद का पुतला भी फूंका जाए।अब अपनी नयी पीढी को रावण की बुराईयो से ज्यादा जिहादवाद और आतंकवाद के खतरे और आतंक उसके विनाश तथा हैवानियत की जानकारी देने की जरूरत है ।इसलिए अब रावण की जगह जिहादी का दहन हो ।