भगवान सूर्यदेव को छठ पूजा में भगवान सूर्यदेव की अराधना की जाती है। छठ का त्योहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। आज छठ के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जा रहा है। इस बार छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर से हुई। छठ के इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन अर्घ्य और चौथा दिन पारण दिया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रती महिलाएं छठ का व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं शाम को किसी नदी या तालाब में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। ये अर्घ्य पानी में दूध डालकर दिया जाता है। सूर्यास्त के समय व्रती महिला के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी मौजूद रहते हैं। साथ ही इस दिन इस दिन बांस से बनी टोकरी जिसे लोक भाषा में सूप कहा जाता है, उसमें फल, ठेकुआ, गन्ना, नारियल, फूल, चावल के लड्डू, मूली, कंदमूल आदि रखकर पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं।आज के दिन पूजा छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। यह चैत्र या कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।