उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा व्यवस्था – सरकार के दोहरे चरित्र की शिकार

सम्मानित साथियों और पदाधिकारियों, किसी भी देश की या समाज की तरक्की का उस देश की शिक्षा व्यवस्था से सीधा संबंध है , हम अपने नन्हे मासूमों को संस्कार और शिक्षा की कैसी पाठशाला में डालते हैं|

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सम्मानित साथियों और पदाधिकारियों, किसी भी देश की या समाज की तरक्की का उस देश की शिक्षा व्यवस्था (Education system) से सीधा संबंध है। हम अपने नन्हे मासूमों को संस्कार और शिक्षा की कैसी पाठशाला में डालते हैं।  इससे तय होता है कि उस बच्चे का राष्ट्र निर्माण में कितना और कैसा योगदान रहेगा। 

साल 1990 के बाद और उससे पहले के सरकारी स्कूलों की शिक्षा में एक बड़ा अंतर साफ- साफ महसूस किया जा सकता है। जिन सरकारी स्कूलों से पढ़कर निकले तमाम लोग IAS, PCS, बड़े-बड़े सैन्य अधिकारी, नेता व बड़े कलाकार और वैज्ञानिक बने। आज वही स्कूल केवल गरीब माँ-बाप के बच्चों को मिड-डे मील खिलाने का अड्डा मात्र बनकर रह गए हैं। 

पूरी व्यवस्था को गौर से देखने पर समझ आता है कि सरकारों और प्रशासनिक अमलों ने जानबूझ कर बेसिक शिक्षा व्यवस्था (Education system) की ये दुर्गति की है। ताकि महंगे निजी स्कूलों को बढ़ावा दिया जा सके। और खुद को मध्यम वर्ग कहकर गर्व करने वाले समाज के एक बड़े हिस्से को बड़े ग्राहक आधार में तब्दील किया जा सके। 

जो शिक्षा अनिवार्य रूप से सस्ती और उत्तम होनी चाहिए और जो सरकार की हर हाल में बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी है। उसे व्यापार में बदल दिया गया है। साधन- संपन्न और आर्थिक रूप से मजबूत लोगों पर इसका खासा प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन ईमानदार मध्यम वर्ग की कमर टूटती जा रही है और गरीब तबका शिक्षा से दूर होता जा रहा है। 

इस व्यवस्था में बदलाव लाना अब जरूरी है। तभी भारत का भविष्य सुरक्षित रखा जा सकता है। शिक्षा का उत्तम, सुलभ और समान होना देश के हर एक आमजन का बुनियादी अधिकार है। इसके लिए जरूरी है कि सभी जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाये।

ये दोहरा रवैया बिल्कुल भी तार्किक नहीं कि नौकरी सरकारी करेंगे और बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ने भेजेंगे। जमीनी हक़ीक़त तो ये भी है कि बेसिक स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स और दूसरे शिक्षा अधिकारियों के बच्चे भी उन स्कूलों में न पढ़कर निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। सोचने वाली बात यह है कि आखिर व्यवस्था कैसे सुधर सकती है। जब जिम्मेदार अफसरों के लिए शिक्षा केवल नौकरी करने और भ्रष्टाचार के जरिये पैसा कमाने का जरिया बन गया हो। 

BHAI संगठन जनहित याचिका और जन जागरण के माध्यम से इस बदलाव को लाने के लिए Uniform Education Code या समान शिक्षा संहिता लागू करने के लिए कार्य कर रहा है| समान शिक्षा सामाजिक असमानता को उखाड़ कर फेंक देने का माद्दा रखती है। असमान शिक्षा असमानता की जननी है और सामाजिक भेदभाव के लिए जिम्मेदार है ।

लेखक के बारे में:

जय कृष्ण यादव BHAI संगठन  के संस्थापक हैं| यह विचार उनके अपने है|