Bhediya Film Review: ‘भेड़िया’ बनकर वरुण धवन ने जीता दिल,

वरुण धवन की फिल्म भेड़िया रिलीज हो गई है. इसमें वे इच्छाधारी भेड़िया बने हैं. उन्हें आगे चलकर और भी सीरियस और इंटेंस रोल्स एक्स्प्लोर करने चाहिए. भास्कर के रूप में वरुण ने सरप्राइज किया है.

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बॉलीवुड ने हाल ही में प्राणी हास्य की शैली को जोड़ा है। निर्देशक अमर कौशिक ने हमेशा अपने कामों के माध्यम से अपने दर्शकों को एक अलग मिजाज की फिल्म से परिचित कराने का प्रयास किया है। वरुण धवन अभिनीत भेड़िया भी इस प्रयास में शामिल है। इस जीव फिल्म में अमर ने कॉमेडी का तड़का कितनी कुशलता से शामिल किया गया है, यह जानने के लिए रिव्यू पढ़ें।

कहानी

मेट्रो सिटी दिल्ली के भास्कर (वरुण धवन) को अरुणाचल प्रदेश स्थित जीरो में रोड बनाने का प्रोजेक्ट सौंपा गया है. ज्यादा प्रॉफिट कमाने की लालच में भास्कर जंगलों के बीच से रास्ता निकालने का प्लान बना रहा है. हालांकि भास्कर को इसकी जानकारी नहीं है कि जो महज उसके लिए प्रोजेक्ट है, वो वहां के लोगों की जिंदगी है. प्रोजेक्ट के सिलसिले में अरुणाचल के जीरो पहुंचे भास्कर की मुलाकात पांडा (दीपक डोबरियाल) से होती है, जो लोकल लोगों और भास्कर के बीच कम्यूनिकेटर का काम करता है. इसी बीच पांडा उन्हें एक अफवाह ‘विषाणु’ की जानकारी देता है. जिससे भास्कर को पता चलता है कि जंगल में एक ‘विषाणु’ रहता है, वो उन लोगों का शिकार करता है, जो जंगल को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं. काम के सिलसिले में जंगल से गुजर रहे भास्कर भेड़िये की चपेट में आ जाता है और बचते-बचाते उसे भेड़िया काट लेता है.

हालांकि इसके बाद से भास्कर की जिंदगी बदल जाती है क्योंकि उसे एहसास होता है कि उसमें भेड़ियों वाली शक्ति आ गई है. इच्छाधारी भेड़िया बन चुके भास्कर को इस मुसीबत से छुड़ाने में जनार्दन (अभिषेक बनर्जी), जेमिन (पालिन कबाक) और वेट डॉक्टर (कृति सेनन) मदद करते हैं. भेड़िया से क्या भास्कर आम इंसान बन पाता है? क्या वो प्रोजेक्ट बनाने में कामयाब होता है? विषाणु की क्या कहानी है? इन सब सवालों का जवाब थिएटर में मिलेगा.

डायरेक्शन

जंगल, जानवरों वाली क्रीचर फिल्म अपने आपमें एक टफ जॉनर रही है और आज के दौर में लोगों को कॉमिडी फिल्म से हंसाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में दोनों को ब्लेंड कर अमर कौशिक इस बार क्रीचर कॉमिडी लेकर आए हैं. हालांकि इससे पहले वे फिल्म स्त्री से हॉरर कॉमेडी के जॉनर में खुद को साबित कर चुके हैं. अमर कौशिक की यह खासियत रही है कि वो अपनी कहानी से लोगों को हंसी से लोट-पोट कर देने में यकीन रखते हैं. फिल्म भेड़िया के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है. फिल्म देखने के दौरान आप जोर-जोर से हंसते हैं और कहीं सीन्स में डरते भी हैं. फिल्म में आज के सोशल मीडिया मीम्स का भी बड़े ही स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल किया गया है, जिससे दर्शकों की रिलेटिबिलिटी बढ़ती है. पहले भाग की एडिटिंग कसी हुई है और इंटरवल तक आपको बांधे रखती है. वहीं सेकेंड हाफ के बाद फिल्म की रफ्तार थोड़ी स्लो होती है और क्लाइमैक्स तक पहुंचते-पहुंचते फ्लैट होती नजर आती फिल्म अचानक से एक सरप्राइज एंट्री की वजह से एक हंसते हुए नोट पर कहानी खत्म होती है.

फिल्म की एंडिंग ओपन रखी गई है, ताकि लोगों के रिस्पॉन्स पर इसके सीक्वल के बारे में सोचा जाए. ओवरऑल फिल्म का कहानी पक्ष थोड़ा सा ढीला है लेकिन कॉमिडी के लाइन्स, बेहतरीन विजुअल्स और दमदार एक्टिंग फिल्म की इस कमजोरी को खूबसूरती से ढंक लेते हैं. कुछ सीन्स बेहद ही इंपैक्टफुल रहे हैं, जो सोशल मैसेज देने के साथ-साथ आपको सोचने पर मजबूर भी करते हैं. मसलन जब भेड़िएं के सामने खड़े होकर ट्राईब के सरताज अपना सिर झुकाते हुए नमस्कार करते हैं, वो सीन आपका दिल जीत लेता है. इसके अलावा वरुण और अभिषेक द्वारा बोले गए फिल्मी जोक्स फिल्म के मूड को लाइट करते हैं. फिल्म एंटरटेनमेंट के साथ-साथ आपको एक स्ट्रॉन्ग मेसेज भी देती है, जिसे इग्नोर नहीं किया जा सकता है.

टेक्निकल

3डी में दिखाई जाने वाली इस फिल्म को लेकर टेक्निकल टीम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. पूरी टीम ने उम्मीद से बेहतर काम किया है. विजुअल इफेक्ट्स पर बहुत मेहनत की गई है. वीएफएक्स और बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी से भेड़िया और जंगल का डार्क वर्ल्ड सक्सेसफुली क्रिएट होता है और जिसकी दुनिया में आप प्रवेश करते हैं. सिनेमैट्रोग्राफर जिष्णु भट्टाचार्यजी के कैमरे का जादू है कि आप फिल्म के पहले फ्रेम से ही अरुणाचल के जीरो शहर में खो जाते हैं. खूबसूरत पहाड़ों के लोकेशन, नाइट शूट्स, चांद, जंगल आदि के शॉट्स को कैमरे पर बखूबी उतारा है. स्क्रीन पर हर शॉट दिलकश लगता है. विजुअल इफेक्ट्स भी इस फिल्म में चाश्नी की तरह घुल जाते हैं. वरुण का भेड़िये में तब्दील होते देख आप पूरी तरह कन्विंस होते हैं. खासकर पूनम की रात में भेड़िये का गुर्राना, आग में भेड़ियां का प्रतिकात्मक रूप, आपके अंदर थ्रिल जगाता है. पूरी फिल्म में टेंशन, एक्साइटमेंट को बिल्डअप करने में बैकग्राउंड स्कोर का भी बड़ा हाथ रहा है. ओवरऑल टेक्निकल मामले में फिल्म का काम उम्मीद से बेहतरीन रहा है.

एक्टिंग

वरुण धवन की इस फिल्म में परफॉर्मेंस देखकर लगता है कि उन्हें आगे चलकर और भी सीरियस और इंटेंस रोल्स एक्स्प्लोर करने चाहिए. भास्कर के रूप में वरुण ने सरप्राइज किया है. फिल्म में उनकी मेहनत साफ झलकती है, चाहे बॉडी बनाने की बात हो या इंटेंस एक्टिंग, वरुण कहीं से भी आपको निराश नहीं करते हैं. स्क्रीन स्पेस कम होने की वजह से कृति सेनन का काम उतना निखर कर नहीं आता है. हालांकि वेट डॉक्टर के रूप में उनका लुक रिफ्रेशिंग रहा है. दोस्त के रूप में पालिन कबाक और दीपक डोबरियाल का काम उम्दा रहा है पर भाई के रूप में अभिषेक बनर्जी यहां बाजी मार जाते हैं. एक दो जगहों को छोड़ दिया जाए, तो पूरी फिल्म के दौरान अभिषेक के वन लाइनर्स, कॉमेडी से भरपूर मासूम सा चेहरा आपका दिल जीत लेता है.