जाने भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग का हिन्दू धर्म में महत्त्व

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भगवान शिव पूरे ब्रम्हांड में पूज्यनीय हैं। वो निराकार है। आप कैसे उनसे जुड़ सकते हैं, उसको पहचान सकते हो, जो निराकार है, अमूर्त है। उसको पहचानने के लिए कोई प्रतीक हो, कोई चिन्ह हो जिससे उसकी पहचान हो सके। हमारे प्राचीन दृष्टाओं काफ़ी जानकार और समझदार थे, उन्होंने ने भगवान शिव की पहचान के लिए एक गोल और अंडाकार पत्थर रखा, जिसे हम शिवलिंग के रूप में पूजते हैं।

लिंग का अर्थ है पहचान, एक प्रतीक जिसके माध्यम से आप यह जान सकते हैं की सत्य क्या है – वास्तविकता क्या है? जो दिखाई नहीं दे रहा है, उसे एक चीज़ से पहचाना जा सकता है – वह है लिंग। भगवान की पहचान करने के लिए, उनका एक प्रतीक बना कर उसका संयोजन करना। जिनका कोई रूप कोई पहचान नहीं है और जो इस सृष्टि में सर्वव्यापी हैं, जिसके माध्यम से उसकी पहचान होती है – वही शिव लिंग है।

शिवलिंग भगवान शिव का सबसे प्राचीन प्रतीक है। जहाँ आप निराकार से आकार की और बढ़ते हैं। यह ब्रम्हांड और ब्रम्हांड के प्रतिनिधित्व का प्रतीक है। शिवलिंग का अर्थ सिर्फ़ शिव का होना ही नहीं है अपितु यह मूक रूप से प्रकट होने वाली और सदा गतिमान रहने वाली उस परम चेतना का भी प्रतीक है।

कई बार आप ने देखा होगा की छोटी छोटी चीज़ें आपको परेशान कर देती हैं। आपका मन राग – द्वेष में फंस जाता है। शिवरात्रि पर सभी राग – द्वेषों को छोड़कर बस भगवान शिव में अपना ध्यान लगायें और यह जाने की सब कुछ भगवान शिव ही हैं, सब उनसे ही है और सब कुछ उनमें ही समाने वाला है। हम सब भगवान शिव की बारात का ही हिस्सा हैं। जब आपको इस का अनुभव होता है, तब सारा जीवन ही उत्सव बन जाता है।