Revolution of 1857: अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ी भारत माता की बेड़ियों को काटने के लिए जब मंगल पांडे ने गाय की चर्बी युक्त कारतूसों का बहिष्कार करके क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित की तो धौलाना क्षेत्र के युवाओं ने अपने खून का जलवा दिखाते हुए धौलाना में मौजूद अंग्रेजो का थाना व तहसील को 11 मई 1857 (revolution of 1857) को आग के हवाले कर दिया और जिसके बाद अंग्रेजी शासकों की चूलें हिल गयी थी। लेकिन अंग्रेजों ने उनमें से चौदह रण बांकुरों को तारीख 29 दिसंबर 1857 को सरेआम दिन में 3 बजे फांसी दे दी। उस समय फांसी के फंदे पर देश के लिये हंसते हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले महज 17 से 25 साल के बीच की उम्र के वीर सपूतों की याद में आज भी धौलाना के पैंठ का चबूतरा स्थित फांसी स्थल पर व धौलाना गुलावठी मार्ग पर शहीद स्तंभ सीना चौड़ाए खड़े हैं। वहीं आग के हवाले किया हुआ अंग्रेजी थाने का भवन आखिरी सांस लेता दिख जाता है। देश 77 वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है, लेकिन उनकी शहादत को भूलकर आज कोई भी प्रशासनिक अधिकारी या राजनीतिक व्यक्ति इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। जिससे देश की आजादी के लिये अपनी जान न्यौछावर कर देने वाले शहीद उपेक्षित हैं।
![](https://i0.wp.com/9newshindi.com/wp-content/uploads/2023/08/Capture-120.jpg?resize=696%2C371&ssl=1)
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम (revolution of 1857) में जब धौलाना व उसके आसपास के युवाओं को पता चला कि मंगल पांडे ने स्वाधीनता की चिंगारी सुलगा दी है तो महाराणा प्रताप के वंशजों के क्षेत्र लघु मेवाड़ धौलाना के युवाओं में उबाल आ गया। इसके बाद गुप्त रूप से गांव सभाओं का आयोजन होने लगा और एक दिन धौलाना के युवाओं ने धौलाना में मौजूद अंग्रेजों के थाने में आग लगा दी और यहां पर जो भी मिला उसी को सबक सिखाया। लेकिन दारोगा मुबारक अली ने गांव ककराना में बिटौड़े में घुसकर अपनी जान बचायी और किसी तरह मेरठ पहुंचकर सारी दास्तां अंग्रेजी अफसरों को बताई। यह सुनकर अंग्रेज हिल गये और अपना खौफ बरकरार रखने के लिये धौलाना को तोपों सहित पहुंचकर छावनी में तब्दील कर दिया। उन लोगों की तलाश शुरू हुई जिन्होंने आग लगायी थी।
इस पर चौदह लोगों की सूची अंग्रेजों के सामने पेश की गयी। जिसमें सबसे ऊपर नाम था लाला झनकूमल का। यह देखकर अंग्रेजी अफसर ने कहा कि झनकूमल कौन है तो झनकू ने कहा कि मै हूं, तो उसने कहा कि तुम तो बनिया हो तुम्हारा नाम किसी ने गलत लिखवा दिया होगा। इस पर उन्होंन कहा कि नहीं मैं भारत मां का लाल हूं और मैने ही आग लगायी है। इस पर गुस्साए अंग्रेजों ने 29 दिसंबर 1857 को ही चौदह लोगों को एक के बाद एक करके पीपल के पेड़ पर फांसी लगा दी। जिनमें लाला झनकू मल, वजीर सिंह चौहान, साहब सिंह गहलौत, सुमेर सिंह गहलौत, किड्ढा सिंह गहलौत, चंदन सिंह गहलौत, मक्खन सिंह गहलौत, जिया सिंह गहलौत, दौलत सिंह गहलौत, जीराज सिंह गहलौत, दुर्गा सिंह गहलौत, मसाहब सिंह गहलौत, दलेल सिंह गहलौत व महाराज सिंह गहलौत को फांसी दी गयी।
![](https://i0.wp.com/9newshindi.com/wp-content/uploads/2023/08/revolt-64093032.jpg?resize=696%2C371&ssl=1)
रणबांकुरों ने भी अदम्य देशभक्ति का उदाहरण पेश करते हुए हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने इनकी मौत को कुत्ते की मौत दिखाने के लिए चौदह कुत्तों को भी मारकर उसी फांसी वाले कुएं में डाल दिया था। बाद में देश आजाद होने पर शिक्षाविद व निवर्तमान विधायक मेघनाथ सिंह सिसौदिया ने ग्रामीणों के सहयोग से फांसी स्थल पर 11 मई 1957 को शहीद स्मारक बनवा दिया। वहीं अब पर्यटन विभाग ने धौलाना गुलावठी मार्ग पर भी शहीद स्तंभ बनवा दिया। अब वह पीपल का पेड़ तो नहीं रहा, जिस पर फांसी दी गयी थी। लेकिन अंग्रेजों के समय का थाना जिसे जलाया गया था, वह आज भी शहीदों के कारनामों की याद दिलाता है।