दुनिया के सभी देशों के देश के दो पंख होते हैं, एक स्त्री तो दूसरा पुरुष, देश की उन्नति अलग-अलग पंख से उड़ान भरने पर नहीं हो सकती है। औरत होना किसी भी मायने में आसान नहीं होता है, एक ही स्त्री को पहले अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है और फिर साबित करना पड़ता है कि तुम स्वयं सही हो।
हमारी भारतीय संस्कृति में देश में औरत को देवी मां का अवतार बताया गया है, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’।
महिलाएं समाज का एक ऐसा आधार स्तम्भ हैं, जिसके बिना शायद हम अपने इस समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। एक स्त्री अपने जीवन में एक साथ कई भूमिकाएं निभाती हैं, मां, पत्नी, बहन, बेटी, बहू, शिक्षिका औऱ दोस्त। एक स्त्री को हर रिश्ता निभाना बखूबी आता है। एक महिलाएं ही हैं, जो सिखाती हैं कि कैसे विपरीत हालातों में असफलताओं का मुकाबला किया जाए और सफलता की तरफ कदम बढ़ाया जाए। मगर इन सब के बीच एक सवाल सबके मन में आता है कि क्या आज भी हर एक क्षेत्र में महिलाओं को समानता का दर्जा प्राप्त है। महिला सशक्तिकरण दिवस मनाया जाता है ताकि उनको समानता का अधिकार मिल सके। लेकिन इसके साथ ही हमारे समाज में भेदभाव, दुष्कर्म, एसिड अटैक्स, भूर्ण हत्या जैसे कई मुद्दे देखने को मिलते हैं। जिनके प्रति समाज में जागरूकता फैलाना जरूरी है। वैसे आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में अपना नाम रौशन कर रही हैं। भारत ही नहीं दुनिया के बड़े-बड़े ताकतवर देश भी पुरुष प्रधान रहे हैं, आपको जानकार हैरानी होगी कि शक्तिशाली देश अमेरिका में महिलाओं को मतदान का अधिकार सन 1920 में मिला जिसके लिए वहां की आंदोलनकारी महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। भारत की बात करें तो स्वाधीनता के साथ ही मतदान का अधिकार तो मिल गया था लेकिन महिलाओं के साथ मतभेद का सिलसिला आजादी के सात दशक बाद भी कम होने को तैयार नहीं है, इसलिए भारत में भी महिलाओं के लिए बराबरी की लड़ाई या हक की बात करने के लिए महिला समानता दिवस मनाया जाता है। कानून की किताबों में आज सभी जगह महिलाओं को बराबरी का अधिकार दे दिया गया है लेकिन जमीनी स्तर पर कुंठित मानसिकता से लड़ाई लंबी नजर आती है, देश के कई इलाकों में आज भी महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, भूर्ण हत्या के केस तो पढ़े लिखे समाज में आम हैं। महिलाओं के प्रति क्राइम रेट इतना ज्यादा है कि सरकार को नारा देने की जरूरत पड़ रही है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’।
“कोई कभी नहीं सोचता है वह कितना दर्द सहती है, फिर भी किसी से कुछ नहीं कहती है, बस सब की सुनती रहती है, उस अवस्था में उसको अपवित्र बताया जाता है, यदि वह घर से कहीं बाहर निकले तो गंदा उसका चरित्र को बताया जाता है, शर्म के मारे सबके आगे लाज छुपाए रहती है , कोई देख ना ले इसके कारण दाग छुपाई रहती है, दर्द से कराहती रहती है पर चुप्पी साधे बस सब की सुनती जाती है, घर और मंदिर सब कामों से वर्जित कर दी जाती है, जरूरत उसको रहती सबके सहारे और प्यार की, पर खाती रहती उसको बातें सब के दुर्व्यवहार की, हर मास जब रक्त बहे तो अशुद्ध उसे बताया जाता है, जन्म के समय जब रक्त बहे तो फिर क्यों प्यार जताया जाता है, कोई नहीं जानता इसकी पीड़ा, ना कोई भी उसका साथ निभाता है, क्यों भूल जाते हैं नारी ही तो शक्ति स्वरूपा नारी खुद ही विधाता है।”
मासिक धर्म (पीरियड्स) को लेकर वर्जनाएं और चुप्पी लंबे समय तक हमारे समाज का हिस्सा रही हैं। बात चाहे सेनिटरी पैड्स के विज्ञापन की हो या फिर सोसाइटी में इसे लेकर कोई चर्चा हो, लोग अब ‘मासिक धर्म’ और ‘पीरियड’ जैसे शब्दों को बेहिचक प्रयोग में ला रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद समाज के अधिकांश हिस्सों में आज भी लोग सेनिटरी पैड्स को अखबार में लपेटकर लाते हैं। अधिकांश लोग आज भी मासिक धर्म की अवधि को ‘उन दिनों’ कहकर बताते हैं। पीरियड्स को कमजोरी का प्रतीक या छिपाने के लायक नहीं समझना चाहिए बल्कि इसे उन दिनों की तरह लेना चाहिए जब कोई किसी महिला को प्रोत्साहित और सशक्त करता है और यह निश्चित करता है कि पीरियड का मतलब रुकना नहीं है। मासिक धर्म पर चुप्पी तोड़ो, पीरियड्स में छिपाने लायक कुछ भी नहीं है। हमें स्वच्छता के साथ-साथ अब मानसिकता को भी बदलना होगा। इन दिनों में महिलाओं को मासिक धर्म से जुड़ी कई अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे मांसपेशियों में दर्द, चिड़चिड़ापन, कमजोरी, मितली लगना, बदन दर्द या अनियमित माहवारी।
दरअसल आज भी महिलाएं पीरियड्स को लेकर खुलकर बात नहीं करतीं और न ही इस दौरान हाईजीन रखने को लेकर जागरूक होती हैं। दरअसल मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं को साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। ऐसा न होने पर कई बीमारियों का खतरा बना रहता है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि महिलाओं को इंफेक्शन हो जाता है । कई बार तो यह भी देखा गया है इससे बच्चेदानी के कैंसर का खतरा भी हो जाता है।
पीरियड्स को लेकर इतनी जागरुकता होने के बाद भी लड़कियां इस पर खुलकर बाद करने पर संकोच करती हैं। ये ऐसे दिन होते है। जब एक लड़की शारीरिक के साथ-साथ मानसिक समस्या से भी गुजरती हैं।
“कुछ सवालात हैं मेरे जो मैं पूछना चाहती हूं, मगर कुछ बंदिशे हैं समाज की मुझ पर जो नहीं देती मुझे इजाज़त इन पर बात करने की, या फिर मैं यूं कहं शर्म का एक पहरा यह समाज मेरी सोच पर ज़बरदस्ती लाद देता है, हां मैं यह मानती हूं कि ये कुछ सवाल है मेरे , मुझे बस इतना पूछना है, कि उन सात दिनों के दरमयां क्यों औरत को तुमने खुदा की इबादत करने से रोक दिया, मंदिरों के द्वार पर जाना वर्जित कर दिया, एक अंजानी सी एहसास जो अभी नादान है खुद को सबसे दर-किनार कर देती है, बस इसलिए क्योंकि उसके दामन को तुमने नापाकी का नाम दे दिया है, क्या उन सात दिनों में ऊपरवाला भी औरतों की बंदगी को खारिज कर देता हैं, अगर हां तो मैं पूछती हूं किस बुनियाद पर ? औरत के जिस्म के उस हिस्से से बहता खून, एक नई ज़िन्दगी की पैदाइश का सुबूत होता है, नापाक़ नारी नहीं, अपवित्रता तो सोच में हैं, ज़हन का पवित्र होना जिस्म के पवित्र होने से कहीं ज़्यादा अहम हैं।”
“मंजिल हमारी हमारे करीब है, इसका अब हमें अहसास है, गुमां नहीं हमें इरादों पर अपने, ये हमारी सोच और हौसलों का विश्वास है।”
एक नारी नारायणी से उसका ना पूछिए रंग, ना पूछिए उसका रूप, ना पूछिए उसका जाति धर्म, पूछिए ना उसका स्वरूप, नवाजा है कुदरत ने नारायणी को महान गुणों से तराशकर की काबिलियत की डगर पर हमेशा आगे बढ़ने वाली एक स्वाभिमानी भारतीय नारी है जो अपने हुनर के दम पर नारायणी है कीजिए हमेशा उसके हुनर का जिक्र, क्या आबरू ए हुनर नहीं एक नारी नारायणी ने बनाए घर सबके लेकिन उसका अपना कोई घर नहीं।”
माना जाता है कि ब्रह्मा के बाद इस पृथ्वी पर पर मनुष्य को वितरित करने वाली नारी का स्थान सर्वोपरि है। एक नारी जोकि मां, बहन, पुत्री एवं पत्नी के रूपों में रहती है। मानव रूपी समाज से संबंध स्थापित करने वाली नारी होती है। किंतु हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि इस जगत धात्री को हमारे समाज में समुचित सम्मान ना देकर उसे प्रारंभ से ही अपने वशीभूत रखने का प्रयत्न किया है। नारी के रूप में स्त्री को देवी का प्रतीक मानते है । नारी का सम्मान पूरे संसार को बदलने की क्षमता रखता है। एक नारी जो माँ दुर्गा, माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी सर्व पूजनीय होती है। प्राचीन भारत में नारी की स्थिति अच्छी थी। वैदिक काल में नारी का सम्मानजनक स्थान था। रोमसा, लोपामुद्रा ने ऋग्वेद के सूक्तो को रचा, तो कैकई , मंदोदरी आदि की वीरता एवं विवेकशीलता विख्यात है। सीता, अनुसुइया, सुलोचना आदि के आदर्शों को आज भी स्वीकार किया जाता है। महाभारत काल की गांधारी, कुंती और द्रोपदी के महत्व को भुलाया नहीं जा सकता। उस काल में नारी वंदनीय रही है। वैदिक युग में भी नारी के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। जीवन क्षेत्र कोई भी हो सभी क्षेत्रों में नारी की प्रमुखता रही है।
“नारी तू नारायणी” कहकर नारी को सम्मान दिया गया हैं परन्तु आज नारी को एक अलग नज़र से देखा जा रहा है, नारी अपना हरेक रूप पूरी तरह से निभाती आ रही रही है। एक पुत्री, एक माँ, एक बहन, एक पत्नी और एक सखा सभी रूपों में उसने अपना कर्तव्य पूरा किया है और कर रही है और आगे भी करती रहेगी इसमें कोई संदेह नहीं हैं। नारी का हर स्वरूप माननीय, पूजनीय, आदरणीय है, प्रशंसनीय, अनुशंसनीय है और अनुकरणीय है। स्त्री तथा पुरुष जीवन रूपी रथ के दो पहिए हैं। नारी तथा पुरुष का एकतत्व सार्थक मानव जीवन का आदर्श है। अतः उसे बंदनी मानना भूल है। आज की नारी पुरुष के साथ बराबरी से चल रही है। महिलाएं सातवें आसमान पर झंडा गाड़ कर कल्पना चावला बन रही है। किरण बेदी बनकर अपराधियों को पकड़ रही है। अरुणा राय और मेघा पाटकर बनकर सामाजिक अन्याय से जूझ रही है। आदरणीय प्रतिभा पाटिल जैसी सर्वोच्च पद पर आसीन रही। आज की नारी विदूषी बनकर लोकसभा की सदारत कर रही है। ओर भी कई ऐसी नारियां है जो हमारे समाज में सम्मानीय है। जैसे मदर टेरेसा, लता मंगेशकर बनकर भारत रत्न तक प्राप्त कर रही है। आज की नारी हर क्षेत्र में अपने हुनर के दम पर सम्मान प्राप्त कर रही है। और पुरुष के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। नारी आज आधी आबादी का हिस्सा मानी जाती है परन्तु यह बड़े ही खेद का विषय है की आज के इस अति आधुनिक युग में भी, जिसमें मानवीय भावनाओं का स्थान धीरे- धीरे समाप्त होता जा रहा है। नारी को लेकर एक अलग अवधारणा बनने लगी है यद्यपि आज वह अपने सबसे प्रखर रूप में हमारे सामने है। नारी को अबला और कमजोर कहने वालों को भी आज कई बार समाज में सोचना पड़ता है। आज की नारी मध्यकाल की नारी नही रह गई। अब हम यह नही कह सकते कि“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में है पानी।” आज की नारी ने समाज में पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर यह साबित कर दिया है कि वह अब अबला नहीं रह गई। अपने हुनर और अपनी काबिलियत के दम पर चिकित्सा, राजनीति, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य और कला सभी क्षेत्रों में आज हम नारी को आगे पाते हैं। आज नारी को अधिकार देने का समय है, उसे उसके अधिकार दें फिर देखे नारी शक्ति को, केवल महिला सशक्तिकरण का नारा देने से काम चलने वाला नही है। महिलाओं का सशक्तिकरण तभी संभव हो सकता है जब हम उसे अधिकार देंगे, बिन अधिकार कैसा सशक्तिकरण? लेकिन इस पुरुष प्रधान संस्कृति में यद्यपि देश का एक बड़ा भाग नारी की सत्ता को स्वीकार करता है। महिलाओं की उपेक्षा कोई नई बात नही है।
आज भी देश के अधिकांश हिस्सों में नारी को उसके अधिकार नही मिल सके हैं, देश की सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि आज हम पुत्री को इस संसार में आने से ही रोक रहें है। लड़कियों का प्रतिशत आज लड़कों की अपेक्षा बहुत ही कम हो गया है और देखने में तो यह आया है कि देश के उन हिस्सों जिन्हें हम महानगरीय कहते हैं इनका प्रतिशत अत्यधिक कम हुआ हैं। हम बेशक पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते रहे, लेकिन पुत्री को जन्म देना भी तो हमारा ही कर्तव्य है। अब वो दिन दूर नही होगा जब देश में लड़कों के स्थान पर लड़कियों की संख्या आधी ही रह जाएगी तो वह समय बड़ा ही कष्टदायी और विषम होगा, आज जो लगातार यौन हिंसा या बलात्कार जैसे दुष्कर्म हो रहें हैं इनका सबसे बड़ा कारण तो लडकियों का अनुपात कम होना ही है और यही हाल रहा तो आगे इस प्रकार की प्रवर्तियों को रोकने के लिए सभी उपाय कम और अनुपयोगी हो जायेंगे। हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि समय रहते हम सचेत हो जाएं अन्यथा इसकी भारी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी जो शायद कोई भी नही चाहेगा। हमें अपनी सोच को आज बदलने की सख्त जरूरत है, नारी के प्रति भी और उसकी अस्मिता के प्रति भी, उसकी संवेदना को हमें समझना होगा। उसे अधिकार देने ही होंगे। इसमें लेशमात्र भी संदेह नही है कि नारी हर स्थिति में अपने आपको साबित कर पायी है, हमें यह याद रखना चाहिए कि नारी शक्ति का नाम है, उसके बिना इस संसार का कोई अस्तित्व नही रहेगा। शक्ति के बिना तो शिव भी अधूरे हैं इसलिए नारी का सम्मान सभी का प्रथम और आवश्यक कर्तव्य है। “नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत-नग पगतल में पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में।”
समानता दिवस मनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों में समानता बनाने के लिए जागरूकता लाना है। वैसे तो नारायणी के हुनर के सम्मान के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती लेकिन यह एक ऐसा दिन है जब महिलाएं अपनी आजादी का जश्न खुलकर मनाती हैं। यह दिन महिलाओं के प्रति सम्मान और प्यार प्रकट करने का है और इस दिन का महत्व महिलाओं को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर पहचान दिलाना और महिलाओं की उपलब्धियों को मनाना है। आज हमारे देश की योग्य लड़कियां देश-विदेश में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। वे कुशल डॉक्टर, इंजीनियर, आई.ए. एस. अफसर तथा पुलिस की बड़ी नोकरियों एवं सेना में काम कर रही है। कुछ ऐसे सेवा के क्षेत्र भी है, जिसमे महिलाएं अपनी अग्रणी भूमिका निभाती है। नर्सिंग, शिक्षा, समाज तथा समुदाय सेवा में महिलाओ की संख्या काफी है। शिक्षा प्रचार के कारण महिलाएं एक शिक्षक के रूप में भी अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रही है। रेडियो, दूरदर्शन तथा सिनेमा में भी आगे बढ़ कर महिलाएं भाग ले रही है। एयरहोस्टेस के रूप में तो नारियां काम करती ही है अब वो विमान चालक के रूप में भी काम करने लगी है। यह सब नारियों की शिक्षा तथा उनकी लगन और उनके हुनर का ही परिणाम है। जो उन्हें देश सेवा की अग्रणी पंक्ति में स्थान दिला रहा है। पुलिस में भी सिपाहियों से लेकर ऊँचे-ऊँचे पदों तक में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ रही है।
“हे नारी तू ही तो नारायणी है चलता तुझसे ही यह सारा संसार है, हो तुम कितनी नाजुक और कितनी खूबसूरत तुम, हे नारायणी तुझमें ओजस्विता और सहजता का श्रृंगार है, जो हर मुश्किल को बना देती सहज, जो हर मानव की हिम्मत और शक्ति है, हे नारायणी तू प्यार की एक डोर है जो बांधे रखती परिवार है, जो धर्म और मर्यादा को संचित करे जो असहाय कष्ट सहकर देती दुनिया को एक जीव का उपहार है, हे नारायणी तू प्यार है, ऐतबार है, नारायणी तू इस जगत का आधार है, बिन तेरे ये जहान है सूना और तन्हा तू नारी नारायणी तू ही सारे जगत का आधार है, हे नारी तू नारायणी क्यूँ इस जहाँ से डर रही तू ही जीवनदायिनी क्यूँ मरने से पहले मर रही, प्रचँड रुप धर आक्रमण करना तेरा ये ही प्रण बने तुझ से जीत जाने का यम ने भी न साहस किया, शिव भी चरण के नीचे थे जब तूने अट्टाहस किया उठती थी तुझ पर निगाहेँ आज वो झुकने लगे, तोड दे उस हाथ को जो तेरी ओर बढने लगे, न किसी पर कर भरोसा खुद ही चंडी रूप धर
हाथ जो जिस्म पर उठे काट दे भूमी पे धर, हे नारी तू नारायणी मचा दे सोच चारों और अपने हुनर का।”