chapter-6: जादूई एहसास

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धनतेरस

आज धनतेरस का दिन था। घर में सब लोग बहुत खुश थे। दिवाली आने वाली थी। त्योहारों का मौसम कुछ होता ही ऐसा है कि सबके चेहरों पर नई खुशहाली और उमंग आ जाती है। सब के दिलों में बहुत से उत्साह उमड़ आते हैं। आज यहां भी कुछ ऐसा ही माहौल था। घर में सब लोग बहुत खुश नजर आ रहे थे। घर की औरतें सजने सवरने में घर संवारने में व्यस्त थी।

वही राकेश और उमेश घर में आने वाले सामान की लिस्ट बना रहे थे। घर के बाकी लोगों से पूछ रहे थे घर की जो भी जरूरतें, चीजें हैं, उनका बता दो। आज धनतेरस का दिन है वैसे भी खरीदी करना आज के दिन शुभ होता है। तभी मधु आती है और कहती है, “बाकी सारी चीजें ठीक हैं आप लोग लिस्ट देख लीजिए। और हां, ध्यान से कोई बर्तन जरूर लेकर आइएगा। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना बहुत शुभ होता है और हां सुनार के पास भी हो कर आना लक्ष्मी जी वाला चांदी का सिक्का याद से लेकर आना।”

तभी सुमन आती है और कहती है, “अरे दीदी, पूजा की भी तो तैयारियां करनी है। भैया आप 2 मिनट रुको मैं अभी जाकर पंडित जी की दी हुई पूजा के सामान की लिस्ट लेकर आती हूं।” राकेश को इतना बोल कर सुमन घर में जाती है और एक लिस्ट लेकर आती है। “भैया पंडित जी ने पूजा का समय आज 10:00 बजे का दिया है। आप टाइम से आ जाइएगा और ध्यान रखिएगा कोई भी सामान छूटे नहीं।”

राकेश अपनी बीवी से कहता है, “ठीक है मधु, अब हम चलते हैं, बाजार से और भी कुछ लाना हो तो अभी बताओ। बाद में मत कहना ये छूट गया वह छूट गया।” इतना कहकर उमेश और विकास थैला उठाते हैं और बाजार के लिए चल देते हैं। मधु कहती है, “सुमन तुम और प्रिया मिलकर प्रसाद बना लेना और बाकी तैयारियां भी कर लेना । मैं अभी थोड़ी देर में आती हूं।” सुमन कहती है, “दीदी अभी आप कहां जा रही हैं।” मधु कहती है, “पूजा में फूलों की भी तो जरूरत होगी और मंडप बनाने के लिए केले के पत्ते भी चाहिए होंगे। मैं पास के मानसिंह काका की बगीची में जाकर फूल और केले के पत्ते ले आती हूं।”

सुमन कहती है, “ठीक है दीदी, मैं जाकर तब तक कुछ बना लेती हूं।” सुमन रसोई में चली जाती है और खाना बनाने की तैयारी करने लगती है। तभी प्रिया आ जाती है और पूछती है, “दीदी मैं आपकी क्या मदद करूं?” इतना कह कर वह सब्जी की टोकरी उठा लेती है और सब्जी काटने लगती है। सुमन कहती है, “प्रिया तुम यह सब छोड़ो, किचन का काम में देख लेती हूं। तुम सफाई का काम निपटा दो। कथा आंगन में ही करनी है तो तुम वहां पर पोंछा लगा देना और चटाई बिछा देना। पंडित जी के आने से पहले हमें सारी तैयारियां करनी होंगी। और हां साफ सफाई का काम निपटा कर तुम तैयार हो जाना और फिर किचन में आ जाना। उसके बाद मैं तैयार हो जाऊंगी तब तक काम भी निपट जाएगा और बाकी सब लोग भी आ जाएंगे।”

तब तक मधु भी फूल और बाकी चीजें लेकर आ जाती है और कहती है, “सुमन तुम प्रसाद और खाना बनाओ। पंडित जी को भूखे नहीं भेजना है। मैं प्रिया की मदद करती हूं।” यह कहकर सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं। करीब 9:30 बजे तक उमेश और राकेश भी आ जाते हैं और उसके थोड़ी देर बाद ही पंडित जी भी आ जाते हैं। सब लोग पूजा के लिए तैयार होकर इकट्ठे होते हैं और कुछ ही समय में पूजा शुरू हो जाती हैं। सब लोग मग्न होकर पूरी श्रद्धा से भगवान की आस्था कर रहे थे और पूजा में व्यस्त थे। जब पूजा लगभग समाप्त होने को आई और पंडित जी ने शंख बजाया तभी एकदम से घर की लाइट चली गई।

इतना होना था कि सब लोग सोच में पड़ गए कि यह क्या हुआ। तभी उमेश कहता है, “हो सकता है कि मेन स्विच में कुछ फॉल्ट हुआ हो। मैं अभी जाकर देख आता हूं।” राकेश कहता है, “उमेश तुम अकेले मत जाओ। मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ लाइट दिखाने के लिए।” वह दोनों जैसे ही खड़े होते हैं और मेन स्विच की तरफ जाने लगते हैं तभी लाइटिंग टीम टीम आने लगती है और एक बहुत तेज से विस्फोटक आवाज होती है। यह आवाज सुनकर सब परेशान हो जाते हैं और सोचते हैं कि कोई बड़ा फॉल्ट हुआ है तो इलेक्ट्रीशियन को ही बुला लेना चाहिए। लेकिन तभी पंडित जी कहते हैं, “फॉल्ट हुआ है यह तो सही है, लेकिन सब लोग इतना सोच में पड़ गए हैं कि किसी ने यह तक ध्यान नहीं दिया कि यह दिन है और दिन में इतना अंधेरा कैसे हो सकता है। जरूर यह किसी अनहोनी घटना का संकेत है।” पंडित जी कहते हैं, “कोई अपनी जगह से ना हिले। जो जहां बैठा है वहीं बैठा रहे और पूजा में कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिए नहीं तो बहुत बड़ी मुसीबत भी आ सकती है।”

इतना कहकर सब लोग वापस बैठ जाते हैं और पंडित जी फिर से पूजा शुरू कर देते हैं। इतना करना था कि तभी बहुत तेज तेज हवाएं चलने लगती है। आंगन के ऊपर आसमान में धुएं के बादल घूमने लगते हैं। घोर अंधेरा छा जाता है। कुछ भी दिखाई नहीं देता। बहुत भयंकर तूफान जैसा माहौल बन जाता है। सब लोग बहुत घबराए हुए थे। लेकिन पंडित जी कहते हैं, “कोई भी अपना नियंत्रण मत खोना। यह उसी शक्ति का आभास है।” सब लोग जैसे तैसे करके खुद को संभालते हैं और बैठे रहते हैं। पूजा चल रही थी लेकिन वहां का माहौल और भी ज्यादा डरावना होता जा रहा था। बहुत अजीब अजीब सी आवाज आ रही थी। सब के कानों में इतनी तेज सिटीयां बज रही थी कि उस आवाज को सुन पाना और सहन कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा था।

ऐसा लग रहा था मानो कानों से खून निकल आएगा। सब लोगों ने हाथ अपने कान पर रख लिए, लेकिन पंडित जी ने इशारा किया कि कानों पर से हाथ हटाओ और चिल्लाकर कहां, “इन मंत्रों को सुनो। यह बुरी शक्ति नहीं चाहती कि तुम लोग यह मंत्र सुनो। अगर मंत्र नहीं सुने तो यह शक्तियां अभी के अभी तुम सबको जान का खतरा भी दे सकती है। चाहे कुछ भी हो जाए ना यह पूजा रुकनी चाहिए और ना तुम लोग यहां से उठोगे और ना तुम में से किसी के कान बंद होंगे।” राकेश कहता है, “पंडित जी, मुझसे यह शोर बर्दाश्त नहीं हो रहा है। जल्दी कुछ कीजिए।” पंडित जी तेज आवाज में मंत्र उच्चारण करने लगते हैं लेकिन उस तूफान पर अभी तक कोई खास असर नहीं पड़ रहा था। बल्कि उसकी रफ्तार और बढ़ती जा रही थी।

तभी पंडित जी ने हवन में जलती हुई आग से एक भभूत तैयार की और उसे ऊपर उड़ रहे धुँए के बादलों के गुबार की तरफ उछाला। इससे तुरंत ही बादल छट गए लेकिन अगले ही पल फिर वैसा ही गुबार तैयार हो गया। पंडित जी बोले, “यह बहुत ही शक्तिशाली है। इस को काबू में करना होगा नहीं तो यह बहुत बड़ा अनर्थ कर देगा।” इतना कह कर पंडित जी फिर से मंत्र उच्चारण में लग जाते हैं और हवन की आग भी मानो पूरे वेग पर थी। वहां का माहौल बहुत ही ज्यादा डरावना होता जा रहा था। अब उन बादलों से कुछ नीचे गिर रहा था और एक बरसात जैसी हो रही थी। सब ने देखा तो छोटे-छोटे काले रंग के गोलाकार पत्थर उन पर पड़ रहे थे। सब लोग उठ कर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं।

लेकिन पंडित जी कहते हैं, “यह सब तुम लोगों को पूजा से हटाने की और इस पूजा को रोकने की कोशिश है। इन सब का डटकर सामना करो और किसी भी हालत में यहां से मत उठना। बहुत जल्दी यह सब शांत हो जाएगा।” इतना कहकर पंडित जी फिर से पूजा में व्यस्त हो जाते हैं पर अभी तक भी वहाँ काले पत्थरों की बरसात जारी थी। सब को बुरी तरह पत्थरों की मार पड़ रही थी। सब लोग बहुत ही घबराए हुए थे और बुरी तरह डर रहे थे। सबके दिल सहम गए थे। लेकिन कोई चारा नहीं था किसी ना किसी तरह खुद पर नियंत्रण रखे हुए वे लोग आहुति देने लगे और दुआ कर रहे थे कि हे भगवान इस सबसे हमारी रक्षा करो। पंडित जी ने कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण किया और हवन में से एक कटीला वज्र निकाला और उसे हाथ में पकड़ कर दोनों हाथ ऊपर कर जोर-जोर से मंत्र उच्चारण करने लगे। कुछ ही समय में वह वज्र हवा में घूमने लगा और देखते ही देखते वे सारे काले पत्थर धुँए में बदल गए।

इतना होना था कि सब लोग थोड़े से शांत हुए और पंडित जी ने बोला, “अभी शांत होने की जरूरत नहीं है। अभी हमें पूरी तरीके से इससे छुटकारा नहीं मिला है। हमें पूजा लगातार आगे बढ़ानी होगी।” ऐसा करते-करते अब तक उन्हें लगभग 2 घंटे बीत चुके थे। पंडित जी लगातार मंत्र उच्चारण कर रहे थे और सब लोग आहुतियां डाल रहे थे। काफी देर बाद जाकर धीरे धीरे वह धुएं के काले बादल हटने लगे और सब नॉर्मल सा हो गया। तब पंडित जी ने शंखनाद किया और आरती की। इसके बाद उन सब ने मिलकर प्रसाद खाया और पंडित जी को भी भोजन कराया।

To be continued….

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