कंगना रनौत और सीआईएसएफ़: अधिकारों और उत्तरदायित्वों का द्वंद्व एवं टकराव

सीआईएसएफ़ कर्मी कुलविंदर कौर द्वारा कंगना रनौत को थप्पड़ मारे जाने की घटना कथित तौर पर चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर आपसी द्वंद्व एवं टकराव के कारण हुई थी।

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भारत देश जैसे एक समावेशी एवं लोकतांत्रिक समाज में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार एक बुनियादी एवं मौलिक अधिकार के रूप में अवस्थित है, जो व्यक्तियों को प्रतिशोध के भय एवं डर के बिना अपनी राय, मत, विश्वास और चिंताओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालाँकि, हाल की घटनाओं ने इस मौलिक अधिकार एवं स्वतंत्रता पर एक काली छाया की पर्त डाल दी है, क्योंकि बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत स्वयं को चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर एक शारीरिक विवाद से जुड़ी एक परेशान करनेवाली घटना के केंद्र में घिरी पाती हैं।

 सीआईएसएफ़ कर्मी कुलविंदर कौर द्वारा कंगना रनौत को थप्पड़ मारे जाने की घटना कथित तौर पर चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर आपसी द्वंद्व एवं टकराव के कारण हुई थी। यह विवाद रनौत द्वारा पूर्व में की गई टिप्पणियों से आरंभ  हुआ था, जिन्हें किसानों के विरोध के दौरान पंजाबी महिलाओं के प्रति अपमानजनक माना गया था। कुलविंदर कौर, जो ड्यूटी पर थीं, ने इन टिप्पणियों पर आपत्ति जताई, विशेषकर इसलिए, क्योंकि उनकी माँ कथित तौर पर किसानों के विरोध में आयोजित धरने भाग ले रही थीं। यह बेहद खेदजनक है कि सुरक्षा और सेवा करने के अपने कर्तव्य को पूरा करने के बजाय, एक सीआईएसएफ़ कांस्टेबल ने हिंसा का सहारा लेना चुना, जिससे उन नागरिकों का भरोसा टूट गया, जिनकी रक्षा करने की शपथ उसने ली है। भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख कलाकार प्रसिद्ध और सफल अभिनेत्री और हाल ही नवनिर्वाचित सांसद कंगना रनौत विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचारों को मुखर रूप से व्यक्त करती रही हैं। एक भारतीय नागरिक के रूप में अपनी राय व्यक्त करना उनके अधिकारों की स्वतंत्रता  की परिधि में आता  है, भले ही वे विवादास्पद या अलोकप्रिय हों। 

Kangana Ranaut and CISF
Professor Jasim Mohammad

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक मूलभूत स्तंभ है, और इस नाते व्यक्तियों, विशेष रूप से सार्वजनिक हस्तियों को प्रतिशोध के डर के बिना अपने विचार व्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए, जबकि राय अलग-अलग हो सकती है। प्रगति और समझ के लिए रचनात्मक परिसंवाद  में सम्मिलित होना आवश्यक है। हिंसा या आक्रामकता का सहारा लेने के बजाय, संवाद और बहस के माध्यम से मतभेदों को संबोधित किया जाना चाहिए। सुरक्षा कर्मियों को सुचारु व्यवस्था बनाए रखने और व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, चाहे उनकी व्यक्तिगत मान्यताएँ या राय कुछ भी हों। कुलविंदर कौर की हरकतों ने कंगना रनौत के संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन किया और सीआईएसएफ़ की व्यावसायिकता और अखंडता को भी बहुत भद्दे तरीके से दर्शाया। इस विशिष्ट घटना से परे, सीआईएसएफ़ सहित सभी  सुरक्षा कर्मियों की यह जिम्मेदारी है कि वे कानून के अनुशासन को बनाए रखें और उनकी सुरक्षा परिधि में आनेवाले व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करें।

 एक लोकतांत्रिक समाज में, हर किसी को अपनी राय रखने का अधिकार है, इसलिए किसी भी असहमति को शांतिपूर्ण तरीकों से संबोधित किया जाना चाहिए। सीआईएसएफ़ सहित सुरक्षा कर्मियों को शांति और सुरक्षा का संरक्षक होना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि व्यक्ति बिना किसी नुकसान या उत्पीड़न के डर के अपना जीवन जी सकें। उन्हें व्यावसायिकता, ईमानदारी और मानवाधिकारों के सम्मान के रोल मॉडल के रूप में काम करना चाहिए। हालाँकि, एक व्यक्ति के कार्यकलाप ने पूरे संगठन पर एक ऐसी छाया डाल दी है, जिससे  सीआईएसएफ़  के भीतर सुधारों और जवाबदेही उपायों की तत्काल आवश्यकता पर जोर डाला जाना अपेक्षित लगता है। सीआईएसएफ़ जैसे सुरक्षा कर्मियों का प्राथमिक उत्तरदायित्व व्यवस्था को बनाए रखना, संभावित खतरों को रोकना और यात्रियों के सुचारु आवागमन को सुविधाजनक बनाना है। हालाँकि, यह कर्तव्य शारीरिक सुरक्षा से परे न्याय, निष्पक्षता और व्यक्तिगत अधिकारों के सम्मान के सिद्धांतों को बनाए रखने तक फैला हुआ है, फिर भी चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर विवाद के मामले में, सीआईएसएफ़ कांस्टेबल की हरकतें इन सिद्धांतों को बनाए रखने में विफल रहीं और स्थिति को अनावश्यक रूप से बढ़ा दिया। 

सुरक्षा कर्मियों को टकराव को कम करने तथा पेशेवर और चतुराई के साथ संवेदनशील स्थितियों को सँभालने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। सुरक्षा कर्मियों को अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं या संबद्धताओं की परवाह किए बिना तटस्थ और निष्पक्ष रूप से कर्तव्यनिष्ठ रहना चाहिए। उनकी निष्ठा किसी व्यक्ति विशेष या विचारधारा के बजाय, संविधान और कानून के प्रति होनी चाहिए। इस सिद्धांत से किसी भी तरह का विचलन सुरक्षा बलों की विश्वसनीयता और अखंडता को कमजोर करता है और निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों को पूरा करने की उनकी क्षमताओं के प्रति जनता के विश्वास को खत्म करता है। कानून और व्यवस्था बनाए रखते हुए नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करने में सुरक्षा बलों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। पुलिस अधिकारियों से लेकर हवाई अड्डे के सुरक्षा कर्मियों तक, इन व्यक्तियों को कानून के शासन को बनाए रखने, सार्वजनिक सुरक्षा की रक्षा करने और समाज के सुचारु कामकाज को सुनिश्चित करने की आवश्यक जिम्मेदारी सौंपी जाती है, हालांकि, इस अधिकार के साथ विवेकपूर्ण, जिम्मेदारी से और निष्पक्ष रूप से अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का एक महत्त्वपूर्ण दायित्व भी आता है। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ( सीआईएसएफ़) सहित सुरक्षा बलों को जनता का विश्वास और भरोसा बनाए रखने के लिए सख़्त आचार संहिता और नैतिक मानकों का पालन करना चाहिए।

Kangana Ranaut and CISF

किसी भी समाज में प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष अपरिहार्य हैं, विशेषतया  भारत जैसे विविधतापूर्ण और गतिशील समाज में। इस दृष्टि से रचनात्मक संवाद, आपसी सम्मान और कानून के शासन के पालन के माध्यम से इन मतभेदों को दूर करना आवश्यक है। व्यक्तियों के बीच तनाव का बढ़ना, चाहे व्यक्तिगत असहमति या वैचारिक मतभेद के कारण हो, कभी भी शारीरिक हिंसा का सहारा लेने का कोई औचित्य नहीं होना चाहिए। थप्पड़ मारना या किसी भी तरह का शारीरिक हिंसा न केवल नैतिक रूप से ग़लत है, बल्कि परिस्थितियों की परवाह किए बिना नितांत अवैध भी है। यह व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों और गरिमा का उल्लंघन करता है और हमारे  सामाजिक ताने-बाने को निहायत कमजोर करता है। किसी मुद्दे को लेकर मतभेद अपरिहार्य हैं और विविधता के समृद्ध ताने-बाने के हिस्से के रूप में  उनका सम्मान भी किया जाना चाहिए। प्रतिद्वंद्विता को रचनात्मक प्रतिस्पर्धा में बदलना चाहिए, जहाँ व्यक्ति और समूह आक्रामकता या शत्रुता का सहारा लेने के बजाय योग्यता, प्रतिभा और कड़ी मेहनत के माध्यम से एक-दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करते हैं।

कंगना रनौत या किसी भी व्यक्ति को थप्पड़ मारना न केवल घृणित कार्य कहा जा सकता है, बल्कि उनके मौलिक मानवाधिकारों का भी घोर उल्लंघन है। रनौत के साथ किसी की व्यक्तिगत राय या असहमति के बावजूद, शारीरिक हिंसा का सहारा लेना आक्रामकता का एक गंभीर प्रदर्शन है और आधारभूत शालीनता और सभ्यता की पूरी तरह से अवहेलना है। एक सभ्य समाज में इस तरह की हरकतों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए और इसकी स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए। कंगना रनौत को थप्पड़ मारने के लिए जिम्मेदार सीएसआईएफ कर्मी  ने न केवल एक आपराधिक कृत्य  किया है, बल्कि हिंसा और धमकी की संस्कृति को भी बढ़ावा दिया है।

Kangana Ranaut and CISF

किसी पर शारीरिक प्रहार कायरता का कार्य है, जो तर्कसंगत चर्चाओं में सम्मिलित होने या परिपक्व और सभ्य तरीके से मतभेदों को संभालने में असमर्थता को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त , कंगना रनौत को थप्पड़ मारने का कृत्य न केवल एक व्यक्ति के रूप में उन पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र और स्वतंत्र भाषण के सिद्धांतों पर भी प्रहार है। व्यक्तियों को शारीरिक प्रतिशोध या धमकी के डर के बिना, स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। ऐसे कृत्यों को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार लोगों को कानून की पूरी सीमा तक जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। असहमति या अस्वीकृति व्यक्त करने के साधन के रूप में हिंसा का सहारा लेने का कोई औचित्य या बहाना नहीं हो सकता है। 

यह आवश्यक है कि समाज एक मजबूत और स्पष्ट संदेश भेजे कि इस तरह के व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और जो लोग इस तरह के कार्यों में सम्मिलित हैं, उन्हें उनके निंदनीय व्यवहार के लिए परिणाम भुगतने होंगे। हिंसा किसी भी असहमति का हल नहीं हो सकता। हम जिस तरह के समाज में रह रहे हैं, वहाँ किसी भी तरह की हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए, तभी हम एक बेहतर दुनिया की कल्पना को साकार कर सकते हैं।