पंडित जी की राय
अगले दिन सुबह उठकर सुमन सबके लिए चाय बनाती हैं और सबको चाय देकर तैयार हो जाती है। उस दिन सुमन विकास से कहती है, ” विकास यह सब क्या चल रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा”। विकास कहता है, “सुमन कल सच में मां कमरे में नहीं थी। वह जाने कहां से आई और कहां गई थी। मुझे भी कुछ समझ नहीं आया। अब तो मुझे डर सा लगने लगा है और बहुत चिंता होती है। घर में सब ठीक है या नहीं? आखिर यह सब चल क्या रहा है।”
सुमन कहती है, “मेरे मन में विचार आ रहा है क्यों ना हम एक बार जाकर पंडित जी से मिल आए। पंडित जी हमारे परिवार के हर मामलों में हमेशा से आते जाते रहे हैं और हमारे लिए पूजनीय है।” विकास कहता है, “तुम्हारा विचार बहुत अच्छा है। तुम एक काम करो फटाफट से काम खत्म करो और तैयार हो जाओ। उसके बाद आज पंडित जी के पास चलते हैं। तब तक मैं भैया को बता कर आता हूं कि आज हम पंडित जी के पास जाएंगे तो वह ऑफिस का काम अकेले संभाल ले।” इतना कहकर विकास बाहर की तरफ चला जाता है और सुमन अपने काम में लग जाती है।
किचन में मधु और प्रिया पहले से ही थी। सुमन भी वहा आ जाती है और तीनों मिलकर काम में लग जाती हैं। तब सुमन से मधु कहती है, “सुमन हमारे घर में यह हादसे कैसे हो रहे हैं। मेरी शादी को 25 साल हो गए हैं। लेकिन जैसा पिछले कुछ दिनों में हुआ है वैसा पहले कभी नहीं हुआ। अब तो मुझे घर में अकेले रहने में डर सा लगने लगा है। ऐसा लगता है कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए। तुम यकीन नहीं मानोगी उस दिन के हादसे के बाद मेरे मन में डर घर कर गया है।”
सुमन और प्रिया दोनो मधु को दिलासा देते हैं और कहते हैं, “दीदी आप घबराओ मत हम सब तो यही साथ रहते हैं और उसे बुरा सपना समझकर भूल जाइए। कुछ भी गलत नहीं होगा भगवान पर भरोसा रखिए।” प्रिया फिर कहती है, “दीदी नाश्ता तैयार हो गया है।” इतने ही सुमन की सास किचन में आती है और कहती है, “मैं 2 दिनों के लिए बाहर घूमने जा रही हूं, तुम लोग घर का अच्छे से ख्याल रखना।” सुमन कहती है, “मांजी आपने अचानक कहां जाने का प्लान बना लिया। आपने पहले तो नहीं बताया इस बारे में।” मांजी अकड़ कर कहती है, “क्यों मैं हर काम तुमसे पूछ कर करूंगी क्या? मेरा मन है, मैं जहां जाऊं। तुम्हें क्या लेना देना। अपने काम से काम रखो।”
मांजी की इतनी बेरुखी देखकर सुमन चुप हो गई। तब मधु कहती है, ” अरे मांजी वह तो बस ऐसे ही पूछ रही थी। आखिर आप कहां जा रही हैं? कुछ बता कर तो जाइए।” तो मांजी कहती हैं, “मैं तीर्थ यात्रा करने जा रही हूं। मैंने सुना है बेलापुर के रास्ते में जो जंगल पड़ते हैं वहां एक सिद्ध महात्मा ठहरे हैं। मैं उनके दर्शन करने जा रही हूं।” तब मधु कहती है , “माजी आपकी इच्छा है तो आप जरूर जाइए। लेकिन इन बाबाओं पर विश्वास करना कोई ज्यादा समझदारी नहीं है। और आप अकेली जा रही हैं या कोई और भी आपके साथ जा रहा है।” मां जी कहती हैं, “मोहल्ले की और भी दो तीन औरतें मेरे साथ जा रही हैं। तुम मेरी चिंता मत करो घर की चिंता करो।”
तब प्रिया कहती है, “मांजी आप के नाश्ते के लिए कुछ बना दें क्या? आपको रास्ते में काम आएगा।” मांजी कहती है, “कोई जरूरत नहीं है। मैं उपवास रख कर जाऊंगी।” प्रिया कहती है, “मांजी 2 दिन का उपवास बहुत लंबा पड़ जाएगा। मैं कुछ बना देती हूं।” मांजी फिर गुस्से में आ जाती है और कहती हैं , “तुम लोग मेरे मामलों में ज्यादा टांग मत अड़ाओ। मुझे क्या करना है यह मैं देख लूंगी। 2 दिन बाद दिवाली आने वाली है उसकी तैयारी कर लेना। और हां, राकेश को बोलना वह घर का सामान ला देगा और जो भी जरूरी चीजें आनी होंगी उसे बता देना।”
तब मधु कहती है, “मांजी त्यौहार का टाइम है, अभी आप मत जाइए।” मांजी मधु को घूर कर देखती हैं और कहती है, “तू क्या चाहती है, त्यौहार तो हर साल आते रहते हैं और ना जाने साल में कितनी बार आते हैं। वह महात्मा जी बहुत ही सिद्ध हैं मुझे उन के दर्शन करने हैं।” तब मधु कहती हैं, “मांजी, अगर वह महात्मा इतने ही सिद्ध हैं तो एक काम करते हैं मैं भी आपके साथ चलती हूं।” यह सुन कर मांजी के चेहरे पर अजीब सी घबराहट आ जाती है लेकिन तभी वह खुद को संभालते हुए कहती हैं, “कोई जरूरत नहीं है। घर में त्यौहार है तुम लोग यहीं रहो। मैं अकेले जाऊंगी।”
यह सुनकर तीनों बहुए चुप हो जाती हैं और मांजी वहां से चली जाती हैं। तब सुमन कहती है, “पता नहीं क्यों, पर आज कल मांजी का व्यवहार बहुत ज्यादा रुखा हो गया है। वह पहले तो ऐसा नहीं करती थी। पता नहीं उन्हें क्या हो गया है। घंटो अपने कमरे में अकेली बैठी रहती हैं। अंधेरा किए हुए होती हैं। ना जाने क्या करती है। कोई उनसे बात करें यह पूछने की कोशिश करें तो उस पर भड़क जाती हैं।” प्रिया कहती है, “छोड़ो ना दीदी, चलिए रसोई का काम पूरा करते हैं। वैसे भी मांजी हमें कुछ बताने वाली तो है नहीं।”
इतना कहकर वह सब अपने अपने काम में लग जाती हैं और काम पूरा करती हैं। मांजी अपने कमरे में जाकर अपनी पैकिंग में लग लग जाती है। तीनों बहुएं भी तब तक घर का काम पूरा कर चुकी थी और तब तक विकास भी घर आ गया था। विकास अपने कमरे में जाता है और सुमन से कहता है, “सुमन तुम तैयार हो?” सुमन कहती है, “हां आप नीचे चलिए मैं बस आती हूं।” इतना कहकर वे दोनों घर से पंडित जी के घर जाने के लिए निकल गए और बाकी सब लोग भी अपने अपने काम पर चले गए थे।
पंडित जी के घर पहुंच कर सुमन और विकास पंडित जी को पिछले कुछ दिनों में हुए हादसों के बारे में बताते हैं और वह पूरे विस्तार के साथ पंडित जी को बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में क्या क्या हुआ उनके परिवार वालों के साथ। “और कल रात तो गजब ही हो गया” विकास कहता है। “पंडित जी एक बार को यह हो सकता है कि जो पहले हुए वह सब हादसे हो, भ्रम हो, लेकिन कल रात वाली बात यूं मांजी का अचानक गायब हो जाना, यह तो कोई हादसा नहीं हो सकता। सब लोगों को भला एक साथ भ्रम कैसे हो सकता है।”
विकास ने उन्हें पूरे जानकारी दी। सारे हादसों के बारे में विस्तार से बताया। तब पंडित जी कहते हैं, “रुको मैं अभी पतरा देखता हूं।” यह कहकर पंडित जी कुछ लिखा पढ़ी में लग जाते हैं और अपनी पोटली में से एक किताब निकाल कर देखते हैं और काफी देर तक कुछ बड़बड़ करते रहते हैं। उसके बाद पंडित जी कहते हैं, “यह तुम्हारे घर में कुछ ऐसा है जो नहीं होना चाहिए। वह स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ रहा है और अभी तक उसने किसी को विशेष नुकसान भी नहीं पहुंचाया है लेकिन जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ता जाएगा घर वालों के लिए खतरा बढ़ता जाएगा। यह क्या है इस बारे में तो मैं भी बहुत ज्यादा अनुमान नहीं लगा पा रहा हूं लेकिन इतना कह सकता हूं कि कुछ बहुत बड़ी अनहोनी का संकेत है। घर में कुछ ऐसी दिव्य शक्ति है जोकि आम इंसानों की समझ से थोड़ी परे है। इस चीज को परखने के लिए मुझे तुम्हारे घर में आना पड़ेगा। यह एक नकारात्मक प्रकार की शक्ति है जोकि घर के सदस्यों को अभी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही है और उन्हें एहसास तक नहीं होने दे रही है कि कुछ अलग भी है उनके घर में, लेकिन ऐसा बहुत लंबे समय तक नहीं चलेगा। घरवालों को धीरे धीरे बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।”
इतना सुनकर विकास और सुमन दोनों के माथे पर चिंता की रेखाएं आ जाती है। विकास कहता है, “पंडित जी हमारे घर में हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम में आप पूजनीय रहे हैं। आप ही इस मुसीबत से बाहर निकलने का कोई रास्ता भी बताइए। आखिर यह नकारात्मक ऊर्जा क्या है और यह क्या चाहती है।” पंडित जी कहते हैं, “मैं अभी तक इस बारे में बहुत कुछ नहीं जान पाया हूं। बस एक अनुमान से और मेरी विद्याओं का आकलन करने से कह रहा हूं कि यह जो कुछ भी है बहुत ही खतरनाक है और बहुत ही तेज भी है। इसकी शक्तियां ऐसी है कि अभी तक भले ही उन्होंने कुछ स्पष्ट रूप से ना किया हो लेकिन यह किसी बड़े और भयानक मकसद को अंजाम दे सकती हैं। तुम एक काम करो अपने घर पर एक कथा का पाठ करवाओ। इस बहाने से मैं घर में आऊंगा और उस शक्ति को परखने की कोशिश करूंगा। उसके बाद ही इसका कोई तोड़ निकल सकता है।”
इतना सुनकर विकास कहता है, “ठीक है पंडित जी, आप धनतेरस के दिन हमारे घर पर कथा कर दीजिएगा। मैं सारी तैयारी कर लूंगा।” पंडित जी भी कहते हैं, “ठीक है, लेकिन हां विकास, एक बात का ध्यान रखना जो बातें मैंने तुम्हें बताई हैं उन बातों को भी किसी से मत कहना। वरना हो सकता है कि वह नकारात्मक शक्ति सतर्क हो जाए और किसी को कुछ नुकसान पहुंचा दे। अगर एक बार उसे इस बारे में आहट भी हो गई कि हम लोग उसके पीछे हैं या उसको जानने की कोशिश कर रहे हैं तो वह बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो सकती है और किसी को किसी प्रकार का नुकसान भी हो सकता है। तुम इतना बड़ा खतरा मत उठाना और जब तक हम पूरी तरीके से सही जानकारी इकट्ठा नहीं कर लेते हैं तब तक तुम इस बात का जिक्र भी अपनी जुबान से मत करना।” यह सुनकर सुमन और विकास दोनों ही कहते हैं, “ठीक है पंडित जी, हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे।” इतना कहकर वह दोनों पंडित जी को दक्षिणा देते हैं और वहां से घर वापस चले जाते हैं। जब दोनों घर पहुंचते हैं तब तक माजी तीर्थ के लिए निकल गई थी।
रात के समय सब लोग खाना खाने के बाद एक साथ बैठे हुए थे। तब राकेश पूछता है, “अरे विकास तुम आज पंडित जी के पास गए थे ना। क्या कहा पंडित जी ने, सब ठीक तो है।” तब विकास कहता है, “हां भैया, अभी पंडित जी ने कहा है कि घर में एक छोटी सी पूजा करानी होगी। परसों धनतेरस के दिन पंडित जी कथा करने आएंगे।” उमेश कहता है, “चलो यह तो बहुत अच्छी बात है। वैसे भी घर में कोई पूजा पाठ करवाए हुए बहुत समय हो गया है।” तब प्रिया कहती है, “हां कितना अच्छा रहेगा। घर में पूजा पाठ तो होते ही रहना चाहिए।”
उसके बाद सब लोग आपस में थोड़ी देर तक हंसी मजाक करते रहते हैं और बाद में सब अपने अपने कमरों में चले जाते हैं। लेकिन सुमन और विकास को नींद नहीं आ रही थी। उन दोनों के मन में बहुत बड़ी चिंता घर कर चुकी थी। वह दोनों जब बेड पर लेटे तो विकास कहता है, “सुमन मुझे पंडित जी की बातों से बहुत चिंता हो रही है। अगर सच में ऐसा ही कुछ हुआ तो हम लोग बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं ।आखिर हमारे घर में ऐसा क्या है।” सुमन भी कहती है, “जब से मैं पंडित जी से मिलकर आई हूं, मुझे ऐसा लगता है मेरे आस-पास कुछ है। कोई ऐसा है जिससे मुझे घबराहट सी होने लगती है। मुझे ऐसा लगता है मेरे हर काम पर हर चीज पर कोई नजर रखता है। मैं अचानक से कांप जाती हूं बुरी तरह घबरा जाती हूं। भगवान करे सब जल्दी से ठीक हो जाए और हमारे घर से सारी बुराइयां जल्दी ही दूर हो जाए।”
विकास कहता है , “तुम्हें याद नहीं है पंडित जी ने कहा था? इस बात का जिक्र भी मत करना। हो सकता है कि कोई हम पर नजर रख रहा हो। लेकिन सुमन इस बारे में हम दोनों तो जानते ही हैं। अब हमें घर के सभी लोगों का ध्यान बहुत अच्छे से रखना होगा। कोशिश करनी होगी कि कोई भी ज्यादा वक्त अकेले में, एकांत में ना बिताए ।”
सुमन कहती है, “हां, आप एक काम करना कल जाकर पूरा कथा का सामान ले आना और साथ ही दिवाली का भी। पंडित जी ने ऐसी बात बतायी कि अब तो त्यौहार में भी ना जाने कैसे मन लगेगा।” विकास कहता है, “तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। पंडित जी ने जो भभूत दी है तुम उसका टीका अपने और मेरे माथे पर लगा लो और एक काम करो सब घरवालों के माथे पर लगा आओ।” सुमन कहती है, “अच्छा याद दिलाया, मैं अभी जाकर सबको टीका लगा कर आती हूं।”
इतना कहकर सुमन भभूत की पोटली निकालती है और सबको जाकर टीका लगाकर आती है। सबको उसने यह बताया कि यह पंडित जी ने दिया है। इससे किसी को कोई बुरे सपने नहीं आएंगे, बस इसे हटाना मत। इतना कहकर और सबको टीका लगाने के बाद सुमन अपने कमरे में वापस आ जाती है और अब खुद को और विकास को भी टीका लगा लेती है। उसके बाद सब लोग सो जाते हैं।
To be continued….
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