भारत सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की। कर्पूरी ठाकुर ने महत्वपूर्ण भूमि सुधार शुरू किए, जमींदारों से भूमिहीन दलितों को भूमि का पुनर्वितरण किया, जिससे उन्हें ‘जननायक’ या पीपुल्स हीरो की उपाधि मिली।
बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।
कर्पूरी ठाकुर (1924-1988) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारत के एक राज्य बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत थे। वह समाजवादी और जनता दल राजनीतिक आंदोलनों से जुड़े एक प्रमुख नेता थे। सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों की वकालत के लिए जाने जाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लगातार दो बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, पहले 1970 से 1971 तक और बाद में 1977 से 1979 तक। कर्पूरी ठाकुर को उनके राजनीतिक जीवन के दौरान शिक्षा और कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए भी पहचाना गया था।
बता दे कि कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। इसके बाद भी महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की थी।
वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए।