कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक (Yasin Malik) के लिए मौत की सजा की मांग वाली NIA की याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई शुरू हो चुकी है। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में इस मामले पर जस्टिस सिदार्थ मृदुल (Siddharth Mridul) और जस्टिस तलवन्त सिंह (Talwant Singh) की बेंच सुनवाई कर रही हैं। सुनवाई के दौरान जांच एजेंसी NIA की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) पक्ष रख रहे हैं। जहाँ NIA ने कहा कि, यासीन मलिक (Yasin Malik) ने निचली अदालत में अपने ऊपर लगे आरोपों को सही बताया था।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि, यह अजीब है कि कोई भी देश की अखंडता को तोड़ने की कोशिश करे और बाद में कहे कि मैं अपनी गलती मानता हूं और ट्रॉयल का सामना न करे। यह कानूनी रुप से सही नही है। यासीन मलिक ने कश्मीर के माहौल को बिगड़ने की कोशिश की, जिसके पुख्ता सबूत जांच एजेंसी के पास है। यासीन मलिक को जम्मू-कश्मीर आतंकवादियों को धन मुहैया कराने के मामले में दोषी ठहराया गया था और पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष एनआईए अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
इस मामले में यासीन मलिक (Yasin Malik) ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। NIA ने कहा कि, रिकॉर्ड में सबूत हैं कि वह कश्मीर पथराव में शामिल था और यह अफवाह फैला रहा था कश्मीर कि हम भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा दबाए जा रहे हैं। जस्टिस सिदार्थ मृदुल ने कहा कि, यूएपीए की धारा 16 में उल्लेख है कि अगर कार्रवाई से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो आजीवन कारावास के ऊपर मृत्युदंड दिया जाता है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि, 1990 के दशक की शुरुआत में रावलपोरा में वायु सेना के कर्मियों की हत्या की गई। रुबैया सैयद को अगवा किया। इस अपहरण की वजह से 4 खूंखार आतंकियों को छोड़ना पड़ा, इन्होंने ही 26/11 हमले का मास्टरमाइंड बनाया। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि, वह लगातार सशस्त्र विद्रोह कर रहा था सेना के जवानों की हत्या में शामिल रहा। कश्मीर को अलग करने की बात करता रहा। क्या य़ह दुर्लभतम मामला कभी नहीं हो सकता?
सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि, आईपीसी की धारा 121 के तहत भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने पर मौत की सजा का भी प्रावधान है। ऐसे अपराधी को मौत की सजा मिलनी चाहिए। यासीन मलिक वायुसेना के चार जवानों की हत्या में शामिल रहा। उसके सहयोगियों ने तत्कालीन गृह मंत्री की रुबिया सईद का अपहरण किया। उसके बाद उसके अपहरणकर्ताओं को छोड़ा गया जिन्होंने बाद में मुंबई बम ब्लास्ट को अंजाम दिया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कहा कि, IPC 121 में मामला देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का बनता है, जिसमे फांसी की सज़ा का प्रावधान है। जिस पर कोर्ट का सवाल है कि, निचली अदालत के आदेश में 4 वायु सेना के अधिकारियों की हत्या का जिक्र कहां है ? इसमे तो पत्थरबाजी में शमिल होने की बात कहीं गई है।