गुरु ज्ञान है अगाध तभी मिलता है परमार्थ, जो मिटाएं शिष्य का अंधकार

ममता शर्मा (एडवोकेट) इंडियन एंड वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर, राइटर, स्पीकर, एजुकेशनिस्ट, सोशलिस्ट, लाॅ एक्सपर्ट, करियर काउंसलर, लाइफ कोच

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राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह, तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥

गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका। गुरु को सभी ने माना है। प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है। भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने ईश्वर से भी उच्च स्थान दिया है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं, जो हमारा पालन-पोषण करते हैं। सांसारिक दुनिया में हमें पहली बार बोलना, चलना तथा हमारे जीवन की आवश्यकताओं, महत्वता को सिखाते हैं। इसलिए माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है। जीवन का विकास सुचारू रूप से सदैव चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है। हमारे भावी जीवन का निर्माण गुरू के द्वारा ही होता है। मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। गुरू शिष्य का संबंध सेतुबंध के समान होता है। गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है। शिक्षक का अर्थ-शिखर तक ले जाने वाला, क्षमा की भावना रखने वाला, कमजोरी को दूर करने वाला, गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य, संस्कारी और मर्यादा सहित जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नज़रिया गुरू की ही कृपा से मिलता है।
एक छात्र जो सीख और ज्ञान प्राप्त कर सकता है वह अकसर इस बात पर निर्भर करता है कि उसका शिक्षक कितना शिक्षित, संयमी और धैर्यवान है। गुरु के द्वारा चेतनाएं मुक्त हो जाती है, जो ठीक बुद्ध और श्रीकृष्ण जैसी होती हैं, लेकिन जो तुम्हारी जगह खड़ी हैं, तुम्हारे पास हैं।


सब धरती कागज करूँ,लेखनी सब वनराज, सब सागर की मसी करूँ,गुरु गुण लिकयो न जाय।।

यदि पूरी धरती को लपेट कर कागज बना लूँ, सभी वनों के पेड़ो से कलम बना लूँ, सारे समुद्रों को मथकर स्याही बना लूँ, फिर भी गुरु की महिमा को नही लिख पाऊंगी। गुरु ही राष्ट्र का निर्माण करता है, पूरे राष्ट्र का निर्माता होता है। देश के सभी बच्चे हमारे भारतवर्ष का भविष्य है। लेकिन उन्हें देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करने का काम गुरु के हाथों में है।


हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥

भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं है। जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरू से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं। त्रिलोक्यपति भी गुरू का गुणनान करते है। ऐसे गुरू के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं।
शिक्षक हमें अपना लक्ष्य पाने के योग्य बनाते है। हम अपने जीवन के लिए माता-पिता के कर्जदार होते है, लेकिन अच्छे व्यक्तित्व के लिए एक शिक्षक के ऋणी होते हैं। एक शिक्षक हाथ पकड़ कर लिखना सिखाता है, फूलो में कांटो का मतलब सिखाता है, जब गिरे शिष्य तो उसे उठना सिखाता है। होता कैसा अंधकारमय यह जीवन शिक्षा के बिना, यह एक शिक्षक ही बताता है। इसलिए तो
“गुरू की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य, गूरू कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य, गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान, ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान।।”