Rampur: देशभर में आज पूरे हर्षोल्लास के साथ दो महापुरुषों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) एवं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मनाई जा रही है। बापू का जनपद रामपुर (Rampur) से खास रिश्ता रहा है और जो अब तक कायम है। वह अपने जीवन काल में दो बार तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अली बंधुओ से मिलने यहां आए थे। इसके अलावा राजघाट की तरह ही उनकी अस्थियों को रियासत के अंतिम नवाब रजा अली खान के द्वारा व्यवस्थापित कराया गया। जिसे गांधी समाधि के रूप में पहचान मिली हुई है। आईए जानते हैं क्या रिश्ता रहा है रामपुर (Rampur) से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का?
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान रामपुर (Rampur) रियासत का अपना जलवा रहा है, यहां पर 1774 से लेकर 1949 तक 10 नवाबों ने शासन किया। रामपुर को भले ही नवाबों के शहर के नाम से जाना जाता रहा हो लेकिन यहां के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना मोहम्मद अली जौहर एवं उनके बड़े भाई मौलाना शौकत अली और उनकी माता वीरांगना बी अम्मा के देश की आजादी के लिए दिए गए अपने अहम योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता ।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना मोहम्मद अली जौहर (Maulana Mohammad Ali Johar) कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इसी लिहाज से वह उन गिने चुने नेताओं में से एक थे जो उस समय आजादी की लड़ाई का अंग्रेजों के विरुद्ध देशभर में नेतृत्व कर रहे थे। वर्ष 1931 मे बापू उनसे मिलने रामपुर आए और यहीं से उनका यह रिश्ता जुड़ गया। मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली की वीरांगना माता भी अम्मा के द्वारा बापू को एक टोपी भेंट की गई, जो आज भी गांधी टोपी के नाम से जानी जाती है। बापू अपने जीवन काल में दो मर्तबा रामपुर आए थे, जिसको आज भी याद किया जाता है। यही नहीं उनके रामपुर रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खान से भी बेहतर रिश्ते थे।
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) के द्वारा अहिंसा के इस पुजारी (Mahatma Gandhi) की हत्या कर दी गई। उनकी इस दुखद मौत के बाद देशभर के अलावा रामपुर वासियों के दिलों पर भी गहरा आघात पहुंचा। नवाब रजा अली खान बापू की यादों को हमेशा के लिए संजो कर रखना चाहते थे। इसलिए वह अपनी स्पेशल ट्रेन के माध्यम से दिल्ली पहुंचकर बापू के संबंधियों से मिले और उन्हें किसी तरह से कुछ अस्थियों को सौंपने की गुजारिश की। जिसके बाद नवाब को अस्थियां दे दी गई और फिर रामपुर में नए युग की शुरुआत हुई। अहिंसा के इस पुजारी की देशभर में एक गांधी समाधि दिल्ली के राजघाट में मौजूद है तो दूसरी उत्तर प्रदेश के रामपुर में व्यवस्थापित है।
रामपुर (Rampur) गांधी समाधि स्थल को व्यवस्थापित करने में अगर नवाब रजा अली खान की अहम भूमिका रही है तो इसकी खूबसूरती में चार-चार लगाने वाले तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खान (Azam Khan) की योगदान को भी किसी प्रकार से कम नहीं आंका जा सकता है। इसी तरह वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आनजनेय कुमार सिंह के द्वारा उनके डीएम रहने के दौरान इस गांधी समाधि के सौंदर्य करण के और अधिक विस्तृत किए जाने के असाधारण कार्य को भी आने वाले वक्त में इतिहास के पन्नों में जरूर जगह मिलेगी।
वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार चांद खान के मुताबिक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के रामपुर से रिश्तों का जिक्र उन्होंने अपनी इतिहास की प्रसिद्ध किताब “हमारी विरासत” में विस्तार पूर्वक किया है। इतिहासकार चांद खान बापू के यहां पर आने के सफर से जुड़ी हुई यादों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि वह पहली बार मौलाना मोहम्मद अली, जौहर मौलाना शौकत अली और भी अम्मा से मिलने वर्ष 1931 में यहां आए थे। इसके अलावा बापू का नवाब रजा अली खान से बेहतर रिश्ता था। यही कारण है कि नवाब रजा अली खान (Nawab Raza Ali Khan) ने काफी मशक्कत के बाद भी बापू की अस्थियों को दफनाकर गांधी समाधि के रूप में व्यवस्थापित किया, वहीं वह गांधी समाधि के विस्तार और सौंदर्यकरण पर पूर्व मंत्री आजम खान (Azam Khan) के योगदान की भी सराहना करते नजर आए।