Kaushambi: आर्थिक संपन्नता की नगरी कही जाने वाली कौशांबी (Kaushambi) नगरी के विभिन्न कस्बे गांव में रावण की मूर्तियां बनाए जाने के बाद दुर्दशा के दिन शुरू हो गए हैं। कौशांबी (Kaushambi) के तमाम नगर और वहां के लोगो के सामने आर्थिक दिक्कतें आनी शुरू हो गई है और लोगों को घर व्यापार गांव छोड़कर पलायन तक करना पड़ा है। धर्म शास्त्रों में पापी का मुंह देखना भी पाप होता है लेकिन कौशांबी में रामलीला मंचन के लिए रावण की मूर्तियां जगह जगह स्थापित कर दी गयी हैं। सुबह सुबह लोग रावण की मूर्तियां देखते हैं। जिन कस्बे आबादी में रावण की मूर्तियां स्थापित की गई है, देखते-देखते वह कस्बा आबादी पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। रावण की मूर्तियां बनाए जाने के बाद कस्बे आबादी के लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं और कस्बा बाजार को छोड़कर वह दूसरे शहर को पलायन कर गए हैं।
जिले के दारानगर, शहजादपुर, शमशाबाद, आलम चंद, महगाव, करारी, चरवा, दानपुर, महावा, पश्चिम शरीरा, सराय अकिल, भरवारी, नारा कनैली, नूरपुर, भगवानपुर, अढौली, पड़ोसी जनपद फतेहपुर के हथगाव और धाता आदि आबादी इसके ज्वलन्त उदाहरण है। आखिर सवाल उठता है कि अयोध्या के राजा भगवान श्री राम के राज्य में रावण की मूर्तियां स्थापित करने का क्या औचित्य था? उन्नत के शिखर में पहुंचे कस्बे बाजार में रावण की मूर्तियां स्थापित करने के बाद उस कस्बे बाजार के लोगों की तरक्की रुक गई। लोग आर्थिक दिक्कतों से जूझने लगे। बड़ी बड़ी बाजार बर्बाद हो गई। लोगों के पास जीविकोपार्जन के लिए धन की समस्याएं आने लगी। लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया। देखते-देखते कस्बे आबादी के आधे लोग दूसरे शहरों में जाकर बस गए लेकिन गांव की गरीबी नहीं दूर हुई। वर्तमान के परिवेश में भी गांव के लोग तरक्की नहीं कर सके हैं। 2 जून की रोटी खाकर किसी तरह से जीवन के दिन गुजार रहे हैं। आखिर रावण की मूर्तियों के स्थापित किए जाने के बाद भगवान प्रभु श्री राम का नगर बाजार के लोगों को कौन सा श्राप मिला है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।