कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और नंद गोपाल नंदी के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद

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बाहुबली अतीक अहमद के वर्चस्व वाली इस सीट पर बीजेपी के सिद्धार्थनाथ सिंह के सामने सीट बचाने की चुनौती है। पिछले चुनाव में सिद्धार्थनाथ को टक्कर दे चुकीं ऋचा सिंह को सपा ने दोबारा प्रत्याशी बनाया है। मुस्लिमों की बड़ी संख्या को देखते हुए बसपा ने गुलाम कादिर और कांग्रेस ने तस्लीमुद्दीन को चुनावी मैदान में उतार कर लड़ाई को चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश की है।

इस सीट पर छह बार अतीक व उनके भाई अशरफ का कब्जा रहा है। अतीक लगातार पांच बार विधायक रहे, जबकि 2005 के उपचुनाव में सपा के टिकट पर अतीक के छोटे भाई खालिद अजीम अशरफ भी इस सीट से जीते। तीन बार बसपा भी जीत दर्ज कर चुकी है। वर्ष 2004 में बसपा से राजू पाल फिर 2007 व 2012 में उनकी पत्नी पूजा पाल ने बसपा के टिकट से चुनाव जीता था। अतीक इस समय जेल में हैं। उनकी पत्नी शाइस्ता ने एआईएमआईएम की सदस्यता ले ली, हालांकि उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, जिससे मुस्लिम वोटों के बिखरने की संभावना है।

सिद्धार्थनाथ सिंह सरकार के काम तथा क्षेत्र में हुए विकास कार्यों को लेकर लोगों के बीच हैं। सिद्धार्थनाथ सिंह को कायस्थ बिरादरी के वोटों पर भरोसा है। इसके अलावा पार्टी का काडर वोट भी है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थनाथ मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटे हैं। पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने नामांकन के अंतिम दिन पर्चा भरा था। सपा से प्रत्याशी को लेकर अंतिम समय तक ऊहापोह रही, क्योंकि अमरनाथ मौर्य भी नामांकन पत्र दाखिल कर चुके थे। बाद में ऋचा सिंह को चुनाव लड़ने का मौका मिला। बसपा व कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशियों के चुनावी मुकाबले में उतरने से ऋचा के सामने मुस्लिमों के साथ-साथ सभी वर्गों का वोट हासिल करना चुनौती बना हुआ है।

वोटों का गणित
4,37,109 कुल मतदाता
पिछड़ा वर्ग एक लाख
मुस्लिम 90 हजार
ब्राह्मण 30 हजार
कायस्थ 15 हजार
वैश्य 25 हजार
क्षत्रिय 10 हजार
एससी व अन्य 90 हजार

शहर दक्षिणी : भाजपा का गढ़ लेकिन इस बार लड़ाई रोचक

शहर की दक्षिण विधानसभा सीट पर इस बार रोमांचक मुकाबला होने की उम्मीद है। भाजपा ने इस सीट से कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी को दोबारा मौका दिया है, जबकि कांग्रेस ने अल्पना निषाद को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं, सपा और बसपा ने इस सीट पर ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाया है। सपा से रईस चंद्र शुक्ला व बसपा से हाईकोर्ट बार कौंसिल के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष देवेंद्र मिश्र नगरहा मैदान में हैं।

यूं तो शहर दक्षिणी की सीट पर अभी तक भाजपा का दबदबा रहा है। यहां से पं. केशरीनाथ त्रिपाठी छह बार विधायक निर्वाचित हुए। उन्होंने आखिरी चुनाव 2002 में जीता। 2007 में बसपा से मैदान में उतरे नंद गोपाल नंदी ने उन्हें 14 हजार मतों से हराया। वहीं, 2012 के चुनाव में भाजपा ने केशरीनाथ त्रिपाठी को फिर चुनाव मैदान में उतारा, जबकि बसपा ने नंदी को प्रत्याशी बनाया। लेकिन जीत का सेहरा सपा के परवेज अहमद के सिर बंधा। नंद गोपाल नंदी ने बसपा छोड़ 2017 में भाजपा का दामन थाम लिया और सपा के परवेज अहमद को लगभग 28 हजार वोटों से शिकस्त दी। नंद गोपाल गुप्ता नंदी मंत्री बनने के बाद भी क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। यही उनकी ताकत है।

ब्राह्मणों को साधने के लिए सपा ने भाजपा में रहे रईस चंद्र शुक्ला को मैदान में उतारा है। क्षेत्र में अच्छी खासी संख्या में सपा के परंपरागत मतदाता हैं। सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता शहर दक्षिणी में हैं। पूर्व विधायक परवेज अहमद को सपा से टिकट नहीं मिलने से मुस्लिम मतदाताओं के एक वर्ग में नाराजगी है।

वोटों का गणित
3,91,127 कुल मतदाता
मुस्लिम 1.10 लाख
वैश्य 70 हजार
ब्राह्मण 40 हजार
कायस्थ 35 हजार
क्षत्रिय 15 हजार
पिछड़ा वर्ग 70 हजार
एससी 50 हजार