योग पर आधारित महाव्रत है “मौनी अमावस्या”, जाने इसका महत्व व् कथा

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माघ मास की अमावस्या जिसे “मौनी अमावस्या” कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इसी कारण भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा स्नान व ध्यान करते है। शास्त्रों के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का बहुत महत्व है। इस वर्ष मौनी अमावस्या 9 फरवरी,शनिवार को है।

क्यों कहा जाता है “मौनी” अमावस्या

इस अमावस्या तिथि को ‘मौनी’ कहने के पीछे यह मान्यता है कि इसी पावन तिथि पर मनु ऋषि का जन्म हुआ था और मनु शब्द से इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन मौन रहकर ईश्वर की साधना की जाती है, इसलिए इसे मौनी अमावस्या कहते हैं। इस बार यह तिथि शनिवार को होने के कारण इसका धार्मिक और ज्योतिष महत्व और भी बढ़ जाता है।

इसका महत्व

मौनी अमावस्या को माघी अमावस्या भी कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन धर्म कर्म के कार्यों को करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। अमावस्या तिथि पर स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्ध्य देकर पूजन करना बहुत उत्तम माना जाता है। इस दिन कंबल, फल, गर्म कपड़े, अन्न आदि का दान करने का विशेष महत्व है। माघ का महीना भगवान विष्णु को अति प्रिय है, इस महीने किए गए जप-तप, दान और पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं जो लोग कुंभ, नदी में जाकर स्नान नहीं कर सकते, वे घर में गंगा जल मिलाकर सभी तीर्थों का आह्वान करते हुए स्नान कर सकते हैं।

इससे जुडी कथा

प्राचीन काल में कांचीपुर में एक बहुत सुशील गुणवती नाम की कन्या थी। विवाह योग्य होने पर उसके पिता ने जब ज्योतिषी को उसकी कुंडली दिखाई तो उन्होंने कन्या की कुंडली में वैधव्य दोष बताया। उपाय के अनुसार गुणवती अपने भाई के साथ सिंहल द्वीप पर रहने वाली सोमा धोबिन से आशीर्वाद लेने चल दी।दोनों भाई-बहन एक वृक्ष के नीचे बैठकर सागर के मध्य द्वीप पर पहुंचने की युक्ति ढूंढ़ने लगे। वृक्ष के ऊपर घौसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे ।शाम को जब गिद्ध परिवार घौंसले में लौटा तो बच्चों ने उनको दोनों भाई-बहन के बारे में बताया। उनके वहां आने कारण पूछकर उस गिद्ध ने दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर अगले दिन सिंहल द्वीप पंहुचा दिया।वहां पहुंचकर गुणवती ने सोमा की सेवा कर उसे प्रसन्न कर लिया। जब सोमा को गुणवती के वैधव्य दोष का पता लगा तो उसने अपना सिन्दूर दान कर उसे अखंड सुहागिन होने का वरदान दिया। सोमा के पुण्यफलों से गुणवती का विवाह हो गया वह शुभ तिथि मौनी अमावस्या ही थी।