आज से शुरू हुआ नवरात्री का पर्व

आइये जाने भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री के बारे में।

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नवरात्र (Navratri) का पर्व शुरू हो चुका है और इन नौ दिनों में देवी पूजा का विशेष महात्म है। दुर्गा का अर्थ है, परमात्मा की वह शक्ति, जो स्थिर और गतिमान है, लेकिन संतुलित भी है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए शक्ति का होना जरूरी है और शक्ति की साधना का पथ अत्यंत गूढ और रहस्यपूर्ण है। हम नवरात्र में व्रत इसलिए करते हैं, ताकि अपने भीतर की शक्ति, संयम और नियम से सुरक्षित हो सकें, उसका अनावश्यक अपव्यय न हो। संपूर्ण सृष्टि में जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसे अपने भीतर रखने के लिए स्वयं की पात्रता तथा इस पात्र की स्वच्छता भी जरूरी है। धर्म की नगरी काशी में भी नवरात्री (Navratri) के नौ दिनों में देवी के अलग अलग रूपों की पूजा विधिवत की जाती है ! जिसमे सबसे पहले दिन माता शैल पुत्री के दर्शन का विधान है माँ का मंदिर काशी के अलई पूरा में स्थित है।

माता शैल पुत्री

भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री के रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इन्हे पार्वती स्वरुप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं। माँ की महिमा का पुराणों में वर्णन मिलता है कि राजा दक्ष ने एक बार अपने यहा यज्ञ किया और सारे देवी देवतायों को बुलाया, मगर श्रृष्टि के पालन हार भोले शंकर को नहीं बुलाया। इससे माँ नाराज हुई और उसी अग्नि कुण्ड में अपने को भष्म कर दिया। फिर यही देवी शैल राज के यहा जन्म लेती है।

वाराणसी में माँ का अति प्राचीन मंदिर है। जहाँ नवरात्र (Navratri) के पहले दिन हजारों भक्तो की भारी भीड़ उमड़ती है। हर श्रद्धालु के मन में यही कामना होती है कि माँ उनकी मांगी हर मुरादों को पूरा करेंगी। माँ को नारियल और गुड़हल का फूल काफी पसंद है !