chapter-7: जादुई एहसास

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परिवार के कुछ हसीन लम्हे

उसके बाद सब लोग काफी चिंतित हो गए और पंडित जी से पूछने लगे, “पंडित जी क्या इस समस्या का कोई निवारण है। आखिर इससे कैसे बचा जा सकता है। आज की इस घटना के बाद तो घर में रहने में भी डर लगेगा। हर वक्त मन में किसी अनहोनी की आशंका बनी रहेगी। कृपया करके हमें इससे छुटकारा दिलवाईये।” पंडित जी कहते हैं, “अभी किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। अभी के लिए मैंने इसे मंत्रों से बांध दिया है। अभी किसी भी तरह की कोई भी घटना नहीं होगी।”

उमेश पूछता है, “पंडित जी इसका मतलब अब हम सब निश्चिंत हो सकते हैं।” तो पंडित जी कहते हैं, “अभी नहीं। अभी मैंने मंत्रों से इसे कुछ समय के लिए रोक दिया है लेकिन यह काफी शक्तिशाली है। और इसे ज्यादा समय तक के लिए रोक पाना काफी मुश्किल है। लेकिन जब तक यह मेरे इन मंत्रों से बंधी हुई है तब तक यह किसी को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा सकती।” राकेश कहता है, “पंडित जी आखिर यह है क्या? क्या आप इसके बारे में बता सकते हैं कि यह किस तरह की शक्ति है और आखिर चाहती क्या है?”

पंडित जी कहते हैं, “इसके बारे में विशेष रूप से जान पाना अभी संभव नहीं है क्योंकि इसने खुद को किसी ऐसी शक्ति से बाध्य किया हुआ है जिस तक पहुंच पाना भी संभव नहीं है। लेकिन आप लोग घबराओ मत यह स्पष्ट रूप से सामने ही नहीं आएगी। इसके पीछे जरूर कोई बहुत ही गहरा राज है जिस तक वह पहुंचने नही दे रही। इस तक पहुंच पाने में काफी समय लगेगा।” वह लोग इस तरह काफी देर तक बात करते हैं और उसके बाद पंडित जी उन सबको एक एक अभिमंत्रित मौली देते हैं और उसे हाथ में बांधने को कहते हैं।

पंडित जी कहते हैं कि, “जब तक यह मौली तुम सबके हाथों में रहेगी तब तक तुम लोगों पर किसी भी तरह की आंच नहीं आ सकती।” इतना कहकर पंडित जी वहां से रवाना हो जाते हैं।इसके बाद वह सब लोग भी थोड़े से आश्वासित हो जाते हैं और दिवाली के तैयारियों में लग जाते हैं। सब लोग घर की साफ सफाई में लगे हुए थे और घर की औरतें घर को सजा रही थी। सुमन और प्रिया घर के आंगन में रंगोली बना रही थी। मधु घर को फूलों से सजा रही थी। घर ऐसा लग रहा था मानो कोई दुल्हन सजाई गई हो।

सब लोग बहुत खुश थे। सब सोच रहे थे चलो पंडित जी ने इतना तो भरोसा दिला दिया कि अब घर में कुछ भी गलत नहीं होगा। अब खुशी-खुशी त्यौहार मनाएंगे। सब लोग बहुत ज्यादा खुश थे। प्रिया सुमन से कहती हैं, “दीदी मैं तो इस बार दिवाली पर बनारसी साड़ी पहनूंगी और विकास जो मेरे लिए मांग टीका लेकर आए थे उसे भी पहनूंगी। वह बहुत सुंदर है। अच्छा दीदी आप क्या पहनने वाली है दिवाली पर?” सुमन कहती है, “मैं भी बहुत सुंदर साड़ी पहनूंगी। अभी जब मैं अपने मायके गई थी तो मेरी मां ने मुझे एक हल्के गुलाबी रंग की बहुत ही सुंदर साड़ी दी थी। मैं वह पहनूंगी।”

तब प्रिया कहती है, “वाह सुमन, अच्छी बात है लेकिन आपने तो वह साड़ी दिखाई भी नहीं।” सुमन कहती है, “मैंने वह खास दिवाली के दिन के लिए ही उठा कर रखी थी। मैं उसे दीवाली पर ही पहनूंगी।” तभी मधु आ जाती है और कहती है, “अरे क्या बात चल रही है दोनों देवरानी जेठानी में। हमें भी तो कुछ बताओ।” तब प्रिया मुस्कुराते हुए कहती हैं, “कुछ नहीं दीदी बस बात कर रहे थे कि दिवाली पर क्या पहनेंगे। अच्छा दीदी आपने क्या सोचा है इस दिवाली पर। आप क्या पहनने वाली है।” मधु इठलाते हुए कहते हैं भाई तुम लोग तो जो मन आए पहनो लेकिन मैं तो बहुत खास पहनने वाली हूं। और वो एक सरप्राइज है।”

प्रिया कहती है, “दीदी अब बता भी दीजिए। हमने भी तो बताया ना कि हम दोनों कौन-कौन सी साड़ियां पहनने वाले हैं।” मधु कहती हैं, “नहीं भाई, कुछ भी हो मैं तो दिवाली के दिन ही बताऊंगी कि मैं क्या पहनने वाली हूं।” सुमन कहती है, “दीदी यह तो कोई अच्छी बात नहीं है। हमने भी तो बता दिया ना आप भी बताइए। इतने नखरे क्यों कर रही है।” तब मधु कहती हैं, “अच्छा अंदाजा लगाओ कि मैं क्या पहनूंगी?” तब सुमन कहती है, “दीदी आप वह साड़ी पहनोगी जो भैया आपके लिए ले कर आए थे।” मधु कहती है, “तुम तो आसपास भी नहीं हो सुमन। अच्छा प्रिया तुम सोचो कि मैं क्या खास पहनने वाली हूं।” तब प्रिया बोलती है, “दीदी मुझे याद है आपने पिछले महीने मॉल से एक बहुत ही खूबसूरत सी इंडो वेस्टर्न ड्रेस ली थी। वो कितनी खूबसूरत है ना। आप वही पहनोगी।”

तब मधु हल्का मुस्कुराते हुए हैं कहती है, “अच्छा रहने दो, तुम दोनों के बस की बात नहीं है। मैं बताती हूं इस बार तुम्हारे जेठ जी दिवाली पर पहनने के लिए मेरे लिए एक खास लहंगा लेकर आए हैं। जानती हो उसमें जयपुरी कढ़ाई है और बहुत ही सुंदर काम है। पूरे दुपट्टे पर एंब्रॉयडरी है। मैं तो वही पहनूंगी।” इसी तरह बात करते करते सब लोग आपस में हंसी ठिठोली करती हुई अपने काम करती रहती हैं।

थोड़ी देर बाद उमेश और राकेश भी बाहर से आ जाते है और कहते हैं कि अगर सबका काम हो गया हो तो सब लोग आ जाओ। सब लोग हाल में बैठकर बाकी की बाते एकसाथ बैठकर करेंगे। थोड़ी ही देर में सब लोग हॉल में इकट्ठे हो जाते हैं और बैठ कर आपस में गपशप करने लगते हैं। सुमन और प्रिया जाकर सबके लिए कोल्ड ड्रिंक और चिप्स लेकर आती हैं। वह इंजॉय करते करते सब लोग आपस में बात करते हैं।

राकेश कहता है, “किस किस के घर पर मिठाई के डिब्बे भिजवाने हैं उसकी लिस्ट तैयार कर लेना और हां मधु तुम दिवाली गिफ्ट भी तय कर लेना कि किसके घर क्या-क्या भिजवाना है। एक प्रॉपर लिस्ट तैयार करके सुमन और प्रिया को दे देना यह दोनों शॉपिंग कर लेंगे। और बाकी घर की जरूरतों का सामान तो मैं और उमेश ले ही आए हैं। फिर भी कुछ रह गया हो तो बता देना कल आ जाएगा।” तभी विकास जाता है और बहुत ही भोलेपन के साथ राकेश से पूछता है, “भैया इस बार आप कौन-कौन से पटाखे लाए हैं।” राकेश मुस्कुराता है और कहता है, “विकास आज भी बच्चे का बच्चा ही है। इसे आज भी पटाखों का बहुत शौक है।” फिर ठिठोली करते हुए कहता है, “तू चिंता मत कर मेरे भाई तेरी पसंद के सारे पटाखे आ गए है।” इतना सुनकर सब लोग जोर से हंसने लगते हैं।

थोड़ी देर बाद मधु कहती है, “सब लोग हंसी ठिठोली में इतना मशगूल हो गए हैं कि यह भी भूल गए आज बच्चों को भी लेकर आना है। बच्चों की ट्रेन आने ही वाली होगी। आप लोग जल्दी से स्टेशन पहुंच जाइए और बच्चों को वहां से लेकर आना है।” राकेश कहता है, “अरे हां, हम सब हंसी मजाक में यह तो भूल ही गए कि आज बच्चे हॉस्टल से वापस आ रहे हैं। तुमने सही याद दिलाया मधु। मैं अभी जाकर बच्चों को लेकर आता हूं।” तब उमेश कहता है, “रुको भैया, मैं भी आपके साथ चलता हूं। कितने दिनों बाद हमारे बच्चे घर वापस आ रहे हैं, दोनों साथ चलेंगे।”

तभी विकास कहता है, “ठीक है भैया, आप दोनों जाकर उन्हें लेकर आइए। मैं जाकर बाजार से बच्चों की पसंद की मिठाईयां और पटाखे लेकर आता हूं। उन्हें देखकर बहुत खुश हो जाएंगे।” राकेश के दो बच्चे थे। बड़ा लड़का विवेक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था और हॉस्टल में रहता था। उससे छोटा लड़का जिसका नाम जितेश था। वह अभी इंटर कर रहा था और उसके साथ साथ आईआईटी की भी तैयारी कर रहा था। वह घर से बाहर ही पीजी में कमरा लेकर रहता था।

दोनों बच्चे दिवाली के त्यौहार पर पूरे एक साल बाद अपने घर लौट रहे थे।। दोनों की ट्रेन 7:00 बजे आने वाली थी और अभी लगभग शाम के 5:00 बज गए थे। राकेश ने अपने पड़ोस के मदनलाल भाई को फोन किया जोकि प्राइवेट टैक्सी चलाते थे। उन्हें बताया कि आज उनके बच्चे आने वाले हैं और साथ चलने को कहा। मदनलाल भाई ने कहा, “ठीक है, मैं बस अभी 10 मिनट में आपके घर पहुंचता हूं” और उसके थोड़ी देर बाद ही मदनलाल भाई आ गए और राकेश और उमेश दोनों बच्चों को लेने के लिए स्टेशन की तरफ चल दिए।

प्रिया और उमेश की भी एक बेटी थी जो कि अपनी बुआ के पास रहकर पढ़ाई करती थी। लेकिन सुमन और विकास का अभी तक कोई बच्चा नहीं था। राकेश और उमेश के जाते ही विकास भी घर से बाजार की तरफ चल पड़ा और वहां जाकर उसने बच्चों के लिए बहुत सी मिठाइयां और पटाखे खरीदें। करीब 6:30 बजे तक राकेश और उमेश स्टेशन पर पहुंच गए थे और वहां बैठकर ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे थे। तभी वहां अचानक एक भिखारी आता है और उनसे कुछ पैसों की मदद मांगता है। राकेश और उमेश ने उसे देखा तो वह एक हट्टा कट्टा व्यक्ति था।

राकेश कहता है, “तुम्हें भीख मांगते शर्म नहीं आती। ऊपर वाले ने तुम्हें हाथ पैर सही सलामत दिए हैं। इतना हट्टा कट्टा शरीर दिया है। कुछ मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भरने की बजाए तुम ऐसे भीख मांग रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए।” इतना सुनकर वह भिखारी बड़बड़ाता हुआ वहां से चला गया और दूसरे लोगों के पास जाकर भीख मांगने लगा। यह सब देख कर राकेश उमेश से कहता है, “पता नहीं इस देश का क्या होगा। यह लोग मेहनत करना ही नहीं चाहते। इसके पास एक अच्छा शरीर है, हाथ पैर हैं, लेकिन कोई काम न करने के बजाए यह भीख मांग रहा है और लोग भी ऐसे हैं जो इसे भीख दे रहे हैं।”

उमेश कहता है कि, “भैया जब मुफ्त में खाने को मिले तो मेहनत कौन करता है। यह सोचता होगा एक ही स्टेशन पर बैठे बैठे अगर दस लोगों ने भी इसे पैसे दे दिए तो इसका दिन आराम से गुजर जाएगा। तो यह मेहनत मजदूरी क्यों करेगा। क्योंकि जहां पूरा दिन मेहनत करके वह इतने पैसे कमायेगा उतने मे ही लोगों के सामने हाथ फैला कर इतने पैसे से मिल जाएंगे।” यह सुनकर राकेश कहता है, “तभी तो देश में गरीबी और बढ़ती जा रही है। ऐसे लोग मेहनत मजदूरी से बहुत ज्यादा घबराते हैं और इन लोगों को हराम का खाने की आदत पड़ जाती है।”

वह लोग इस तरीके से बात कर ही रहे थे कि तभी रेलवे की अनाउंसमेंट होती है कि 7:00 बजे आने वाली ट्रेन बस कुछ ही देर में ट्रैक पर आने वाली है। यह सुनकर दोनों सावधान हो जाते हैं और बेसब्री से पलके बिछा कर बच्चों के आने का इंतजार करने लगते हैं। लगभग 5 मिनट के बाद वहां ट्रेन आ गई ट्रेन के आते ही राकेश और उमेश दोनों डिब्बों की तरफ दौड़ने लगे। ट्रेन से बहुत से लोग चढ़ और उतर रहे थे। वहा प्लेटफार्म पर काफी भीड़ थी। वह दोनों चारों तरफ घूम घूम कर अपने बच्चों को देख रहे थे। तभी उमेश को पीछे की तरफ के डिब्बे में से विवेक उतरता हुआ दिखाई दिया। उमेश ख़ुशी से चिल्लाया, “वह देखो भैया विवेक और जितेश वहाँ है। आओ, चलो चलें।”

राकेश और उमेश तेजी से बच्चों की तरफ बढ़ने लगते हैं और बच्चे भी उन्हें देखकर उनकी तरफ काफी तेजी और उत्साह से आ रहे थे। वह दोनों बच्चों के करीब पहुंचते ही उनसे बारी-बारी गले मिलते हैं। उनकी खुशी साफ झलक रही थी। वह लोग बच्चों से बात करने लगते हैं। ट्रेन का सफर कैसा रहा कोई परेशानी तो नहीं हुई ना। ऐसे बात करते करते वह बच्चों को स्टेशन के बाहर लेकर आते हैं और अपनी टैक्सी में बैठ जाते हैं। तब तक ट्रेन भी जा चुकी थी और उमेश और राकेश भी बच्चों को लेकर घर के लिए रवाना हो चुके थे।

जैसे ही ये सब लोग घर पहुंचे और बच्चों ने घर की दहलीज पर कदम रखा तो देखते हैं कि उनकी मां ने उनके लिए दहलीज पर फूलों की कालीन बिछाए हुई थी। और आरती का थाल लिए खड़ी थी। दोनों बच्चे बहुत ही ज्यादा खुश थे।और उनकी मां मधु, उसकी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। अपने बच्चों को देखकर इतनी खुश हुई मानो उसकी बरसों से प्यासी आंखों को आज सुकून मिला हो। और वह भी क्यों ना एक मां के लिए अपने बच्चों से बढ़कर और कोई खुशी नहीं होती। मधु दोनों बच्चों की आरती उतारती है और उन्हें तिलक लगाती है।

आरती करते करते मधु बहुत ज्यादा भावुक हो जाती है और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं। साथ ही उसके होठों पर एक बहुत बड़ी मुस्कान थी। तभी प्रिया आगे बढ़कर उसके हाथ से आरती की थाली ले लेती है और मधु अपने दोनों बच्चों से लिपट कर रोने लगती है। तब प्रिया और सुमन उसे संभालती हैं और कहती हैं कि दीदी अब तो बच्चे आ गए हैं ना। उन्हें घर में तो अंदर लेकर आइए। फिर वह सब अंदर आते हैं और बच्चे बारी बारी से सब से मिलते हैं। प्रिया जाकर बच्चों के लिए नाश्ता वगैरह लेकर आती है और बाकी सब लोग हॉल में बैठकर बच्चों से बातें करने लगते हैं। सुमन कहती है, “और विवेक जितेश कैसे हो तुम लोग? अबकी बार तो बहुत दिनों बाद आए हो। घर की तो बहुत याद आती होगी ना।” विवेक कहता है, “हां चाची, याद तो बहुत आती है। लेकिन क्या कर सकते हैं। पढ़ाई भी तो जरूरी है ना।”

तभी मधु कहती है, “बेटा कितने कमजोर हो गए हो। मैस मे अच्छा खाना नहीं मिलता क्या?” विवेक मुस्कुरा देता है और कहता है, “मां खाना तो बहुत अच्छा मिलता है, पर आपके हाथ जैसा नहीं मिलता।” यह सुनकर सुमन, राकेश और उमेश हंसने लगते हैं। तब राकेश कहता है, “और जितेश, तेरे क्या हाल-चाल है। कैसी चल रही है आईआईटी की तैयारी।” जितेश कहता है, “पापा तैयारी तो बहुत अच्छी चल रही है। मुझे पूरा भरोसा है कि मैं एग्जाम क्लियर कर लूंगा। बस आपका आशीर्वाद चाहिए।” तब सुमन कहती है, “मां बाप का आशीर्वाद तो हमेशा बच्चों के साथ रहता है। और हमें अपने बच्चों पर भी पूरा भरोसा है कि तुम दोनों बहुत मेहनती हो। अपना काम पूरी दृढ़ता लगन और मेहनत से करते हो। भगवान तुम दोनों पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखें।” वह लोग इस तरह बातें कर ही रहे थे तभी प्रिया बच्चों के लिए नाश्ता ले आती है और बच्चे नाश्ता करते हैं।

काफी देर तक वह सब लोग यूं ही बैठे आपस में गपशप करते रहते हैं। तभी थोड़ी देर बाद विवेक और जितेश के दादाजी भी वहां आ जाते हैं और अपने पोते को देखकर बहुत खुश होते हैं। दोनों पोते उठकर अपने बाबा के पैर छूते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। दादा और पोतों की तो बॉन्डिंग होती ही इतनी अच्छी है कि बस क्या कहने। उनका मिलना था कि उनके दादा भी बच्चे ही बन गए और उन दोनों के साथ हंसी ठिठोली करने लगे। विवेक ने पूछा, “दादा जी अब आपकी तबीयत कैसी है? आप बीच में काफी बीमार हो गए थे। मुझे मां ने बताया था।” तब दादा जी कहते हैं, “मैं बिल्कुल ठीक हूं मेरे बच्चे, और तुझे देखकर तो मैं और भी अच्छा हो गया हूं।”

तभी जितेश कहता है, “दादा जी ये अच्छी बात नहीं है। माना कि विवेक भैया बड़े हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप उन्हें ही हमेशा प्राथमिकता देंगे और अपना सारा प्यार उन्हीं पर लुटाएंगे। मैं भी तो आपका पोता हूं।” इतना कहकर जितेश उठकर दादाजी के पास आता है और उनकी गोद में सर रख कर लेट जाता है। दादा जी प्यार से उसका सर सहलाने लगते हैं और हंसते हुए कहते हैं, “अरे बेटा तुम दोनों तो मेरी आंख के तारे हो। तुम दोनों में मै भेदभाव कैसे कर सकता हूं।” तभी उमेश कहता है, “यह बात तो है पिताजी, छोटे बड़े भाई बहनों में हमेशा इस बात की होड़ होती है कि घरवाले मुझे ज्यादा चाहते हैं या तुझे ज्यादा चाहते हैं।” यह सुनकर सब लोग जोर से हंस पड़ते हैं।

जितेश पूछता है, “दादा जी, दादी कहां गयी हैं?” तब दादाजी बताते हैं कि, “तेरी दादी तो तीर्थ यात्रा पर गई है।” तभी विवेक पूछता है, “दादाजी, दादी जी अकेले क्यों गई है? आप उनके साथ क्यों नहीं गए?” तो दादा जी हंसते हुए कहते हैं कि, “भाई तेरी दादी जाने और उसकी श्रद्धा जाने। मुझे तो यह कह कर टाल देती है कि आपको हर बात में हंसी मजाक सुझती है। और वैसे भी वह किसी बाबा के दर्शन करने गई है। मैं अक्सर कहता रहता था कि मैं इन बाबाओं पर ज्यादा भरोसा नहीं करता तो बस तेरी दादी नाराज हो गई और कहा कि मैं अकेले ही चली जाऊंगी। मैंने तो उससे कहा था कि मैं साथ चलता हूं लेकिन उसने नहीं माना और जिद करके चली गई।” इतना कहकर दादाजी खिलखिला कर हंसे और बोले, “और हो भी क्यों ना भाई, आखिर घरवाली की मर्जी के आगे किसकी चलती है।”

यह सुनकर सब लोग हंसने लगते हैं विवेक पूछता है, “वह सब ठीक है दादा जी। लेकिन दादी कब तक वापस आएंगी।” दादाजी बताते हैं कि कल तुम्हारी दादी वापस आ जाएगी और उसके बाद हम सब मिलकर बहुत अच्छे से दिवाली मनाएंगे और खूब सारी मस्ती करेंगे। वो लोग काफी समय से ही एक दूसरे के साथ बिताते हैं और हंसी मजाक करते रहते हैं। तभी दादा जी कहते हैं, “बच्चों अब मस्ती कल करेंगे। तुम दोनों लंबा सफर तय करके आए हो। अब जाकर आराम करो।”

विवेक और जितेश दोनों स्वभाव से बहुत ज्यादा चंचल और शैतान थे। इतने बड़े हो गए थे लेकिन उन्हें अभी भी बचपना बहुत था। दोनों एक दूसरे के साथ खेल रहे थे। एक दूसरे को छेड़ रहे थे और खूब शोर मचा रहे थे। वह दोनों उठकर हंसी ठिठोली करते हुए अपने कमरों में चले गए। तब दादा जी कहते हैं, “बच्चों के आते ही घर में एक नई रौनक सी आ गई है। नहीं तो घर ऐसे वीरान सा हो जाता है जैसे मानो यहां कोई हो ही नहीं। बच्चों से ही घर आंगन चहकता है। आज मेरे बच्चे आ गए हैं मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूं और जब यह दोनों यहां से चले जाते हैं, तो यह घर काटने को दौड़ता है। घर में बिल्कुल भी मन नहीं लगता।”

राकेश कहता है, “यह बात तो ठीक है पिताजी। अगर बच्चे साथ में ना हो तो हमेशा उनकी चिंता लगी रहती है। किसी भी काम में मन नहीं लगता, लेकिन क्या करें बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उनकी अच्छी पढ़ाई के लिए उन्हें घर से बाहर भेजना ही पड़ता है। अब घर में बैठकर तो चारदीवारी के भीतर बच्चे अपनी जिंदगी नहीं बिता सकते।” इसके बाद उमेश कहता है, “हां भैया, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो। बच्चों के बिना घर एकदम वीरान सा हो जाता है और हम सब लोग भी अपने अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं। मां-बाबूजी कितने अकेले हो जाते हैं। अब बाबूजी को देखो बच्चे आ गए हैं तो ऐसे खुश हैं मानो उन्हें एक नई जिंदगी मिल गई है।”

तभी बापू जी कहते हैं, “तुम लोग जो भी कहो, मुझे मेरे पोते मेरे बेटों से भी ज्यादा प्यारे हैं। और तुम देखना कल इनकी दादी आ जाएगी तो इन्हें कितने लाड लड़ाएगी। इन्हें हमेशा अपने ही गोद में सुलायेगी और अपने हाथों से खाना खिलाएगी। आखिर दादी बाबा को क्या चाहिए? अपने घर परिवार को बढ़ता हुआ देखना और अपने नाती पोतों के साथ खेलना ही तो इस उमर में उनके जीवन में एक खुशी बचती है।”

सब लोग इसी तरह बात कर रहे थे तभी विकास कहता है, “भैया, बाबूजी कल त्यौहार है और ढेर सारी तैयारियां भी करनी है। अब काफी वक्त हो चुका है। चलिए सब लोग चलकर आराम करते हैं।” बाबूजी भी कहते हैं, “ठीक है, सब लोग अपने अपने कमरों में जाकर आराम करो। मैं जरा बाहर टहल कर आता हूं।” तब राकेश कहता है, “आप कहां जाएंगे पिताजी इस समय। अभी काफी रात हो चुकी है। आज टहलना रहने दीजिए और जाकर आराम कीजिए।” इतना कह कर सब लोग अपने अपने कमरे में चले जाते
हैं और सो जाते हैं।

To be continued….

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