मकर संक्रांति पर्व मुख्यत: सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह इकलौता ऐसा त्योहार है जो हर साल एक ही तारीख पर आता है। दरअसल मकर संक्रांति का त्यौहार सोलर कैलंडर के अनुसार मनाया जाता है। जबकि दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र कैलेंडर (चन्द्रमा के स्थान) के आधार पर होती है। यह क्रम हर आठ साल में एक बार बदलता है और तब यह त्योहार एक दिन बाद मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य क्या हैं। नहीं तो जानिए इन रोचक तथ्यों को।
उत्तरायण होता है सूर्य
यह त्यौहार सूर्य की दिशा को निर्धारित करने वाला होता है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढऩे लगता है, जिससे दिन की लंबाई बढऩा और रात की लंबाई छोटी होनी शुरू हो जाती है। और इसी के चलते दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
पतंग महोत्सव
इस त्यौहार से जुड़ा एक खास पहलू है पतंग महोत्सव। सालभर आपको आसमान में कहीं पतंग उड़ती नजर नहीं आती हैं लेकिन मकर संक्रांति के आते ही आसमान में पतंगें उड़ान भरने लगती हैं। इस त्यौहार को पतंगों उड़ाने की शुरुआत से भी जोड़ा जाता है। इतना ही नहीं मकर संक्रांति पर बड़ी-बड़ी पतंग प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। इसके पीछे भी तथ्य यह है कि पतंग उड़ाते समय हमारा कई घंटों का समय धूप में गुजर जाता है और सूर्य की सीधी किरणें हमारे शरीर को प्रभावित करती हैं। जो कि शरीर के लिए फायदेमंद होता है।
सुख और समृद्धि का प्रतीक
मकर संक्रांति को स्नान, दान और पूजा के महापर्व के साथ ही सुख और समृद्धि का पर्व भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है की इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। और इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन कई नदियों के तट और स्थानों पर बड़े-बड़े मेले भी आयोजित किए जाते हैं।
फसलों के लहलहाने का पर्व
यह पर्व पूरे भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहाने लगती है। सरसों के फूल खेतों को मनमोहकता प्रदान करने लगते हैं। पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है वहीं उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। और मध्य भारत में इसे संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
बसंत ऋतु का आगमन
खेतों में लहलहाती फसलें और सरसों के पीले फूलों की छटा मन को प्रफुल्लित कर देती है। यही वह छटा होती है जो बसंत ऋतु का अहसास कराती है। इसलिए मकर संक्रांति पर्व को बसंत के आगमन के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। मौसम में मीठी-मीठी सर्दी और खेतों में लहलहाता फसलों का शबाब बसंत का अहसास कराता है।