लखनऊ के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों में मतदान होगा। पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन भी शुरू हो गया है, लेकिन अभी तक कई लोकसभा सीट ऐसी हैं। जहां पर उम्मीदवारों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। उन्हीं में से एक कौशांबी लोकसभा सीट है।
कौशांबी लोकसभा में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया की जबरदस्त बढ़ती पैठ को देखकर किसी भी पार्टी ने अभी अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। राजा भइया की राजनीति खासकर भारतीय जनता पार्टी में बढ़ते कद को देखते हुए मौजूदा सांसद विनोद सोनकर को फिर से चुनावी मैदान में उतारे जाने पर सवालिया निशान लग गया हैं।
कौशांबी लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति बाहुल्य सीट है। कुंडा और बाबागंज विधानसभा इस सीट के सियासी गणित में एक फार्मूले का काम करती है। 2009 से पहले यह क्षेत्र चायल लोकसभा सीट से जाना जाता था। कौशाम्बी लोकसभा सीट ऐसी सीट है,जहां राजा भइया का जमकर जादू चलता है।इस बार भी लोकसभा चुनाव में राजा भइया पूरा जादू चलेगा, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी में राजा भइया की दखल लगातार बढ़ रही है। राज्यसभा चुनाव में राजा भइया ने खुलकर भाजपा का समर्थन किया था।ऐसे में अब देखना होगा कि कौशांबी लोकसभा में राजा भइया के आगे कौन टिक पाता है।
कौशांबी जिला प्रचीन वत्सदेश की राजधानी रहा है। 250 ईसा पूर्व कौशांबी के घोषिता राम बिहार में भगवान बुद्ध चतुर्मास रहने आए थे।जैन धर्म के छटे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्मस्थली है।यहां की 80 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। उद्योग न होने से अधिकतर लोग मुंबई,दिल्ली,पंजाब,गुजरात आदि राज्यों में काम की तलाश में चले जाते हैं।कौशांबी जिले के पश्चिम में फतेहपुर जिला, उत्तर में प्रतापगढ़ जिला,दक्षिण में चित्रकूट जिला है।
कौशांबी बहुत ही पिछड़ा जिला है।पिछले सात सालों से उपमुख्यमंत्री रहते हुए केशव प्रसाद मौर्य भी जिले में बहुत विकास नहीं कर सके। विकास के नजरिए से देखा जाए तो एक जनपद एक उत्पाद के अंतर्गत केला उत्पादन पर कोई कार्य नहीं हुआ है।पुरातत्व स्थली को बुद्ध सर्किट से जोड़ने का काम बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। मेडिकल कॉलेज में नियुक्ति की प्रक्रिया चालू नहीं हो सकी है। जिले में केंद्रीय विद्यालय खोलने का वादा पूरा नहीं हुआ। केंद्र की 10 सालों की सरकार और प्रदेश सरकार की सात सालों में कौशांबी के लोगों को जनप्रतिनिधियों से सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है।
पिछले पांच पंचवर्षीय चुनाव को देखा जाए तो 2014 से भारतीय जनता पार्टी से विनोद सोनकर चुनाव जीते थे।जबकि इसके पहले समाजवादी पार्टी से शैलेन्द्र कुमार दो बार चुनाव जीते थे। 1999 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से सुरेश पासी चुनाव जीते थे।जातीय समीकरण की बात की जाए तो 46 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 36 फीसदी पिछड़ा वर्ग, लगभग 13 फीसदी मुस्लिम और 7 फीसदी सामान्य जाति के लोग यहां निवास करते हैं।
कौशांबी की साक्षरता दर 58 फीसदी है।प्रतापगढ़ तक फैला कौशांबी लोकसभा क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया था।कौशांबी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कौशांबी लोकसभा सीट का गठन प्रतापगढ़ जिले की दो विधानसभाओं और कौशांबी जिले को मिलाकर वर्ष 2008 में किया गया था।फिलहाल कौशांबी से भारतीय जनता पार्टी से विनोद कुमार सोनकर सांसद हैं, लेकिन इस सीट पर राजा भइया का पूरा राजनीतिक दखल है।
यहां पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ था। समाजवादी पार्टी से शैलेन्द्र कुमार चुनाव जीते थे।इसके बाद 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से विनोद कुमार सोनकर चुनाव जीते थे।मोदी लहर में विनोद सोनकर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा से शैलेन्द्र कुमार पासी को 42,900 वोटों से पराजित किया था। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने विनोद सोनकर पर फिर से उम्मीदवार बनाया।विनोद सोनकर 3.83 लाख वोट पाकर चुनाव जीते। समाजवादी पार्टी से इंद्रजीत सरोज 3.44 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे।