मां जी कहां गई
सुमन सोचती है चलो जब तक मां जी पूजा में बैठी हैं तब तक मैं किचन का काम निपटा लेती हूं। तब तक मां जी भी पूजा से उठ जायेंगी। इतना सोच कर सुमन माजी के कमरे से बाहर चली जाती है और अपने काम में लग जाती है। तभी उसका पति आवाज देता है, “सुमन मेरा टिफिन जल्दी तैयार करो। मुझे ऑफिस जाना है।” सुमन ऊंची आवाज में कहती है, “हां अभी करती हूं। बस थोड़ा वक्त लगेगा। तब तक आप तैयार हो जाइए मैं अभी नाश्ता बना लेती हूं।”
इतना कहकर सुमन नाश्ते की तैयारी में लग जाती है। वही दूसरी तरफ प्रिया भी तब तक अपने स्कूल जा चुकी थी और मधु भी तब तक किचन में आ जाती है और कहती है ,”लाओ सुमन मैं तुम्हारी मदद कर देती हूं। तुम्हें भी तो ऑफिस के लिए तैयार होना है।” सुमन कहती है, “दीदी मैंने सब्जी बनने रख दी है। आप आटा लगा कर रोटियां सेक दीजिए। तब तक मैं जाकर तैयार हो जाती हूं।”
इतना कहकर सुमन अपने कमरे में चली गई और तैयार होने लगी। वह फटाफट तैयार होकर वापस किचन में आ जाती है। तब तक मधु ने रोटियां सेक दी थीं। “सुमन खाना तैयार है तुम फटाफट टिफिन बांध लो। तब तक में माजी को नाश्ता देकर आ जाती हूं,” मधु ने कहा। सुमन कहती है ,”रुको दीदी, आप टिफिन पैक कीजिए, मां जी को खाना मैं दे कर आती हूं।” मधु कहती है ,”ठीक है, मैंने माजी का नाश्ता लगा दिया है तुम ले जाओ। मां जी का भजन हो गया होगा।”
इसके बाद सुमन नाश्ते की ट्रे उठाकर माजी के कमरे में चली जाती है। तब तक मां जी का भजन भी हो चुका था और माजी अपने बेड पर बैठी हुई थी। सुमन कहती है, “माजी नाश्ता कर लीजिए।” “ठीक है सुमन, वहां टेबल पर रख दो। मैं हाथ धोकर आती हूं।” इतना कहकर मां जी बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ चली गई और सुमन ने नाश्ता टेबल पर रख दिया। माजी खाना खा रही थी तभी सुमन कहती है, “माजी मुझे आप से बात करनी थी।”
मां जी कहती हैं, “हां बेटा सुमन, बताओ क्या बात है।” सुमन कहती है, “मां जी हमारे घर में यह क्या चल रहा है। पहले राकेश बेहोश हो गए उसके बाद मधु दीदी की तबीयत खराब हो गई और फिर कल पार्क में उमेश भैया की तबीयत खराब हो गई और इन सब को अजीब से भ्रम हुए, डरावने सपने देखे। इनके साथ हुए हादसों की छाप इनके मन पर इतनी गहरी पड़ी है कि अभी भी वह उस पल को याद करके बुरी तरह डर जाते हैं और घबरा जाते हैं। मां जी ये कोई बुरे संकेत तो नहीं है। कहीं ऐसा ना हो कि किसी ने हमारे घर पर कुछ जादू वगैरा करवा दिया हो।” मां जी कहती हैं, “तुम भी ना, बिना वजह परेशान हो रही हो, ऐसा कुछ नहीं है। यह तो मामूली सी बात है। यह सब अक्सर टेंशन की वजह से या काम के प्रेशर की वजह से और अपना ध्यान ठीक से ना रख पाने की जल्दबाजी में हो जाते हैं। तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है।” सुमन कहती है, “ठीक है माजी, हो सकता है मैं ही कुछ ज्यादा सोच रही हूं। शायद आप ठीक कहती हैं, लेकिन माजी कल जिस तरीके से उमेश भैया ने कहा कि उन्होंने आपकी परछाई देखी और वह बुरी तरह डर गए, आपको उस दीवार में जाते हुए देख कर, मुझे ऐसा नहीं लग रहा था कि भैया को भ्रम हुआ है। वह बहुत बुरी तरह घबरा गए थे और ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने साथ हुए हादसे को बयां ही नहीं कर पा रहे हैं।” “तुम भी ना सुमन, मैंने कहा ना ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। यह सब आम हादसे हैं। यह सब हो जाता है तुम्हें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।” माजी ने गुस्से में कहा और बोली आज तुम्हें ऑफिस नहीं जाना है क्या? मुझे शांति से नाश्ता भी नहीं करने दे रही। सुबह-सुबह यह क्या राग लेकर बैठ गई। मैंने तुम्हें समझाया ना परेशान मत हो और तुम्हारे ऑफिस का टाइम भी हो रहा है। तुम इन सब बातों को छोड़कर अपने ऑफिस पर ध्यान दो।” इतना सुनकर सुमन माजी के कमरे से बाहर चली जाती है और तब तक उसके ऑफिस जाने का भी टाइम हो गया था तो वह ऑफिस के लिए घर से निकलती है। माजी की डांट सुनकर उसका मूड खराब हो चुका था।
घर से निकली तो जल्दी से उसे कोई ऑटो नहीं मिला। फिर बहुत देर बाद जाकर उसे एक टैक्सी मिली जिसे लेकर ऑफिस पहुंची। ऑफिस देर से पहुंची थी तो वहां उसे बॉस की भी डांट खानी पड़ी। उसके बाद तो उसका मूड और खराब हो गया लेकिन उसके मन में अब बहुत से सवाल घर कर गए थे। सुमन को लगा मैं भी घर की बहू हूं, घर के मामलों में ध्यान देना मेरी जिम्मेदारी है। मैंने मां जी से इसलिए बात की क्योंकि वह घर में सबसे बड़ी और समझदार है। लेकिन माजी का इतना रूखा व्यवहार और गुस्सा देखकर अब उसके मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे थे।
वह सोच रही थी कितनी अजीब बात है ना, तीनों हादसों में बहुत कुछ एक जैसा था। तीनों बेहोश हुए, तीनों ने बुरी परछाइयां देखी, बुरे सपने देखे और कोई भी ठीक से अपने साथ हुए हादसे को बयां नहीं कर पाया। आखिर यह सब क्या है? इतना सोचते सोचते सुमन को और अचानक नींद की झपकी लग गई और उसे कुछ डरावने से चित्र दिखाई देने लगे। वह अपने सपने में ज्यादा कुछ देख पाती या कुछ महसूस करती, इससे पहले उसकी कलीग ने उसे जगा दिया और कहां, “क्या बात है सुमन, घर पर नींद पूरी नहीं हुई क्या आज,ऑफिस में कैसे सो गई?” सुमन कहती है, “पता नहीं कैसे, पर अचानक नींद लग गई।”
सुमन को अभी तक ठीक से कुछ याद नहीं था कि उसने सपने में क्या देखा सारी यादें मिट चुकी थी। इसी तरीके से उसका पूरा दिन निकला और वह शाम को ऑफिस से घर गई। घर पहुंच कर सुमन अपने रूटीन काम में लग गई। शाम को उसने खाना बनाया और सब को खिलाया और बस आराम करने के लिए कमरे में जा ही रही थी तभी उसके पति विकास ने कहा, “सुमन मुझे थोड़ा काम है। मैं मां के कमरे में जा रहा हूं। प्रॉपर्टी के पेपर देखने हैं। तुम आराम करो मैं बस थोड़ी देर में आता हूं।” इतना कहकर विकास मां के कमरे में जाने लगता है। उस वक्त रात के करीब 10:30 बजे थे। लेकिन सभी लोग अपने काम से थक हार कर आए थे तो सब अपने अपने कमरों में जा चुके थे और आराम कर रहे थे।
जैसे ही विकास मां के कमरे में पहुंचता है तो देखता है कि के कमरे की लाइट बंद हो चुकी है। उसने सोचा मां शायद लेट गई होगी लेकिन काम जरूरी था तो विकास ने कमरे की लाइट ऑन कर मांदी। वह देखता है कि मां कमरे में नहीं है। वह आवाज देता है लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिलता। वह सोचता है कि मां पता नहीं कहां होगी। वह जाकर बाथरूम की तरफ देखता है लेकिन बाथरूम का गेट भी खुला था। मां वहां भी नहीं थी। इतना देखकर विकास घबरा जाता है और घर में इधर उधर हर तरफ मां को देखने लगता है। लेकिन उसे मां नजर नहीं आती। तब वह थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाकर कहने लगता है ,”मां, मां, कहां हो मां,।” उसकी आवाज में घबराहट दिख रही थी उसकी आवाज सुनकर घर के बाकी लोग भी धीरे धीरे जमा होने लगते हैं।
सबसे पहले सुमन, प्रिया और उमेश आते हैं और पूछते हैं, “क्या हुआ विकास, तुम मां का नाम लेकर इतना चिल्ला क्यों रहे हो?” तब तक मधु और राकेश भी आ जाते हैं। वह भी यही सवाल करते हैं तब राकेश घबराहट के साथ कहता है, “मां कहीं भी नजर नहीं आ रही है। इस वक्त कहां जा सकती है।” तब राकेश कहता है, “इतनी रात को मां कहां जाएगी,अपने कमरे में होगी।” विकास कहता है, “मैं देख कर आया हूं, वहां मां नहीं है। जब मैं मां के कमरे में पहुंचा तो लाइट बंद थी। मैंने लाइट ऑन की तो मां मुझे कहीं नहीं दीखी। मैंने बाथरूम में आंगन में और और बाकी कमरों में भी इधर-उधर देखा मां मुझे कहीं नहीं दिखीं।”
मधु कहती है, “हो सकता है छत पर टहलने चली गई हो, मैं देखती हूं।” लेकिन उन्हें मां कहीं नजर नहींआती। सब लोग परेशान होकर इधर- उधर देखने लगते हैं। पूरे घर में ढूंढते हैं लेकिन मां उन्हें कहीं नहीं मिलती। तब उमेश कहता है कि, “हो सकता है मां कहीं आस पड़ोस में गई हो। एक बार वहां भी देख लेते हैं।” विकास कहता है, “ठीक है उमेश, चल हम दोनों चलते हैं और मां को ढूंढते हैं।” वह दोनों घर से निकल जाते हैं और आस-पड़ोस के घरों में जा जाकर पूछते हैं कि हमारी मां यहां आई है क्या? लेकिन सब लोग मना कर देते हैं।
सब लोग बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं घर में भी सब उदास और परेशान बैठे थे तभी उमेश और विकास आकर कहते हैं,”मांजी तो आस पड़ोस में भी कहीं नहीं मिली।” राकेश कहता है, “अब हमें ज्यादा वक्त बर्बाद किए बिना पुलिस स्टेशन जाकर कंप्लेंट करानी चाहिए।” मधु कहती है, “इतनी क्या जल्दी है,थोड़ा इंतजार करते हैं। हो सकता है कि मांजी कहीं गई हो और थोड़े वक्त में वापस आ जाए।” ऐसे ही बातें करते करते उन लोगों को लगभग 12:30 बज गए थे। तब उमेश कहता है कि, “अब और इंतजार नहीं कर सकते। हमें पुलिस स्टेशन जाना चाहिए। वह प्रिया को कहता है कि तुम घर का ध्यान रखना हम लोग पुलिस स्टेशन होकर आते हैं।”
तभी सुमन को प्यास लगती है और वह किचन की तरफ जाती है। मांजी का कमरा भी किचन के पास ही था और कमरे में एक बड़ी खिड़की थी जोकि किचन की तरफ जाने वाले रास्ते में ही पडती थी। जैसे ही सुमन खिड़की के पास पहुंची वह देखती है कि मांजी अपने बिस्तर पर बैठी हुई है। यह देख कर सुमन तेज आवाज में कहती है, “अरे मांजी आप यहां है। आपको सब लोग कब से ढूंढ रहे हैं। आप कहां चली गई थी।” इसके साथ ही वह घरवालों को भी आवाज देती है। विकास, उमेश भैया, राकेश भैया, मांजी यहां अपने कमरे में है।
सब लोग दौड़कर वहां आते हैं और परेशान होकर मांजी से पूछने लगते हैं, “मां आप कहां गई थी? हमने तो आपको सारे घर में देख लिया आप कहीं नहीं मिली। आस पड़ोस में भी जाकर पूछा वहाँ भी नहीं थी और हम में से किसी ने आपको घर में आते हुए भी नहीं देखा। आखिर आप गई कहां थी?” मांजी कहती है,” तुम सब कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो। इतनी रात को भला मैं कहां जाऊंगी मैं तो यही अपने कमरे में बैठकर भजन कर रही थी।” विकास कहता है, “मां मैंने तो खुद यहां आकर देखा था आप नहीं थी।” तभी प्रिया और उमेश भी कहते हैं, “हां मांजी हमने भी देखा था आप यहां नहीं थी।”
मांजी गुस्सा हो जाती हैं और कहती हैं, “तुम सबको रात में भी चैन नहीं है क्या? मैं अपना भजन कर रही थी और पता नहीं क्यों यह सुमन यहां आके चिल्लाने लगी। तुम लोग आखिर क्या चाहते हो? मुझे आराम करने दो और तुम सभी जाकर अपने अपने कमरे में आराम करो।” मां की इस डांट के बाद कोई कुछ बोल नहीं पाता और सब लोग वहां से चले जाते हैं, लेकिन जैसे ही सब बाहर आंगन की तरफ आते हैं तो एक दूसरे से बात करते हैं, “मांजी तो सच में कमरे में नहीं थी। वह आखिर आई कहां से?” सब लोग हैरान थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर राकेश कहता है ,”चलो रात काफी हो गई है अब जाकर आराम करना चाहिए। सुबह बात करते हैं।” सभी के मन में बहुत सारी उलझन थी, सवाल थे, लेकिन सब लोग चुपचाप अपने कमरे में चले गए।
To be continued….
Chapter-3 पढ़ने के लिए क्लिक करें
Chapter-5 पढ़ने के लिए क्लिक करें