नवरात्रि 2023: जाने माता के नौ रूपों के बारे में

0
159
Navratri

यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुई प्रमुख लड़ाई से जुड़ा है। ये नौ दिन पूरी तरह से दुर्गा और उनके नौ अवतारों – नवदुर्गा को समर्पित हैं। प्रत्येक दिन देवी के एक अवतार से जुड़ा है। नवरात्रि (Navratri) उत्सव के दौरान माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान एवं पूजा की जाती है। जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। आइये जाने देवी के इन रूपों के बारे में :-

  • माँ शैलपुत्री
  • माँ ब्रह्मचारिणी
  • माँ चन्द्रघण्टा
  • माँ कूष्माण्डा
  • माँ स्कंदमाता
  • माँ कात्यायनी
  • माँ कालरात्रि
  • माँ महागौरी
  • माँ सिद्धिदात्री

1. माँ शैलपुत्री

नवरात्री (Navratri) के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार माता शैलपुत्री का जन्म पर्वत राज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था। इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री है। माँ शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल मौजूद रहता है। माँ शैलपुत्री वृषभ पर बिराजमान है।

माँ शैलपुत्री को सम्पूर्ण हिमालय पर्वत समर्पित है। माँ शैलपुत्री का नवरात्री के पहले दिन विधिपूर्वक पूजन करने से शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है। माना जाता हे कि जिसकी कुंडली में मंगल की स्थिति ख़राब हो उन्हें माँ शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए। माता को सफ़ेद वस्तुए पसंद है। इसलिए पूजा में सफ़ेद फल, फूल और मिष्ठान चढ़ाना बहोत फलदायी है। कुंवारी कन्याओ का इस व्रत को करने से अच्छे वर की प्राप्ति होती है। माँ शैलपुत्री का पूजा व्रत करने से जीवन में स्थिरता आती है।

2. माँ ब्रह्मचारिणी

नवरात्री (Navratri) के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ तपस्या होता हे, और चारिणी का अर्थ आचरण होता है, अर्थात तप का आचरण करने वाली। माँ ब्रह्मचारिणी के दाये हाथ में जप के लिए माला हे, और बाए हाथ में कमण्डल है। इन्हे साक्षात ब्रह्म का रूप माना जाता है।

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कृपा और भक्ति की प्राप्ति होती है। माँ ब्रह्मचारिणी के लिए माँ पार्वती के उस समय का उल्लेख हे, जब शिवजी को पाने के लिए माता ने कठोर तपस्या की थी। उन्होंने तपस्या के प्रथम चरण में केवल फलो का आचरण किया और फिर निराहार रहके कई वर्षो तक तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से तप, त्याग, संयम की प्राप्ति होती है। माँ का यह स्वरुप अत्यंत ज्योतिर्मय और भव्य है। माता मंगल ग्रह की शाशक हे, और भाग्य की दाता है।

3. माँ चन्द्रघण्टा

नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माँ ने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण किया है। देवी की सवारी बाघ है, और दस हाथो में कमल, धनुष, बाण, कमण्डल, गदा, पुष्प जैसे अस्त्र है। इनके कंठ में स्वेत पुष्प की माला और शीश पर मुकुट है। अपने दोनों हाथो से वह साधको को चिरायु, आरोग्य और सुख सम्पति का वरदान देती है। माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्री के तीसरे दिन करने से भक्तो को जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

4. माँ कूष्माण्डा

नवरात्री के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कुष्मांडा माता ने अपनी मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की थी, इसीलिए इन्हे सृष्टि की आध्यशक्ति के रूप में जाना जाता है। कुष्मांडा माता का रूप बहुत ही शांत, सौम्य और मोहक माना जाता है। इनकी आठ भुजाए है, इसीलिए इनको अष्ट भुजा भी कहते है। इनके सात हाथो में कमण्डल, धनुष, बाण, फल, पुष्प, अमृत, कलश, चक्र, गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धि को देने वाली जप की माला है। माता का वाहन शेर है। माता के पूजन से भक्तो के सभी कष्टों का नाश होता है। माँ कुष्मांडा का नाम का मतलब हे, एक ऊर्जा का छोटा सा गोला। एक ऐसा पवित्र गोला जिसने इस समस्त ब्रह्माण्ड की रचना की। 

5. माँ स्कंदमाता

नवरात्री के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता नाम दो शब्दों से मिलकर बनता है- स्कंद और माता। स्कंद भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम है। कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र है। इसीलिए स्कंद माता का अर्थ हे, कार्तिकेय की माता। माता की चार भुजाए हे। वह एक हाथ में कार्तिकेय को पकडे हुए हे, दूसरे और तीसरे हाथ में कमल रखती हे, और चौथे हाथ से भक्तो को आशीर्वाद देती है। उनका वाहन शेर है, और वह कमल पर बिराजमान है। स्कंद माता विशुद्ध चक्र की अधिष्ठात्री देवी है। विशुद्ध चक्र हमारे गले के उभरे हुए भाग के ठीक नीचे स्थित होता है। स्कंद माता की पूजा करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता हे, और उस व्यक्ति को वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। व्यक्ति का आयुष्य बढ़ता हे, और वह विद्यावान बनता है। इनकी पूजा से सोलह कलाओ और सोलह विभूतिओं का ज्ञान होता है।

6. माँ कात्यायनी

नवरात्री के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होती है। माँ कात्यायनी की पूजा करने से भक्तो को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारो फलो की प्राप्ति हो जाती है। सभी रोग, भय आदि दूर हो जाते है। माँ कात्यायनी की कृपा से शादी में आनेवाली बाधाए दूर हो जाती हे, और बृहस्पति शादी के योग भी बनते है। और इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन भी अच्छा रहता है।

7. माँ कालरात्रि

नवरात्री के सातवे दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। काल अर्थ मृत्यु होता हे,और रात्रि का अर्थ अंधकार होता है। अतः कालरात्रि का अर्थ अंधकार व् अज्ञानता की मृत्यु होता है। माँ कालरात्रि दुर्गा का सबसे भयंकर रूप है। कालरात्रि माँ का रूप गहरा है। माँ के गले में विध्युत की माला और बाल बिखरे हुए है। माँ कालरात्रि के चार हाथ हे,और उनका एक हाथ वर मुद्रा में है, जिससे वह भक्तो को आशीर्वाद देती है। दूसरा हाथ अभय मुद्रा में हे, जिससे वह भक्तो की रक्षा करती है। तीसरे हाथ में उन्होंने वज्र पकड़ा हे, और चौथे हाथ में नुकीला कांटा है। माँ कालरात्रि का वाहन गधा है। माँ की पूजा करने से व्यक्ति अपने क्रोध पे नियंत्रण ला सकता है। नवरात्रि का सातवा दिन तांत्रिक क्रिया के साधना करने वाले लोगो के लिए अति महत्वपूर्ण है।

8. माँ महागौरी

नवरात्री के आठवे दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है। माँ महागौरी की पूजा अर्चना से भक्तो के सारे कष्ट दूर होते है। महागौरी के तेज से ही सम्पूर्ण विश्व प्रकाशमान होता है। इनकी शक्ति अमोग फल देने वाली है। इनके पूजा से सौभाग्य में वृद्धि होती है। माता ने महा तपस्या करके गौर वर्ण को प्राप्त किया है। इसीलिए इनको महागौरी कहते है। माँ के चार हाथ है। इनके दायने तरफ के ऊपर वाले हाथ में त्रिशुल धारण किया है, और निचे वाला हाथ वरदायिनी मुद्रा में है। बायें तरफ के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा धारण किये हुए है, और नीचे वाले हाथ में डमरू को धारण किया है। माँ का वाहन बैल है।

9. माँ सिद्धिदात्री

नवरात्री के नौवे दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। सिद्धि का अर्थ अलौकिक शक्ति और दात्री का अर्थ दाता या प्रदान करने वाली होता है। सिद्धिदात्री का यह स्वरुप सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस रूप में माँ कमल पर बिराजमान है। माता के चार हाथ है। उनके चारो हाथो में कमल, गदा, चक्र और शंख धारण करती हे। माता का वाहन सिंह है। माता अज्ञानता दूर करनेवाली है। पुराणों के अनुसार माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से अणिमा, महिमा, गरीमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ प्राप्त होती है और असंतोष, आलस्य, ईर्ष्या, द्रेष आदि से छुटकारा मिलता है।

चैत्र नवरात्रि 2023:

चैत्र नवरात्रि 22 मार्च, बुधवार से शुरू होगी और 30 मार्च, गुरुवार को समाप्त होगी। राम नवमी 30 मार्च को है और दशमी 31 मार्च को है। नवरात्रि का आठवां दिन या दुर्गा अष्टमी, जिसे महागौरी पूजा के रूप में भी जाना जाता है, 29 मार्च को है। चैत्र नवरात्रि घटस्थापना का मुहूर्त 22 मार्च को सुबह 6:23 बजे से 7:32 बजे तक था।