जाने लोहड़ी का महत्व, क्यों है यह त्यौहार किसानो के लिए खास

इस दौरान खेतों में फसल लहलहाने लगती है। लोहड़ी का पर्व मनाने के लिए रात को लकड़ी का घेरा बनाकर आग जलाई जाती है, जिसे लोहड़ी कहा जाता है।

0
91

लोहड़ी एक हर्षोल्लास भरे पर्व के रूप में ज्यादतर उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में हिंदू और सिख समुदायों द्वारा मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्यूकि इस दौरान खेतों में फसल लहलहाने लगती है। लोहड़ी का पर्व मनाने के लिए रात को लकड़ी का घेरा बनाकर आग जलाई जाती है, जिसे लोहड़ी कहा जाता है। यह अग्नि पवित्रता व शुभता का प्रतीक होती है। इस अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक जैसी चीज़े अर्पित की जाती हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं लोहड़ी पर आग क्यों जलाते हैं? आइए जानते हैं लोहड़ी के दौरान क्यों की जाती है अग्नि की पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व।

लोहड़ी शब्द कहा से आया ?

लोहड़ी शब्द को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। जैसे कुछ लोगों का मानना है कि लोहड़ी शब्द लोई से उत्पन्न हुआ, जोकि संत कबीर की पत्नी हैं। कई लोग का मानना है कि यह तिलोड़ी से उत्पन्न हुआ है, जो बाद में लोहड़ी हो गया। तो वहीं कुछ लोग यह मानते हैं कि लोहड़ी शब्द लोह से उत्पन्न हुआ था, जो चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त एक उपकरण है।

लोहड़ी पर सुनी जाती है दुल्ला भट्टी की कहानी!

लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। दरअसल मुगल काल में अकबर के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में ही रहता था। कहते हैं कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था। वहीं एक दिन दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई थी। तभी से दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया जाने लगा और हर साल हर लोहड़ी पर ये कहानी सुनाई जाने लगी।

कैसे मनाई जाती है लोहड़ी ?

लोहड़ी के लिए कई दिनों पहले से ही लकड़ियां इकट्ठा की जाती हैंऔर इन लकड़ियों को किसी खुले और बड़े स्थान पर रखा जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इकट्ठा होकर एक साथ त्योहार मना सकें। लोहड़ी की रात सभी लोग लकड़ियों के चारों ओर इकट्ठा होते हैं फिर पारंपरिक तौर से आग लगाई जाती है। इस अग्नि के चारों ओर लोग नाचते-गाते हुए उसमें मूंगफली, गजक, पॉपकॉर्न, मक्का और रेवड़ी की आहुति देते हैं।
इस दौरान पारंपरिक लोक गीतों को भी गाया जाता है।

लोहड़ी में अग्नि पूजा महत्व

लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण रात को जलाई जाने वाली आग है जिसे लोहड़ी कहा जाता है। लोहड़ी में जलने वाली आग अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन रात्रि में एक स्थान पर आग जलाई जाती है। सभी लोग इस आग के इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं। सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल,गुड़ आदि से बनी मिठाइयां अर्पित करते हैं। लोककथाओं के अनुसार लोहड़ी पर जलाए गए अलाव की लपटें लोगों के संदेश और प्रार्थनाओं को सूर्य देवता तक ले जाती हैं ताकि फसलों को बढ़ने में मदद मिल सके। बदले में सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद देते हैं। लोहड़ी के अगले दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।

लोहड़ी पर क्यों जलाते हैं अग्नि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी में अग्नि की परम्परा माता सती से जुड़ी मानी जाती है। कथाओं के अनुसार जब राजा दक्ष ने महायज्ञ का अनुष्ठान किया था,तब उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया लेकिन शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन इसके बाद भी माता सती महायज्ञ में पहुंचीं। परन्तु वहां उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव की बहुत निंदा की जिससे आहत सती ने अग्नि कुंड में अपनी देह त्याग दी। कहते हैं कि यह अग्नि मां सती के त्याग को समर्पित है।